पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ग्लिम्प्सेस ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री में लिखा था कि यूरोप ने पहली बार एशिया में जिन जगहों पर अपनी आमद दर्ज कराई , उनमें से एक देश फिलिपीन रहा । 1565 ईसवीं में स्पेन ने फिलिपीन को अपने कब्जे में लिया था। यहाँ पर जो सरकार स्थापित हुई उसमें अधिकतर ‘ईसाई-मिशनरी’ और चर्च के कर्ता-धर्ता ही थे। इसलिए इसको इतिहास में ‘मिशनरी साम्राज्य’ के रूप में याद किया जाता है। प्रताड़ना; भारी करारोपण; और स्थानीय लोगों का ईसाईकरण का इस शासन में बोलबाला रहा । चीनी व्यापारियों का यहाँ आना-जाना भी लगा रहता था। लेकिन अब उनको भी ईसाई बनने के लिए बाध्य किया जाने लगा। और जब चीनी व्यापारियों ने इसका विरोध किया तो उनका संहार किया गया।( पृष्ठ- 556; ग्लिम्प्सेस ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री – जवाहर लाल नेहरु )
मिशनरी जिस काम के लिए दुनिया भर में कुख्यात रही, वो काम भारत में आज भी ईसाई मिशनरी करने में जुटी है। और न जाने कितने प्रकार से… ! देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं जिन्होनें ईसाई धर्म ग्रहण कर लेने के बाद भी अपने नाम में परिवर्तन न करते हुए हिन्दू नाम ही रखा हुआ है। ऐसे लोगों को ‘क्रिप्टो-क्रिस्चियन’( गुप्त-ईसाई) बताया गया है। कहा जाता है दिवंगत अजीत जोगी, अविभाजित आंध्रप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वाई एस आर रेड्डी उन प्रमुख लोगों में से रहें हैं जो क्रिप्टो-क्रिस्चियन थे। हिंदुत्व और उसके के लिए काम करने वाले संगठनों का अहित ही उनका एकमेव लक्ष्य है ।
इसके ढेरों उदहारण देखें जा सकते हैं। अभी पिछले दिनों राज्यसभा के प्रत्याशियों के चयन को लेकर राजदीप सरदेसाई के वक्तव्य पर ध्यान दिया जा सकता है- ‘भाजपा और कांग्रेस की कार्यशेली में अंतर समझने के लिए दोनों दलों के राज्यसभा के उमीदवारों की सूची देख लीजिये। भाजपा ने राज्यों में मजबूत स्थानीय जुड़ाव वाले नेताओं को प्राथमिकता दी है तो कांग्रेस ने अमूमन उन नेताओं को चुना , जिनका उस राज्य से कोई सम्बन्ध नहीं। जहाँ भाजपा की सूची विशुद्ध राजनीतिक है , वहीँ कांग्रेस की सूची वफादारों के समायोजन वाली दिखाई पड़ती है।’
गाँधी परिवार के निकटतम लोगों में से एक सरदेसाई ने भाजपा की प्रशंसा में यह वक्तव्य देना क्यूँ जरूरी समझा ऐसा बताने की कोई आवश्यकता नहीं है। उनका दर्द इस बात को लेकर है कि कैसे कांग्रेस अपनी आँखें खोलकर देखना शुरू करे, और वह दिन आये कि भाजपा का पतन दुनिया देखे।
के.आर. नारायण को भारत को पहला ‘दलित’ राष्ट्रपति बताया जाता रहा, जबकि उनकी कब्र आज दिल्ली की ईसाई-कब्रगाह में है। सामजिक भेदभाव से पीड़ित रहने के कारण अनुसूचित जाति(एससी) को संविधान के अनुच्छेद 341 में आरक्षण का प्रावधान किया गया। पर भीम राव अम्बेडकर के द्वारा किये गए इस प्रावधान में हिंदू धर्म छोड़ मतान्तरण करने वाले ईसाई और मुसलमानों को इस लाभ से वंचित रखा गया। ऐसे में कोई यह बताने लगे कि के.आर. नारायण दलित थे तो किसे आश्चर्य न होगा!
वाई एस आर रेड्डी के पिता ने ईसाई धर्म अपनाया था। आगे चल कर वाई एस आर की लड़की शर्मीला ने जब अमेरिका में रहने वाले एक ब्राह्मण युवक अनिल कुमार से शादी करना चाहा, तो ये तभी संभव हो पाया जब उसने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया। फिर ये ईसाई धर्म-प्रचारक ‘ब्रदर अनिल’ के रूप में विख्यात हुए। कहा जाता है कि वाई एस आर रेड्डी के मुख्यमंत्री बनते ही इनकी एक-एक धर्म-सभा में 2-3 लाख लोग इकट्ठे होने लगे। धर्मान्तरण के इस अभियान के विरोध में आवाजें भी उठती रहीं, लेकिन केंद्र में सोनिया गाँधी की यूपीए की सरकार के कारण कुछ नहीं किया जा सका।
आज वाईएसआर की विरासत को उनके पुत्र जगन रेड्डी आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं। कट्टर ईसाई उनकी माँ के भाई सुब्बा रेड्डी को इनके द्वारा ही हिन्दुओं के तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम का प्रमुख बनाया गया है । इनकी चाहत तो ये भी थी कि किसी प्रकार देवस्थानम की संपत्ति को कहीं और ठिकाने लगाया जाये, पर विरोध को देखते हुए इन्होनें कदम वापस ले लेने में अपनी भलाई समझी !
परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि हिन्दुओं को इस बड़े खतरे से कोई लेनादेना नहीं है। राजनीति के आधार पर अपनी कथित जातियों के आधार पर महापुरुषों की जन्म-जयंतियां मना लेना ही उन्हें काफी लगता है । इतिहास अपने को दोहरा भी सकता है । गुलामी की कारण मीमांसा करते हुए राष्ट्र कवि दिनकर के द्वारा बोला गया ये महावाक्य ध्यान देने योग्य है -“ जिस गौरव की अनुभूति के लिए मनुष्य राष्ट्रीयता का वरण करता है , उस गौरव की तृषा इस देश में जात-पात की अनुभूति में ही शमित हो जाती है। जात अगर ठीक है तो सब ठीक है । इस फेरे में हिन्दू इस तरह पड़े कि देश तो उनका गया ही, जात और धर्म की भी केवल ‘ठठरी’ ही उनके पास रही।