पिछले दो तीन दिनों में ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें उत्तर से दक्षिण तक हिन्दू लड़कियों को विशेषकर निशाना बनाया गया है। हिन्दू ही प्रताड़ित हो रहा है और लहूलुहान हो रहा है। और मामले भी लव जिहाद से लेकर जबरन धर्मांतरण के हैं। परन्तु मूल में धर्मांतरण ही है। कि कैसे भी वह हिन्दू धर्म छोड़कर आए। सबसे पहले दिल्ली में दलित हीरालाल की जघन्य हत्या की बात।
दिल्ली में 38 वर्षीय हीरालाल की हत्या 17 जनवरी 2022 को कर दी गयी। परिवार ने इसका आरोप इरफ़ान सिद्दीकी और उसके भाई शानू पर लगाया, फिलहाल पुलिस ने दोनों को गिरफ्तार कर लिया है।
परन्तु इरफ़ान सिद्दीकी ने हत्या क्यों की, यह जानना आवश्यक है। हीरालाल के बगल की गली में रहने वाला इरफ़ान उनके घर के लिए पराया न होकर उनके परिवार के सदस्य के जैसा ही था। परन्तु उसने विश्वास तोड़ते हुए पहले हीरालाल की बहन के साथ बलात्कार किया। हीरालाल की बहन के साथ बलात्कार के बाद उसने उसे धमकी भी दी थी कि अगर वह किसी को बताएगी तो वह उसके भाई को मार डालेगा।
हीरालाल की विधवा पत्नी किसके कारण विधवा हुई हैं, वह उस मानसिकता के कारण विधवा हुई हैं, जो हर हिन्दू लड़की को अपनी अमानत मानती है। जिस मानसिकता को यह लगता है कि हिन्दू लडकियां तो हैं ही उनके लिए। यह बहुत ही दिल दहला देने वाली घटना है कि एक भाई अपनी बहन के साथ हुए बलात्कार के लिए पुलिस में रिपोर्ट भी नहीं कर सकता और यह घटना न्यायपालिका पर बहुत बड़ा प्रश्नचिन्ह है कि कैसे एक बलात्कार के आरोपी और बार बार धमकी देने के आरोपी को वह जमानत पर रिहा कर सकती है।
दिल्ली में हुई हीरालाल की हत्या उन राजनेताओं से भी प्रश्न पूछती है कि दलित और मुस्लिम एकता की बात करने वाले लोग हीरालाल के लिए क्यों नहीं बोल रहे हैं? क्योंकि हत्या इरफ़ान सिद्दीकी ने की है? भीम और मीम की एकता की बात करने वाले लोग कहाँ हैं? क्या एक दलित लड़की के बलात्कार पर वह इसलिए मौन रहेंगे क्योंकि बलात्कार एक मुस्लिम ने किया है। दिल्ली में हुई इस बलात्कार और उसके बाद हीरालाल की हत्या पर दिल्ली का बौद्धिक वर्ग चुप है, क्योंकि हत्या इरफ़ान ने की है।
इसे बीच भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा ने यह आरोप लगाया है कि आरोपी इरफ़ान आम आदमी पार्टी का नेता है
दिल्ली में हुई इस घटना के कारण लोगों के भीतर आक्रोश था, न केवल इस हत्या के कारण बल्कि बलात्कारियों को दंड मिलने में देरी के कारण। ऐसे में एक घटना कल सामने आई जिसमें गोरखपुर कोर्ट के सामने पूर्व सैनिक भागवत निषाद ने अपनी नाबालिग बेटी का बलात्कार करने वाले दिलशाद हुसैन को तमंचे से मार डाला और खुद को पुलिस के हवाले कर दिया।
प्रश्न यही है कि आखिर भागवत निषाद ने यह कदम क्यों उठाया? किसी भी देश में न्यायपालिका पर जनता का विश्वास होता है, उन्हें लगता है कि अपराधी को दंड मिलेगा परन्तु भारत में अपराधी जमानत पर घुमते हैं और दिल्ली में जमानत पर छूटा इरफ़ान सिद्दीकी शिकायत करने वाले हीरालाल की हत्या कर देता है।
लखनऊ में जाराखान उर्फ़ शिवा विश्वकर्मा की उसके पति द्वारा हत्या
लखनऊ से भी एक मामला सामने आया जिसमें अपना हिन्दू धर्म छोड़कर मुस्लिम बनी शिवा विश्वकर्मा उर्फ़ जारा खान की हत्या उसके पति मोहम्मद यासीन ने कर दी। उसने पहले अपनी तीन साल की बेटी को फ़्लैट से बाहर निकाला और फिर घर में अपनी बीवी के मुंह पर तकिया रखकर उसकी हत्या कर दी। वह यासीन की दूसरी बीवी थी। जब उसका भाई शरद अपनी बहन द्वारा फोन न उठाए जाने पर वहां पर पहुंचा तो उसने अपनी भांजी को बाहर रोते हुए देखा। फ़्लैट का दरवाजा तोड़कर जब वह अन्दर गया तो उसने अपनी बहन को मरा हुआ पाया।
पुलिस अभी यासीन को पकड़ने के लिए दबिश मार रही है।

तमिलनाडु में ईसाई जहर का शिकार लावण्या
तमिलनाडू से लावण्या वाला मामला जो सामने आया है, वह सबसे गंभीर मामला है। गंभीर इसलिए क्योंकि वह उस शिक्षा के नाम पर किया जा रहा है, जिसके रहनुमा होने का दावा मिशनरी करती हैं। ईसाई संस्थाएं यह झूठ फैलाती हैं कि सरकार के बाद वही सबसे अधिक शिक्षा प्रदान करती हैं। परन्तु वह शिक्षा की आड़ में हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन करने का भरसक प्रयास करती हैं, यह हमने पिछले कई लेखों में उल्लेख किया है और हमने देखा भी है।
तमिलनाडु में तंजावुर स्थित सेंत माइकल्स गर्ल्स होम हॉस्टल में रहने वाली और कशा बारह में पढने वाली हिन्दू छात्रा लावण्या की 19 जनवरी को मृत्यु हो गयी। उसने कीटनाशक पी लिया था। परन्तु क्यों पिया था? उसे इसलिए जान देने पर विवश होना पड़ा था क्योंकि उसने अपने हिन्दू धर्म को न छोड़ने का निर्णय लिया था।
मिशनरी स्कूल्स में बच्चों पर पाठ्यक्रम आदि के माध्यम से हिन्दू धर्म के विषय में जहर फैलाने के विषय में समय समय पर समाचार आते रहते हैं, परन्तु एक लड़की को इस सीमा तक प्रताड़ित करना कि वह आत्महत्या कर ले, यह रिलिजन के वर्चस्व के नाम पर की जा रही सबसे बड़ी नृशंसता है।
उसका एक वीडियो सामने आया था जिसमें उसने आरोप लगाया कि उसे लगातार डांटा जाता था, और हॉस्टल की वार्डन द्वारा सभी कमरों को साफ़ करने के लिए कहा जाता था।
और उस पर ईसाई धर्म अपनाने का दबाव डाला गया। जिसके कारण उसने कीटनाशक पी लिया और उसकी मृत्यु हो गयी।
क्या धार्मिक संस्थानों को शिक्षा के क्षेत्र से दूर नहीं रहना चाहिए? क्या यह नहीं देखा जाना चाहिए कि संविधान में प्रदत्त अधिकारों का दुरूपयोग तो नहीं हो रहा और वह कथित अल्पसंख्यकों को मिले अधिकार हिन्दू लड़कियों का जीवन ही तो नहीं छीन रहे?
तीनों ही मामलों में दो धर्म सम्मिलित हैं, परन्तु बार बार “अल्पसंख्यक” खतरे में हैं का रोना रोने वाले बुद्धिजीवी और लेखक एवं पत्रकार हिन्दुओं पर इन कथित अल्पसंख्यकों द्वारा किए गए अत्याचारों पर चुप्पी साध लेते हैं।
क्योंकि अब्राह्मिक रिलिजन अल्पसंख्यक नहीं हैं, जब वैश्वविक परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो हिन्दू सबसे बड़े अल्पसंख्यक हैं, और वैश्विक बहुसंख्यक समाज द्वारा हिन्दू अल्पसंख्यक प्रताड़ित होता है। क्योंकि इन दोनों समुदायों के प्रति होने वाली छोटी से छोटी घटना को यूएन तक इनके बहुसंख्यक राष्ट्रों द्वारा घसीट लिया जाता है और सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूह हिन्दुओं को उनके द्वारा कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है।
हिन्दुओं के साथ उनके धर्म के आधार पर होने वाले घृणा अपराधो पर यह मौन अत्यंत घातक है, और यह अन्याय एवं असंतोष दोनों को जन्म दे रहा है!