भाजपा के लिए चूरु लोकसभा सीट का टिकट मानों बच्चों का गल्ली क्रिकेट हो गया है जहां जिस बच्चे का बैट है उसे कोई आउट नहीं कर सकता अगर आउट किया तो बच्चा बैट लेकर घर चला जाएगा और गेम ख़राब हो जाएगा.
भाजपा ने अपने वर्तमान सांसद राहुल कस्वां का टिकट क्या काट दिया कस्वां ने अपने समर्थकों के साथ बवाल काटना शुरू कर दिया है I
पहले सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा जता कर, फिर अपनी पोस्ट्स से भाजपा का लोगो हटाकर और उसके बाद अपने निवास स्थान पर समर्थकों की भारी भीड़ जुटाकर राहुल बार बार भाजपा को सन्देश भेज रहें है कि मुझे टिकट दे कर रोक लो नहीं तो मैं पार्टी छोड़ दूंगा।
राहुल २०१४ से चूरू के सांसद हैं वैसे अगर देखा जाये तो सादुलपुर से विधान सभा और चूरू से लोकसभा की भाजपा की सीट अभी तक मम्मी पापा & राहुल दी गड्डी जैसी ही थी।
सादुलपुर विधानसभा | चूरु लोकसभा | |||
सन | भाजपा प्रत्याशी | सन | भाजपा प्रत्याशी | |
1993 | कमला कस्वां | 1991 | राम सिंह कस्वां | |
1998 | राम सिंह कस्वां | 1996 | राम सिंह कस्वां | |
2003 | कमला कस्वां | 1998 | राम सिंह कस्वां | |
2008 | कमला कस्वां | 1999 | राम सिंह कस्वां | |
2013 | कमला कस्वां | 2004 | राम सिंह कस्वां | |
2018 | राम सिंह कस्वां | 2009 | राम सिंह कस्वां | |
2014 | राहुल कस्वां | |||
2019 | राहुल कस्वां |
पिछले ३३ सालों से भाजपा घूम फिर कर एक ही परिवार में कभी राम सिंह कस्वां कभी उनकी पत्नी कमला कस्वां को ही टिकट दे रही थी और जब बेटे राहुल कस्वां ने 2014 में राजनीति के क्षेत्र में कदम रखा तो सीधा भाजपा की टिकट से सांसद का चुनाव लड़ा और जीता भी।
वैसे देखा जाए तो एक साधारण कार्यकर्ता को सांसद स्तर तक पहुँचने में काम कर कर के एड़ियाँ घिस जाती है और कांग्रेस जैसी परिवारवादी पार्टियों में तो वो भी सम्भव नहीं हो पाता I
ये बात सही है कि कस्वां परिवार क्षेत्र की जनता के लिए सदैव उपलब्ध रहता है और राहुल कस्वां ने अपने कार्यकाल के दौरान क्षेत्र के विकास के लिए बहुत कार्य किया है जो की सराहनीय है I
ये भी सही है कि राहुल ने अपने पहले कार्यकाल में मेहनत और ईमानदारी से कार्य किया इसीलिए तो सन 2019 में पार्टी ने उन्हें एक बार फिर चूरु लोकसभा सीट से टिकट भी दिया I
यदि 33 साल तक बार बार लगातार एक ही परिवार को अवसर देने के बाद अब पार्टी एक नए चेहरे को चूरु लोकसभा से जन प्रतिनिधित्व का अवसर देना भी चाहती है तो इतना रोष क्यों?
पहली बार जब कस्वां को पार्टी ने सांसद का टिकट दिया था तब उनकी योग्यता मात्र इतनी थी कि वो तत्कालीन सांसद राम सिंह कस्वां के पुत्र थे I यदि पार्टी उस समय सही थी तो आज ग़लत कैसे हो सकती है?
रही बात इस बार टिकट कटने की तो राहुल कस्वां अकेले नहीं है जिसकी टिकट कटी है भाजपा की पहली ही लिस्ट में लगभग ३३ सांसदों के टिकट कटे हैं जिनमें मीनाक्षी लेखी और डॉ हर्षवर्धन जैसे दिग्गज नेताओं के नाम सम्मिलित है।
इससे पहले २०२३ के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा ने राज्यवर्धन सिंह राठौड़, दिया कुमारी, बाबा बालक नाथ और किरोड़ी लाल मीणा जैसे सांसदों को विधायक प्रत्याशी बनाकर चुनाव मैदान में उतारा था ।
समाचार पत्रों के अनुसार भाजपा 2023 के विधानसभा चुनावों में सादुलपुर की सीट से राहुल कस्वां और देवेंद्र झाझड़िया के नामों पर विचार कर रही थी लेकिन वहाँ पर भी राहुल कस्वां ने पार्टी के कार्यकर्ताओं को टिकट दिलाने की अपेक्षा कुछ दिनों पहले ही कांग्रेस छोड भाजपा में सम्मिलित हुए पूर्व विधायक नंदलाल पूनिया की पुत्रवधु सुमित्रा पूनिया को टिकट दिलवाई I इसका अर्थ है कि सादुलपुर विधानसभा और चूरु लोकसभा क्षेत्र के भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता का तो चुनाव में कभी नम्बर ही नहीं आएगा वो तो केवल नारे लगाने और भीड़ बढ़ाने के लिए ही है I
भारत में इस समय ट्रांसफॉर्मेशन का दौर चल रहा है जिसके अंतर्गत आधारभूत परिवर्तन किए जा रहें हैं जैसे देश को औपनिवेशक गुलामी के चिन्हों से स्वतंत्र करवाना, पूरे देश में एक संविधान, एक निशान लागू करवाना, भारतीय राजनीति को भ्रष्टाचार और परिवारवाद से मुक्त करना, पंक्ति के अंत में खड़े व्यक्ति का विकास और देश को विश्व के मानचित्र पर नयी पहचान दिलाना। और इन भारी परिवर्तनों के लिए भारतीय जनता पार्टी में संगठन स्तर पर भी कई बड़े बदलाव किये गए हैं क्योंकि यदि नए भारत का निर्माण करना है तो परिवारवाद से ऊपर उठकर हर वर्ग, हर क्षेत्र के लोगों को राष्ट्र निर्माण में भागीदार बनाना होगा।भारतीय जनता पार्टी के राज्य और केंद्र स्तर पर टिकट वितरण और राज्य सभा नॉमिनेशन में ढर्रे पर चली आ रही राजनीति में बदलाव के प्रयास स्पष्ट दिखाई से रहें हैं ।
भाजपा ही एक अकेली पार्टी है जिसका एक साधारण सा कार्यकर्ता विधायक, सांसद, मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री बनने की आशा रख सकता है लेकिन उसके लिए कस्वां जैसे सभी नेताओं को ये समझना होगा कि पार्टी के पद विरासत में नहीं मिलते हैं और एक बार मिल भी जाए तो आपका उस पर आजीवन अधिकार नहीं हो जाता I
भाजपा ने इस प्रकार के असंतोष का सामना पहले भी किया है लेकिन दबावों में आकर अपना निर्णय नहीं बदला I यदि इस बार 400 पार के लक्ष्य के चक्कर में यदि भाजपा अपना निर्णय बदलेगी तो एक ग़लत प्रचलन का प्रारंभ हो जाएगा और भाजपा को हर प्रदेश में ऐसे विरोधों का सामना करना पड़ेगा I
और यदि भाजपा अपने निर्णय पर अडिग है और राहुल कस्वां भाजपा छोड़कर किसी दूसरी पार्टी के टिकट पर या निर्दलीय चुनाव लड़ते है और चूरू की जनता फिर भी उन्हें सांसद चुनती है तो ये चूरु की जनता का दुर्भाग्य होगा क्योंकि ना तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है और ना ही केंद्र में कांग्रेस की सरकार आने की कोई संभावना है ऐसे में गैरभाजपा सांसद के कारण क्षेत्र के विकास की गति पर विराम लग जाएगा.
राहुल कस्वां बार बार सोशल मीडिया पर अपना गुनाह पूछ रहें है, कस्वां के टिकट कटने के 2 मुख्य सम्भावित कारण है कि :-
- उनके नेतृत्व में 2023 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने एंटीइंकम्बैंसी में भी आठ में 6 सीटों पर हार का सामना किया है I
- भाजपा पिछले 33 सालों से चूरु लोकसभा सीट से एक ही परिवार के सदस्यों को अपना प्रत्याशी बना रही है तो अब किसी दूसरे को भी तो मौक़ा मिलना चाहिए I
राहुल कस्वां जैसे युवा नेताओं को जोश में आकर विद्रोही कदम उठाने से पहले शांत मस्तिष्क से सोचने की आवश्यकता है I