दो दिन पहले अर्थात 19 अक्टूबर को दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल ने यह कहते हुए सनसनी फैला दी थी कि एक लड़की के साथ निर्भया जैसी बर्बरता हुई और उसके साथ गैंगरेप हुआ, उसके यौनांगों में रॉड तक घुसेड़ दी गई और उन्होंने कहा कि क्या बेटियाँ ऐसी ही मरती रहेंगी?
दिल्ली महिला आयोग ने इस घटना का स्वत: संज्ञान लेते हुए उत्तर प्रदेश सरकार पर निशाना साध लिया था और कहा था कि इन दरिंदों के खिलाफ एक्शन हो।
इस घटना के चलते कई लोगों ने उत्तर प्रदेश की क़ानून व्यवस्था पर भी प्रश्न उठाए थे। हालांकि गाजियाबाद पुलिस ने घटना के विषय में पहले ही दिन कहा था कि इस मामले की जांच की जाएगी। इस मामले में जब लोगों ने और पुरुषों के लिए काम करने वाली एक्टिविस्ट दीपिका भारद्वाज ने प्रश्न उठाए तो उन पर ही लोगों ने हमला बोल दिया था।
यहाँ तक कि स्वाति मालीवाल ने तो फास्टट्रैक कोर्ट में सुनवाई की मांग भी कर दी थी। इस घटना पर इतना जल्दी संज्ञान लेने वाली स्वाति मालीवाल कभी भी दिल्ली आदि में हो रही लव जिहाद की घटनाओं से पीड़ित लड़कियों के लिए नहीं बोलती हैं। और यदि बोलती भी हैं तो मात्र ऐसा जैसे कि यह साधारण कानून व्यवस्था की घटना हो! ऐसा क्या कारण था जो इस मामले की जाँच किए बिना ही इतनी कड़ी कार्यवाही की मांग की जाने लगी थी?
एक और पहलू है जिसके विषय में बात की जानी चाहिए, वह यह कि इस मामले में भी सारे आरोपी मुस्लिम थे, तो क्या एक संदिग्ध मामले को इसलिए हवा दी गयी, जिससे असली मामलों पर भी प्रश्न उठाया जा सके? ऐसे तमाम प्रश्न हैं, और यह तमाम प्रश्न इसलिए उभर कर आए हैं क्योंकि गाजियाबाद पुलिस ने अपनी जांच में यह पाया कि यह पूरा मामला झूठा है। क्योंकि द वायर जैसे पोर्टल्स यह तथ्य स्पष्ट रूप से कह रहे हैं कि “आरम्भ में जिन लोगों पर आरोप लगा, वह मुस्लिम ही थे!”
ऐसे समय में जब हिन्दू लडकियां वास्तव में जिहादी मानसिकता का शिकार हो रही हैं, उस समय ऐसे संदिग्ध मामले पर शोर मचाना, कहीं न कहीं बहुत बड़े प्रश्न खड़े करता ही है! मजे की बात यही है कि इस मामले के झूठा निकलने के बाद भी अभी तक स्वाति मालीवाल की कोई टिप्पणी नहीं आई है।
दरअसल इस मामले में जिस प्रकार से कथित पीड़िता ने अपने बयानों में विरोधाभास प्रदर्शित किया था, और जैसे उसने मेडिकल जांच वहीं करने का निर्णय लिया था, जहाँ पर वह काम करती थी, वह अपने आप में संदेह उत्पन्न कर रहा था और अब तो गाजियाबाद पुलिस ने पूरी तरह से इस झूठ का पर्दाफाश कर दिया है।
स्वाति मालीवाल ने दावे में और क्या कहा था?
भाजपा शासित प्रदेशों में सूक्ष्मदर्शी से अपराध खोजने वाली स्वाति मालीवाल ने दवा किया था कि
“दिल्ली की लड़की ग़ाज़ियाबाद से रात में वापिस आ रही थी जब उसे ज़बरन गाड़ी में उठा ले गए। 5 लोगों ने 2 दिन बलात्कार किया & उसके गुप्तांगों में रॉड घुसाई। सड़क किनारे बोरी में मिली तब भी रॉड उसके अंदर थी। अस्पताल में ज़िंदगी के लिए लड़ रही है। SSP ग़ाज़ियाबाद को नोटिस इशू किया है!”
और यह तक कहा था कि जो लोग झूठ बोल रहे हैं, उन्हें शर्म करनी चाहिए
एक लड़की के साथ गैंगरेप करके उसके अंदर रॉड डालके सड़क पर बोरे में फेंका गया लेकिन अभी भी कुछ घटिया मानसिकता के ‘फ़र्ज़ी ऐक्टिविस्ट’ इसे झूठा केस बता रहे हैं। लड़की ने खुद अपने अंदर रॉड डाली, खून से लथपथ खुद को बोरे में डालकर खुद ही सड़क पर लेट गयी?
थोड़ी तो शर्म करो!
परन्तु वह शर्म नहीं कर रही हैं, जब यह मामला झूठा प्रमाणित हो गया है? और गाजियाबाद पुलिस ने मामले की सच्चाई बता दी है कि महिला ने संपत्ति विवाद के चलते अपने साथियों आजाद, गौरव और अफजल के साथ मिलकर साज़िश रची!
“महिला ने थाना वेलकम दिल्ली के कबीरनगर निवासी अपने प्रेमी आजाद के साथ मिलकर घटना का षड्यंत्र रचा था। इसके बाद आजाद ने अपने दो दोस्तों गौरव निवासी आश्रम शिवम गार्डन अच्छा थाना बादलपुर और अफजाल निवासी कैला भट्ठा, नगर कोतवाली गाजियाबाद को साजिश में शामिल किया था। केस में नामजद किए गए शाहरुख और उसके भाई जावेद से महिला का मकान को लेकर विवाद चल रहा है। इसी मकान को कब्जाने के लिए गैंगरेप का षड्यंत्र रचा गया। पुलिस ने तीनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। आजाद प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करता है, जबकि गौरव विजय नगर थाना क्षेत्र में फोटोग्राफी की दुकान चलाता है। अफजाल नाली-खड़ंजे बनाने की ठेकेदारी करता है। जिस मकान में शाहरुख और उसका परिवार रहता है, उस मकान का सौदा आजाद ने ही दीपक जोशी नाम के व्यक्ति से कराया था। इसी के चलते महिला ने शाहरुख और उसके भाई समेत पांच लोगों को सामूहिक दुष्कर्म का आरोपी बनाया।
क्या उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था के विषय में छवि बिगाड़ने का षड्यंत्र था?
उत्तर प्रदेश की क़ानून व्यवस्था की बात आज हर कोई करता है और यह भी सर्विविदित है कि उत्तर प्रदेश चुनावों में बेहतर क़ानून व्यवस्था एक बड़ा मामला था और कहीं न कहीं स्वाति मालीवाल ने उसी पर निशाना साधा था। जहाँ स्वाति मालीवाल ने झारखंड की अंकिता के मामले में बस एक ट्वीट करके अपनी जिम्मेदारी निभा ली थी और इस मामले को केवल एक स्टॉकिंग क्राइम तक सीमित कर दिया था, तो वहीं उन्होंने इस मामले में राज्य सरकार पर कोई प्रश्न नहीं उठाया था।
जहाँ एक लड़की को जलाकर मार डाला गया, उसे सामान्य स्टॉकिंग क्राइम कहकर सामान्य करना और जहाँ मामले में पहले ही संदेह हो रहा हो, उस मामले को तूल देकर उस राज्य की क़ानून व्यवस्था पर प्रश्न उठाना जहां पर कानून व्यवस्था की स्थिति अब बेहतर हो रही है, उसे महिलाओं के मामले पर सिलेक्टिव राजनीति ही कहा जाएगा!
बहरहाल इस मामले में गाजियाबाद पुलिस द्वारा यह स्पष्ट किया जा चुका है, तो भी इस मामले में स्वाति मालीवाल का कोई ट्वीट न आना, इस बात को बताता है कि कहीं न कहीं यह पूरी तरह से राजनीतिक तो था ही और साथ ही यह ऐसी लड़कियों को भी संभवतया निशाना बनाता हुआ ट्वीट था, जो वास्तव में जिहादी गैंग से प्रताड़ित होती हैं।
इस मामले में स्वरुप सरकार ने स्वाति मालीवाल पर निशाना साधते हुए प्रश्न किया कि वह क्यों पुरुषों या लड़कों के विरुद्ध हैं?
यह भी दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब भी ऐसे एजेंडा वाले मामले उभर कर आते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि ऐसे आयोग कहीं न कहीं मात्र राजनीतिक विद्वेष को भडकाने वाले रह गए हैं, जिनमें वास्तविक पीड़ित महिलाओं की पीड़ा गायब है, शेष है तो बस यह कि कैसे भगवा वस्त्र पहनने वाले मुख्यमंत्री की सरकार के प्रति द्वेष को बढ़ाया जाए, कैसे उन हिन्दू लड़कियों का मनोबल तोडा जाए, जो इन जिहादियों के जाल से फंसकर बाहर निकलने के लिए संघर्ष कर रही हैं, या फिर अपने दल की सरकार का बचाव या उसके राजनीतिक एजेंडे पर कैसे चला जाए कि उसे लाभ हो! इसमें स्त्री पीड़ा और संघर्ष सिरे से विलुप्त है!