आज सीडीएस जनरल रावत की अंतिम विदा में जिस प्रकार भारत ने एकजुट होकर सन्देश दिया, वह स्वयं में अभूतपूर्व था। किसी सेना के अधिकारी को ऐसा सम्मान प्राप्त हो सकता है, यह कल्पना से भी परे था। लोग भावुक होकर अपने नायक को विदा दे रहे थे, रो रहे थे, बिलख रहे थे। ऐसा लगा ही नहीं जैसे कोई सेना का अधिकारी अपने अंतिम प्रयाण पर जा रहा है। सेना के प्रति यह लगाव एवं प्रेम पहले से था, परन्तु जिस प्रकार से सरकार के हर मंत्री ने, विदेशों के सेनानायकों ने जनरल रावत को सम्मान दिया है, यह अभूतपूर्व है।
विभिन्न देशों की सेनाओं के प्रतिनिधियों ने भी अंतिम यात्रा में भाग लिया
ऐसा नहीं था कि मात्र भारत के ही कोने कोने से लोग अपने नायक को अंतिम विदा देने आए थे। सीडीएस जनरल रावत की अंतिम यात्रा में सम्मिलित होने के लिए श्री लंका के चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ जनरल शेवेंद्र सिल्वा, रॉयल भूटान आर्मी के डिप्टी चीफ ऑपरेशंस ऑफिसर ब्रिगेडियर दोरजी रिंचेन, नेपाली सेना के चीफ ऑफ जनरल स्टाफ लेफ्टिनेंट जनरल बालकृष्ण कार्की एवं बांग्लादेश के प्रिंसिपल स्टाफ ऑफिसर लेफ्टिनेंट जनरल वाकिर-उज-जमान भी अंतिम यात्रा में थे।

सैम बहादुर मानक शॉ के अंतिम संस्कार में मात्र एक मंत्री ही थे उपस्थित
हम सभी ने देखा था कि 1971 के युद्ध के नायक रहे सैम मानेक शॉ के अंतिम संस्कार में सरकार की ओर से कोई भी प्रतिनिधि सम्मिलित नहीं हुआ था। वर्ष 2008 में जब उनका निधन हुआ था, तब न ही राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, रक्षा मंत्री ए के एंटोनी और न ही तीनों सेनाओं में से किसी भी अध्यक्ष ने मानेक शॉ के अंतिम संस्कार में जाने का कष्ट उठाया th, हालांकि कहने के लिए यह राजकीय सम्मान के साथ किया गया अंतिम संस्कार था, परन्तु इस अंतिम संस्कार में सरकार की ओर से कोई भी विशेष प्रतिनिधि सम्मिलित नहीं था।

वह कांग्रेस का दौर था, जब सेना के नायकों के साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया जाता था। ऐसा क्यों होता था या क्यों किया गया, इसके कई कारण हैं, जिनमें कथित रूप से सैम मानेक शॉ का वह साक्षात्कार सम्मिलित है, जिसमें उन्होंने किसी पत्रकार के इस प्रश्न पर कि यदि उन्हें पाकिस्तान जाने का अवसर मिला होता तो वह क्या करते, उन्होंने यह कह दिया था कि तो 1971 का युद्ध पाकिस्तान जीत जाता!
इस बात पर कांग्रेस उनसे इतनी नाराज हुई थी कि रिटायरमेंट के बाद उनकी सुविधाओं में कटौती कर दी थी।। उनके साथ हुए इस अन्याय को सुधारा था एपीजे अब्दुल कलाम ने, जब वह राष्ट्रपति बने थे। परन्तु कांग्रेस द्वारा उनका बहिष्कार सा चलता रहा और यह एक महानायक की अंतिम यात्रा के दौरान भी देखा गया।
जनरल रावत की अंतिम यात्रा में सरकार से लेकर आम जनता सम्मिलित थी
जबकि सीडीएस जनरल रावत की अंतिम यात्रा देखकर वास्तव में प्रतीत हुआ कि यह एक महानायक की विदाई है। यह देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने वाले की अंतिम यात्रा है। यह उनकी अंतिम यात्रा है, जिन्होनें दुश्मनों को मुंहतोड़ जबाव देने में मुख्य भूमिका निभाई थी। जो निडर थे, जिनमें देश सर्वोपरि की भावना ही थी। उनकी अंतिम यात्रा की कुछ तस्वीरें यह बताने के लिए पर्याप्त हैं कि देश उनसे कितना प्रेम करता था:




उपलब्धियों से भरा हुआ था जीवन
यदि हम सीडीएस जनरल रावत के जीवन पर एक दृष्टि डालते हैं तो पाते हैं कि उनका जीवन उपलब्धियों से भरा हुआ रहा है।
उनके पिता पिता लेफ्टिनेंट जनरल लक्ष्मण सिंह रावत भारतीय सेना का हिस्सा रहे थे और जनरल रावत ने वर्ष 2011 में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से सैन्य मीडिया अध्ययन में पीएचडी की थी। उन्होंने इंडियन मिलिट्री एकेडमी और डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज में अध्ययन किया था।
दिसंबर 1978 में भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून से ग्यारह गोरखा राइफल्स की पांचवीं बटालियन में नियुक्त किया गया था, जहां उन्हें ‘स्वॉर्ड ऑफ़ ऑनर ‘से सम्मानित किया गया था । उन्होंने पूर्वी क्षेत्र में एक इन्फैंट्री बटालियन की कमान संभाली। उन्हें वीरता और विशिष्ट सेवाओं के लिए यूआईएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम, एसएम के साथ सम्मानित किया जा चुका है । उनके पिता लेफ्टिनेंट जनरल लक्ष्मण सिंह रावत, जो सेना से लेफ्टिनेंट जनरल के पद से सेवानिवृत्त हुए। जनरल रावत को आतंकवाद रोधी अभियानों में काम करने का 10 वर्षों का अनुभव है । वह 31 दिसंबर 2016 से 31 दिसंबर 2019 तक थल सेनाध्यक्ष के पद पर रहे ।
जनरल बिपिन रावत भारतीय सेनाध्यक्ष के तौर पर अपना 3 साल का कार्यकाल पूरा करके 31 दिसंबर को रिटायर हुए जिसके बाद वो चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का पद संभाला । उन्होंने 1 जनवरी 2020 को यह पद संभाला। रावत 31 दिसंबर 2016 से 31 दिसंबर 2019 तक सेना प्रमुख के पद पर रहे थे और 62 साल के उम्र में बिपिन रावत चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद पर नियुक्त हुए । इसके साथ ही उन्हें वीरता और विशिष्ट सेवाओं के लिए यूआईएसएम, एवीएसएम, वाईएसएम, एसएम के साथ सम्मानित किया जा चुका है।
पत्नी मधुलिका रावत का परिचय
जब से यह समाचार आया था कि जनरल रावत अपनी पत्नी मधुलिका रावत के साथ चौपर पर सवार थे तो एक आवाज उठी थी कि आखिर वह कैसे उस आधिकारिक चौपर पर हो सकती हैं, तो यह बताना उचित होगा कि उनकी पत्नी मधुलिका रावत फिलहाल AWWA यानी आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन की अध्यक्ष थीं। इसकी स्थापना 1966 में की गई थी। यह एसोसिएशन सेना के अधिकारियों/जवानों की पत्नियों, बच्चों और आश्रितों के कल्याण के लिए काम करने वाली नोडल संस्था है। वर्ष 2021 में AWWA के अध्यक्ष के तौर पर मधुलिका रावत पर युद्ध या अन्य सैन्य ऑपरेशन के दौरान वीरगति को प्राप्त शहीदों की पत्नियों और आश्रितों की भलाई और सर्वागींण विकास का उत्तरदायित्व प्रदान किया गया था। महिला दिवस के अवसर पर मधुलिका रावत की अगुवाई में AWWA की ओर से सेना जल लॉन्च किया गया था। और इसका उद्देश्य देश के लोगों को विदेशी या अन्य कंपनियों की बोतलबंद पानी की बजाय सेना का जल खरीदने को प्रेरित करना था।

आज यह दोनों ही पंचतत्व में विलीन हो गए हैं, परन्तु कृतज्ञ राष्ट्र ने आज जिस प्रकार अपनी श्रद्धांजलि दी है, उसने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह राष्ट्र को झुकने नहीं देंगे!