दिल्ली महिला आयोग, जिस पर अब तक यह आरोप लोग लगाते थे कि वह अपने दायरे से अलग एजेंडा वाले विषयों पर शोर मचाता है, पत्र लिखता है जैसा आज भी दिखाई दिया कि दिल के दौरों से होने वाली मौतों को लेकर सरकार को पत्र लिखा है। हालांकि यह सत्य है कि दिल दौरों से निरंतर मौतें हो रही हैं, परन्तु क्या यह विषय दिल्ली महिला आयोग के दायरे में है?
एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है, जिसका यह आरोप है कि स्वाति मालीवाल ने अपने पद के दायरे से बाहर जाकर पुरुष विरोधी कार्य किये हैं। जैसे कि boyslockersroom वाला मामला था, जिसमें दिल्ली महिला आयोग और स्वाति मालीवाल की भूमिका बहुत संदिग्ध पाई गयी थी। लोगों का आरोप है कि स्वाति मालीवाल ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कदम उठाए थे और यह भी दुखद है कि एक लड़के ने इसमें आत्महत्या कर ली थी और जब इस पूरे काण्ड के पीछे एक लड़की निकली थी, तो मामला शांत हो गया था।
दिल्ली महिला आयोग का कार्यक्षेत्र क्या है? क्या वह पूरे भारत में हो रहे महिलाओं के प्रति अपराधों के प्रति प्रश्न उठा सकता है, नोटिस भेज सकता है? यह प्रश्न बार बार इसलिए उठा क्योंकि स्वाति मालीवाल ने उन सभी मामलों का राजनीतिक फायदा उठाने का प्रयास किया था, जिनमें भाजपा या हिन्दू धर्म में निष्ठा रखने वाले पुरुष सम्मिलित थे। जैसे कि हाथरस का मामला था और इसमें उन्हें लगा कि उत्तर प्रदेश की “हिंदुत्ववादी” सरकार को घेरा जा सकता है एवं इस बहाने हिन्दुओं को बदनाम किया जा सकता है, तो उन्होंने नोटिस भेजा था।
वहीं लव जिहाद में रोज मारी जा रही हिन्दू लड़कियों के लिए स्वाति मालीवाल नोटिस भेजती होंगी, ऐसा नहीं दिखता है।
पाठकों को स्मरण होगा कि उत्तर प्रदेश को बदनाम करने की इतनी जल्दी थी स्वाति मालीवाल को कि उन्होंने गाजियाबाद में हुई एक झूठी घटना को उछालते हुए अपने आप ही गाजियाबाद पुलिस को नोटिस भेज दिया था। और फास्टट्रैक कोर्ट में सुनवाई की मांग की थी। मगर उनके इस दावे की हवा गाजियाबाद पुलिस ने निकाल दी थी, जब यह पूरा मामला झूठा निकला था।
मगर अब स्वाति मालीवाल अपनी ईमानदारी की कसमें क्यों खा रही हैं? क्यों वह यह कह रही हैं कि “ईमानदारी से काम करने वालों को अपनी ईमानदारी सिद्ध करती पड़ती है और चोर देश में मज़े मारते हैं।“
दरअसल मामला यह है कि अब तक कुछ राजनीतिक दुराग्रह एवं कुछ झूठे एवं अपने कार्यक्षेत्र से परे नोटिस भेजने वाली स्वाति मालीवाल पर दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल और तीन और लोगों पर यह आरोप तय किए हैं कि उन्होंने नियमों से परे जाकर अपनी पार्टियों के कार्यकर्ताओं को विभिन्न पदों पर नियुक्त किया।
लाइव लॉ के अनुसार
“राउज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश डीआईजी विनय सिंह ने कहा कि मालीवाल, प्रोमिला गुप्ता, सारिका चौधरी और फरहीन मलिक के खिलाफ एक “मजबूत संदेह” पैदा होता है, क्योंकि यह स्पष्ट है कि तथ्य उनके खिलाफ आरोप तय करने के लिए “प्रथम दृष्टया पर्याप्त सामग्री” बताते हैं।
इस प्रकार अदालत ने आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी के तहत आपराधिक साजिश और अन्य अपराधों के लिए रोकथाम या भ्रष्टाचार अधिनियम की धारा 13(1)(डी), 13(1)(2) और 13(2) के तहत आरोप तय किए।
अदालत ने कहा कि केवल इसलिए कि डीसीडब्ल्यू दिल्ली सरकार से रिक्त पदों को भरने के लिए कह रहा था, जिसका राज्य द्वारा समय पर पालन नहीं किया गया था, महिला अधिकार निकाय को मनमानी नियुक्तियां करने का कोई अधिकार नहीं देता है।
अर्थात दिल्ली महिला आयोग के अध्यक्ष पर रहते हुए स्वाति मालीवाल ने केवल अपने कार्यक्षेत्र से परे ट्वीट या नोटिस ही नहीं भेजे हैं, बल्कि नियुक्तियां भी नियमों से परे जाकर की हैं और अब अदालत ने उन पर यह आरोप निर्धारित किए हैं, उनपर कोई राजनीतिक आरोप नहीं लगे हैं।
हालांकि यूजर्स ने कई और घटनाएं साझा कीं, जिनमें दिल्ली महिला आयोग की भूमिका संदिग्ध पाई गयी थी, जिनमें एक मामला वर्ष 2018 का है, जिसमें अदालत ने दिल्ली महिला आयोग से यह कहा था कि महिलाओं को झूठे बलात्कार के आरोप लगाने की सलाह न दें!
इस मामले में बलात्कार के एक आरोपी को एक आदलत ने रिहा करते हुए दिल्ली महिला आयोग को यह सुझाव दिया था कि वह अपने सहायकों को पुलिस थाने में बलात्कार पीड़ितों की मदद करने के लिए सलाह दें, झूठे बलात्कार के आरोप लगाने के लिए नहीं। क्योंकि इस मामले में पीड़िता ने कहा था कि उसकी शिकायत में बलात्कार का आरोप केवल सरोजिनी नगर पुलिस स्टेशन में एनजीओ काउंसलर की सलाह पर लगाया गया था।
यह बात बहुत ही अधिक हैरानी भरी है कि दूसरों पर बिना जांच के आरोप लगाने वाली स्वाति मालीवाल एवं आयोग जैसी संवैधानिक इकाई को पार्टी के आधार पर ही नहीं बल्कि केवल धर्मनिष्ठ हिन्दुओं, पुरुषों के विरुद्ध प्रयोगशाला बनाने वाली स्वाति मालीवाल अपने विरुद्ध जांच से डरी क्यों हैं? क्यों उन्हें ईमानदारी का प्रमाणपत्र देना पड़ रहा है?
इस विषय में दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष बरखा शुक्ला ने कहा कि 2015 के उपरान्त दिल्ली महिला आयोग में नियुक्तियों में धांधली हुई है. और उन्होंने ही इस बात को लेकर शिकायत दर्ज कराई थी और फिर एंटीकरप्शन ब्यूरो ने एफआईआर दर्ज की थी!
अब इसे लेकर राजनीति भी तेज हो गयी है, भारतीय जनता पार्टी के कई नेता स्वाति मालीवाल को हटाने की मांग कर रहे हैं। परन्तु जांच इस बात की होनी चाहिए कि जैसे लोग आरोप लगा रहे हैं कि कई पुरुषों का जीवन स्वाति मालीवाल के हाथों बर्बाद हुआ है तो इस पहलू पर अधिक बहस होना चाहिए
विमर्श यह होना चाहिए कि क्या वास्तव में ऐसा किया जा रहा कि पुरुषों एवं परिवारों को जानबूझकर निशाना बनाया जा रहा था? या फिर बलात्कार के झूठे मामलों को तैयार किया जा रहा था?
लोगों ने पूछा कि अब पता चल रहा होगा कि झूठे मामलों के चलते पुरुष को क्या-क्या झेलना पड़ता है?
प्रश्न एक आयोग के राजनीतिक दुरूपयोग से कहीं और बढ़कर है, प्रश्न यहाँ है कि क्या बलात्कार के आंकड़ों में वृद्धि दिखाने के लिए और भारतीय पुरुषों की गलत छवि दिखाने के लिए आयोग का दुरूपयोग किया गया? यदि हाँ, तो यह राजनीतिक दुरूपयोग से कहीं बढ़कर मामला है और यही गंभीर मामला है, जांच और दायरा यह भी होना चाहिए कि कैसे परिवार तोड़ने के लिए भी आयोग का दुरूपयोग किया गया!