केरल में इन दिनों रेस्टोरेंट्स में हलाल भोजन को लेकर हंगामा मचा हुआ है, और अब रेस्टोरेंट्स पर “थूक मुक्त भोजन” लिखा जा रहा है। हालांकि ऐसी कई घटनाएं उत्तर भारत में भी हुई थीं, जिनमें पाया गया था कि रोती बनाते समय कुछ मुस्लिम थूक लगा रहे थे। कोरोना काल में भी हमने देखा था कि कैसे कुछ लोग सब्जियों आदि पर थूक लगा रहे थे। परन्तु वह तो कथित पिछड़े और बीमारू राज्यों की बातें कहकर लिबर्ल्स टाल सकते हैं।
इन दिनों केरल में हलाल पर हंगामा मचा है और अब इस विषय में केरल के मुख्यमंत्री से मदद की अपील की गयी है कि वह हस्तक्षेप करें।
मामला क्या है:
केरल में मुस्लिमों के खिलाफ ईसाइयों ने एक अभियान आरम्भ कर दिया है, और इसमें वह अपने अपने समूहों में ऐसे रेस्टोरेंट्स की सूची साझा कर रहे हैं, जहाँ पर थूक मुक्त भोजन मिलता है। मगर यह थूक का मामला क्या है?
कुछ दिन पहले एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें केरल से एक मुस्लिम मौलवी, बिरयानी में थूक रहा था। यूजर्स ने प्रश्न किया था कि क्या यह हलाल है?
इस ट्वीट में जिस मौलवी का उल्लेख है, उसका नाम फज़ल कोय्म्मा थंगल कूरा है, जो कर्नाटक के दक्षिणी कन्नड़ जिले में उल्लाल से है। यह केरल के कासरगोड जिले की सीमा से लगा हुआ है और उसके कई अनुयायी केरल में भी है।
ऐसा प्रतीत होता है कि मुस्लिमों का यह मानना है कि थंगल पैगम्बर मुहम्मद के वंशज हैं और उनमें चमत्कारी शक्तियाँ हैं। यह थंगल 16 स्कूल और कॉलेज, मस्जिद, दरगाह चलाता है और दावा है कि इसमें चमत्कारी शक्तियाँ हैं। वह थंगल की दुआओं वाला खाना भी अपने अनुयाइयों में बाँटते हैं, जिसमें बिरयानी और मांस होता है।
हालांकि इस वीडियो का भी लोग यह कहते हुए बचाव कर रहे हैं, कि यह हलाल प्रक्रिया है।
हालांकि यह सही है कि इस्लाम में थूक का बहुत महत्व है।
और यह कई वीडियो से दिखाई भी देता है। परन्तु अब केरल में ईसाई और हिन्दू इस मुद्दे पर बहस कर रहे हैं और थूक मुक्त भोजन का अभियान चला रहे हैं।
जब दक्षिण की यह रिपोर्ट लिखी जा रही है, उसी समय उत्तर प्रदेश के गाज़ियाबाद में सगाई समारोह में थूक लगाकर नान बनाने का वीडियो वायरल हो रहा है। मुरादनगर रावली रोड पर एक फ़ार्म हाउस में सगाई समारोह के दौरान एक युवक थूक लगाकर नान बना रहा है। हिन्दू संगठन इस बात पर शोर मचा रहे हैं और उन्होंने पुलिस में रिपोर्ट लिखवा दी है।

सोशल मीडिया पर हलचल:
सोशल मीडिया पर एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जिसकी दृष्टि में ऐसा कोई भी समाचार नहीं आ पाता है। थूक मुक्त भोजन अभियान को ईसाइयों ने चलाया है। द वायर में एक बहुत ही रोचक रिपोर्ट इस सम्बन्ध में प्रकाशित हुई है। हालाँकि यह केरल के सम्बन्ध में नहीं है, यह थूक के सम्बन्ध में है और बचाव में है। इसमें थूक-जिहाद शब्द का उल्लेख करते हुए मुस्लिम समुदाय के ऐसे लोगों का बहुत ही बेशर्मी से बचाव किया गया है, जो थूक मिलाते हुए देखे गए थे और पकडे गए थे।
पर इस रिपोर्ट में यह संदेह है कि क्यों हिन्दू रक्षा दल वालों को ही दीखता है, और क्यों वह लोग पहुँच जाते हैं। परन्तु इस लेख में यह नहीं पूछा गया है मुस्लिमों से कि आखिर वह ऐसा क्यों करते हैं?
पूरे लेख में कहीं पिंकी चौधरी के कथित आपराधिक कृत्यों की चर्चा की गयी है, तो कभी बढ़ती साम्प्रदायिकता की, परन्तु यह नहीं लिखा है कि मुस्लिम समुदाय के ऐसे लोगों को यह नहीं करना चाहिए।
ऐसे ही दन्यूज़मिनट्स वेबसाईट भी केरल के इस मामले को बता रही है तो उसका जोर केवल इस पर है कि यह कट्टर ईसाईयों और आरएसएस की उठाई गयी शिकायत है। इस रिपोर्ट में भी यह नहीं कहा गया है कि जो भी किया जा रहा है, वह गलत हो रहा है!
इसमें एक और चिंता व्यक्त की गयी है कि चूंकि थूक का सम्बन्ध मनुष्य के स्वास्थ्य से है तो ऐसे में इसे और स्वीकार्यता मिल रही है।
अब ऐसे में बहुत प्रश्न उभर कर आते हैं कि
- क्या हिन्दुओं और ईसाइयों को स्वस्थ भोजन खाने का अधिकार नहीं है?
- क्या गैर मुस्लिमों को यह अधिकार नहीं है कि वह यह कह सकें कि वह इस्लामी खानपान नहीं खा सकते?
- क्यों एक विशेष मजहब की दुआ के साथ दूसरे लोग अपना आहार लें?
- क्या मजहबी लोगों के सामने और लोगों की धार्मिक स्वतन्त्रता नहीं है?
हालांकि वह लोग इसे भाजपा का षड्यंत्र बता रहे हैं, परन्तु Soldiers Of Cross इसे अफवाह बता रहे हैं, जिन्होनें यह अभियान चलाया है। वह हलाल के खिलाफ हैं। अभी तक लिब्रल्स के प्रिय रहे ईसाई लिब्रल्स के निशाने पर आ गए हैं। अब वही उनके लिए कट्टर ईसाई बन गए है। मजे की बात यही है कि जो लोग अपने मजहब की कट्टरता थोप रहे हैं, वह सहिष्णु हैं और जो इस कट्टरता का विरोध कर रहे हैं, वह असहिष्णु हैं!
देखना होगा कि लिब्रल्स ईसाई और मुस्लिम दोनों में से किसे चुनेंगे?