भारतीय जनता पार्टी की निलंबित नेता नुपुर शर्मा ने उच्चतम न्यायालय में यह याचिका दायर की थी कि सभी याचिकाओं को एक स्थान पर ही सुना जाए, तो इस याचिका को निरस्त करते समय न्यायाधीश द्विय न्यायमूर्ति जे जे पादरीवाला एवं न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने ऐसी तल्ख़ और चौंकाने वाली टिप्पणियाँ की कि लोग हैरान रह गए कि क्या यह वास्तव में भारत ही है? क्या यह वह भारत है जहाँ पर संविधान का शासन है? लोगों को सहज विश्वास ही नहीं हुआ और फिर जैसे ही लगा कि यह टिप्पणियाँ माननीय न्यायमूर्ति द्विय द्वारा ही हुई है तो उनके मुख से निकला “क्या भारत में शरिया शासन लग गया है?”
दरअसल न्यायालय में इस याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि नुपुर शर्मा को पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए और यह भी कहा कि यह नुपुर शर्मा ही हैं, जिनके कारण उदयपुर में वह दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई, जिसमें एक टेलर का सिर सरेआम काट दिया गया था।
परन्तु अब जैसे जैसे विवरण सामने आते जा रहे हैं वैसे वैसे यह पता चलता जा रहा है कि कन्हैया लाल को मारने जो आए थे, उनकी सोच कोई एक दिन में किसी नुपुर शर्मा के कारण नहीं बनी थी बल्कि वह कई वर्षों से बन रही थी। उनमें से एक ने बाइक ऐसी ली थी, जिसका नंबर था 2611! और यह नंबर किसके प्रति दीवानगी दिखाता है, यह सभी को ज्ञात है, इतना ही नहीं यह नंबर वर्ष 2013 में लिया था, ऐसा इस ट्वीट में दावा किया गया है।
न्यायालय ने निम्नलिखित विचार आज नुपुर शर्मा की याचिका निरस्त करते हुए व्यक्त किये:
जिनमें यह भी कहा गया कि नुपुर को सत्ता का घमंड था, और नुपुर ही देश में अशांति के लिए उत्तरदायी है।
परन्तु यह भी बहुत हैरानी की बात है कि जो औपचारिक आदेश आया उसमें न्यायमूर्ति द्विय द्वारा व्यक्त एक भी विचार नहीं थे:
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या वह माननीय न्यायमूर्ति द्विय के व्यक्तिगत विचार थे? यदि व्यक्तिगत विचार थे तो वह ऐसे कैसे व्यक्त कर सकते है, और यह बात लोग पूछ रहे हैं? हैरिस सुलतान ने प्रश्न किया कि क्या उच्चतम न्यायालय क्या दो परिवारों के बीच मध्यस्थता कर रहा है?
और उन्होंने कहा कि नुपुर शर्मा ने कुछ भी गलत नहीं कहा, और कट्टरपंथियों के तुष्टिकरण से आप देश को नहीं बचा सकते हैं?
नुपुर शर्मा के मामले में आरम्भ से ही यह कहने वाले कि नुपुर शर्मा ने कुछ भी गलत नहीं कहा है, डच सांसद ने कहा कि मुझे लगता है कि भारत में शरिया न्यायालय नहीं हैं। और नुपुर को माफी नहीं मांगनी चाहिए। वह उदयपुर के लिए जिम्मेदार नहीं है। इसके लिए कट्टपंथी जिहादी ही जिम्मेदार हैं और कोई नहीं!
नुपुर शर्मा एक हीरो है!
लोगों में इस वक्तव्य को लेकर भयानक निराशा व्याप्त है और लोग इसे न्यायपालिका के लिए काला दिन कह रहे हैं। यहाँ तक कि उच्चतम न्यायालय के वकील भी इसे लेकर आहत हैं। शशांक शंकर झा ने लिखा कि यह भारतीय न्यायपालिका के लिए काला दिन है!
प्रोफ़ेसर हरिओम ने ट्वीट किया कि प्रिय उच्चतम न्यायालय क्या नुपुर शर्मा ने क्या 1989-90 में कुछ ऐसा कहा था, जब कट्टर इस्लामिस्ट ने जम्मू और कश्मीर में अत्याचारों की हद पार की और 1000 से अधिक हिन्दुओं को मार डाला गया और कश्मीर से जबरन वापस निकाला गया।
इस पर लोगों ने कई सूची भी दिखाई, जिसमें मोपला के दंगे, महाशय राजपाल की हत्या, डायरेक्ट एक्शन डे, विभाजन, आदि के लिए भी नुपुर शर्मा को जिम्मेदार ठहराने का ताना मारा गया था
आनंद रंगनाथन ने ट्वीट किया कि नुपुर शर्मा को अब कोलकता में जाना होगा जहाँ पर ममता ने एक रैली में वादा किया था कि हम उसे छोड़ेंगे नहीं, हैदराबाद में जमील ने कहा था कि हम उसे फांसी पर लटकाएंगे और कश्मीर में जहाँ पर आदिल ने मस्जिद से कहा था कि हम उसका सिर काटेंगे!
धन्यवाद सुप्रीम कोर्ट!
पूरा देश स्तब्ध है, पूरा देश इस मामले को लेकर हैरान है! न्यायालय कैसे कट्टरपंथ के सम्मुख झुक सकता है वह यह समझ नहीं पा रहा है! वह शोक में है, और सोशल मीडिया देश के दुःख को मापने का सबसे बड़ा पैमाना है। आज ट्विटर से लेकर फेसबुक पर हर स्थान पर लोग तरह तरह से अपने शोक को व्यक्त करते हुए टिप्पणी कर रहे हैं।
उनके लिए उच्चतम न्यायालय ही एकमात्र स्थान है जहाँ पर न्याय की अस लेकर आते हैं, और वहां पर भी इस प्रकार से हिन्दुओं को प्रताड़ना मिलेगी तो कहाँ जाएंगे वह, ऐसा वह बार बार कह रहे हैं? हालांकि नुपुर शर्मा पर जस्टिस कान्त की टिप्पणी को लेकर अजय गौतम ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की और जज की टिप्पणियों को वापस लेने की मांग की।
वरिष्ठ पत्रकार राजीव सचान ने ट्वीट किया कि सुप्रीम कोर्ट ने यह बिल्कुल सही कहा कि आप प्रवक्ता हैं तो सोच-समझकर बोलें, लेकिन इतना ही सही यह है कि यदि आप जज हैं तो और भी ज्यादा सोच-समझ कर बोलें।
यह स्पष्ट हो रहा है कि पत्रकार से लेकर वकील, एक्टिविस्ट से लेकर आम लोग सभी लोग उन अनावश्यक टिप्पणी से आहत हैं, उन्हें ऐसा लग रहा है जैसे उन्हें उठाकर बर्बर आतताइयों के हवाले कर दिया गया है। लोग कह रहे हैं कि यह नुपुर शर्मा की बात ही नहीं है, न्यायमूर्ति ने कहा कि एक लोकतंत्र में हर किसी को बोलने का अधिकार है तो घास को उगने का अधिकार है तो वहीं गधे को घास खाने का अधिकार है! लोग पूछ रहे हैं कि आप आखिर कहना क्या चाहते हैं?
सुनंदा वशिष्ठ ने भी यही लिखा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण और हैरान करने वाला है। क्या यह शरिया अदालत है या फिर उच्चतम न्यायालय?
यद्यपि यह सही है कि उच्चतम न्यायालय द्वारा याचिका ख़ारिज किए जाने के निर्णय में यह सब टिप्पणियाँ सम्मिलित नहीं हैं फिर भी, यह टिप्पणियाँ हिन्दुओं के लिए उस खतरे का संकेत दे रही हैं, जहां पर उनके लिए विनाश ही है। और जनता आज यह दुखी होकर पूछ रही है कि मीलोर्ड क्या कश्मीर के लिए, विभाजन के लिए सभी के लिए नुपुर शर्मा ही जिम्मेदार है?
जनता दुखी है और फिर ऐसे में लोगों को याद आ रहा है कश्मीर फाइल्स का वह संवाद कि सरकार उनकी है तो क्या, सिस्टम तो हमारा है
बहुत दुःख होता है जब न्याय के मंदिर से इस प्रकार ठोकर मिलती है और फिर लगता है कि कहाँ जाएं? किसके पास जाएं, कौन है रक्षक? कहाँ हैं न्याय? आज की टिप्पणियों पर विवेक अग्निहोत्री ने भी कहा कि उन्हें यह संवाद लिखने पर गर्व है:
यह टिप्पणियाँ अनावश्यक ही थीं। यह देश से लेकर विदेश तक से आवाजें आ रही हैं, और आवाजें यह भी हैं क्या जनता के प्रति न्यायालय और न्यायपालिका का कोई उत्तरदायित्व नहीं है? क्या अब उन्हें कट्टरपंथी भेड़ियों के आगे फेंक दिया गया है? कट्टरपंथी इस्लामिस्ट से डरकर अब एक आम आदमी क्या न्यायालय में भी न्याय नहीं पाएगा?
आज देश की जनता बहुत दुखी है और सोशल मीडिया देखकर यह दुःख समझा जा सकता है और उस क्षोभ की सीमा को समझा भी जा सकता है!