जैसे जैसे इस कथित हिजाब आन्दोलन का विस्तार होता जा रहा है, इसका असली रूप सामने आता जा रहा है। हर आन्दोलन की तरह यह भी अंतत: हिन्दुओं के खिलाफ ही जा रहा है। रोहित वेमुला की आत्महत्या को भुनाने से लेकर अब हिजाब आन्दोलन तक, उद्देश्य एक ही है, किसी भी प्रकार से सरकार की अंतर्राष्ट्रीय छवि पर प्रभाव डालना। इस सरकार के बहाने हिन्दुओं को निशाना बनाया जा रहा है, क्योंकि इस सरकार के बनने में हिन्दुओं का ही सबसे बड़ा योगदान है, इसलिए बार बार हिन्दुओं पर हमला किया जा रहा है। मध्य प्रदेश के उज्जैन में आपत्तिजनक पोस्टर और हिन्दुओं को नीचा दिखाते हुए पोस्टर लगे पाए गए हैं!
यद्यपि अभी इस मामले की जाँच की जा रही है, पुलिस अभी इसकी जांच कर रही है कि आखिर यह पोस्टर किसने लगाए हैं, फिर भी यह पोस्टर भड़काऊ हैं और हिन्दू धर्म के प्रति घृणा से भरे हुए है!
हिजाब को ऐसा कहकर प्रस्तुत किया जा रहा है जैसे वह औरतों की इज्जत के लिए जरूरी है, और जिन कबीलाई लोगों का पूरा का पूरा विमर्श ही शरीर को लेकर है, और जिस सोच वाले आदमी शरीर ढकने को ही हया मानते हैं और रामायण का मनचाहा उल्लेख कर रहे हैं। उनके अनुसार लक्ष्मण द्वारा सीता जी का चेहरा न देखा जाना, इस बात को इंगित करता है कि सीता जी ने पर्दा किया हुआ था।
जबकि लक्ष्मण जी कहते हैं कि “मैं सीता जी के बाजूबंद और कुण्डलों को नहीं पहचानता हूँ परन्तु मैं उनके बिछुओं को अवश्य पहचानता हूँ क्योंकि चरणवंदना के समय मैं इन्हें नित्य देखा करता था।”

इन शब्दों पर ध्यान दिया जाए कि जिस प्रसंग की यह लोग बार बार दुहाई दे रहे हैं और यह कह रहे हैं कि सीतामाता पर्दा करती थीं, तो लक्ष्मण यह कह रहे हैं कि वह चरणवंदन करते थे, अर्थात पूजा करते थे अर्थात पूज्य मानते थे, इसलिए उन्होंने चरणों में ही स्वर्ग खोजा क्योंकि माँ के चरणों में ही स्वर्ग कहा गया है।
माता सीता सहित तीनों बहनों के विवाह के अवसर पर भी किसी भी प्रकार के पर्दे का उल्लेख नहीं है। यहाँ तक कि महर्षि वाल्मीकि की रामायण में अयोध्या नगरी के वर्णन में ही स्त्रियों के लिए नाट्यशालाओं एवं क्रीडागृहों का उल्लेख है। फिर यह पर्दे जैसी बात कहाँ से आई? यदि लक्ष्मण ने मात्र बिछुए देखे थे, तो लक्ष्मण ने मर्यादा का पालन किया था, सीता माता ने पर्दा नहीं किया था।
खैर, अब आते हैं, इस्लाम क्या कहता है। इस्लाम में पर्दे को लेकर क्या कहा गया है? क्या यह आदर के वशीभूत होकर कहा गया है या आदमियों पर चूंकि उन्हें विश्वास नहीं है, इसलिए उन्होंने लड़की को परदे में कैद कर दिया है।
पर्दा प्रथा के उद्गम के विषय में britannica क्या कहती है, यह देखिये
इसके अनुसार पर्दा प्रथा मुस्लिमों के साथ भारत में आई और बाद में इसे कई हिन्दुओं द्वारा अपना लिया गया और इसमें खुद के शरीर को छिपाना शामिल है, और जिसमें घर के भीतर के बड़े बड़े पर्दों, स्क्रीन और ऊंची ऊंची दीवारों के माध्यम से खुद को बाहरी जनता की निगाहों से बचाना है।
इस्लाम के अनुसार औरत को हर उस मर्द से पर्दा करना है, जिसके साथ उसका निकाह जायज है। अर्थात
औरत का अपने मह्रम मर्दों के सामने पर्दा उतारना जायज़ है।
औरत का मह्रम वह व्यक्ति है जिसके लिए उस औरत से किसी रिश्तेदारी, या स्तनपान या ससुराली संबंध के कारण हमेशा के लिए निकाह करना जायज़ नहीं है। रिश्तेदारी के कारण (जैसे पिता तथा उससे ऊपर के लोग, पुत्र तथा उस से नीचे की पीढ़ी, चाचा, मामा, भाई, भतीजा और भांजा) रज़ाअत (स्तनपान) के कारण (जैसे रज़ाई भाई और दूध पिलाने वाली औरता का पति) या फिर ससुराली रिश्ते की बिना पर (जैसे माँ का पति, पति का पिता तथा उस से ऊपर की पीढ़ी, और पति का पुत्र तथा उससे नीचे के लोग)।
इसके अतिरिक्त है
‘‘और अपना श्रृंगार किसी पर ज़ाहिर न करें सिवाय अपने पतियों के या अपने बापों के या अपने पतियों के बापों के या अपने बेटों के या अपने पतियों के बेटों के या अपने भाइयों के या अपने भतीजों के या अपने भांजों के । ।’’ (सूरतुन्नूर : 31)।
वहीं हाल ही में सपा के नेता अबू आजमी ने तो यहाँ तक कह दिया था कि बेटी के साथ भी अकेले नहीं रहना चाहिए! अबू आज़मी जहाँ पहले बलात्कार के लिए भी लड़की को ही दोषी ठहरा चुके थे, तो वहीं उन्होंने अभी कहा था कि. अकेले में आदमी को अपनी बेटी के साथ भी नहीं रहना चाहिए
उन्होंने कहा था कि “अगर बेटी या बहन घर पर अकेली है, तो शैतान आपकी आत्माओं पर कब्जा कर सकता है। आजमी ने कहा कि, ‘आजकल चचेरे भाई या पिता द्वारा रेप की घटना (Rape Cases) आम हो गई है। ऐसे कई बलात्कार के मामले देखने को मिल रहे हैं।’ उन्होंने कहा कि ऐसे उपाय हमारे पुरखों ने भी बताए हैं!
यही उपाय हमें इतिहास में मुस्लिम परम्परा में मिलते हैं, द प्राइवेट लाइफ ऑफ द मुगल्स ऑफ इंडिया में मुगलों के हरम के विषय में लिखा गया है, आर नाथ ने लिखा है कि कुरआन में औरतों को बाहरी संसार से अलग हटकर पर्दे में रखने की वकालत की गयी है और यह कुलीन मुस्लिम औरतों के लिए नियम है कि वह घर पर एकांत में रहें, बिना परदे के अकेले सफ़र न करें, न ही उन आदमियों के साथ बात करें जो उनके पति नहीं हैं और जिनके साथ उनका निकाह जायज है।

इसमें लिखा है कि मुगल हरम में कई क्षेत्रों की औरतें शामिल थीं और वह कई सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों की थीं, अलग अलग भाषा बोलती थीं, उन्हें एक ऐसी दुनिया में रखा जाता था, जो चारदीवारियों से घिरी थी और बाहरी दुनिया से जिसका सम्पर्क नहीं था।
“केवल और केवल बादशाह ही एकमात्र आदमी होता था, जो इन औरतों के हरम में जा सकता था”
और यह कहावत वहीं से शुरू हुई कि औरत आएगी तो पालकी में, पर जाएगी जनाज़े पर!
जब बादशाह अपने हरम के साथ कहीं जाते भी थे, तो भी औरतें पालकी में होती थीं और जहाँ उनका टेंट लगता था, वहां पर भी बड़े बड़े परदे होते थे।।
शरीफ औरतों का काम कनीजें करती थीं और कनीजों को भी आदमियों से बात करने की अनुमति नहीं थी, कनीजें उन हिजड़ों के साथ काम करती थीं, जिन्हें हरम के काम के लिए नियुक्त किया जाता था।
हिजड़ों को हरम के बाहर नियुक्त किया जाता था और उन्हें भी हरम के भीतर आने की इजाजत नहीं थी। उन्हें भी बेगमों से बात करने की अनुमति नहीं थी।
अर्थात कथित हया के नाम पर शरीफ औरतों को बाहरी दुनिया से काटकर रखा जाता था।
जो लोग कथित हिजाब आन्दोलन को लेकर आज हिन्दुओं पर हमला कर रहे हैं, वह इस तथ्य को देखें कि हरम की सुरक्षा के लिए केवल राजपूतों पर ही अकबर ने विश्वास किया था। क्योंकि हिन्दू जानते थे कि स्त्री का आदर कैसे किया जाता था।
तो शरीफ औरतों की सुरक्षा का भार राजपूतों पर था,

और हिजड़ों पर। इसमें लिखा है कि दो या तीन हिजड़े जो अपने मालिक के ही वफादार होते थे, उन्हें हर बीवी के लिए नियुक्त किया जाता था, जो यह सुनिश्चित करें कि उस औरत को उसके शौहर के अलावा कोई न देखे! यदि कोई हिजड़ा ऐसा करने में विफल रहता था तो दंड के रूप में उसकी जान भी ली जा सकती थी।

यहाँ तक कि बादशाह की कभी हमबिस्तर हुई कनीज भी किसी गैर आदमी से बात नहीं कर सकती थी, एक बार जहाँगीर ने नूरजहाँ की एक कनीज केवल इसलिए तीन दिनों तक बांधकर एक गड्ढे में धूप में रखा था क्योंकि उसने एक हिजड़े को चुम्बन कर लिया था। यह आदेश दिया गया था कि उस औरत को एक गड्ढे में बांहों तक गाढ़ कर रखा जाए, और तीन दिनों तक उसे भूखा प्यासा रखा जाए, अगर वह तीन दिनों तक जिंदा रह जाती है तो उसे माफी मिलेगी” मगर वह डेढ़ ही दिनों में मर गयी थी। और मरने से पहले वह “ओह मेरा सिर, ओह मेरा सिर” चीखती रही थी।
वह जहाँगीर की रखैल भी रह चुकी थी, मगर चूंकि अब उसकी उम्र तीस से अधिक हो गयी थी तो वह दूसरे कामों में लग गयी थी। और उसका अपराध यही था कि उसने एक हिजड़े का चुम्बन ले लिया था। यह घटना नूरजहाँ एम्प्रेस ऑफ मुग़ल इंडिया में एलिसन बैंक्स फ़िडली ने लिखी है

परदे को इस्लाम में कितना महिमामंडित किया है और शराफत का पर्याय मान लिया गया है, वह इस शेर से पता चलता है:
“बेपर्दा नज़र आयीं जो कल चन्द बीबियां
अकबर ज़मीं में ग़ैरत-ए-क़ौमी से गड़ गया
पूछा जो आप का पर्दा वह क्या हुआ
कहने लगीं के अक़्ल के मर्दों पे पड़ गया”
भारत में पसमांदा अर्थात देशज मुस्लिमों का एक बड़ा स्वर है डॉ फैयाज़ का, जो कट्टरपंथी इस्लाम का विरोध कर रहे हैं और इस्लाम में व्याप्त असमानताओं पर प्रश्न उठा रहे हैं। उन्होंने इस बात को विस्तार से समझाया है कि इस्लाम में दरअसल पर्दा केवल और केवल उच्च जाति की मुस्लिम औरतों को ही पहनने का अधिकार था क्योंकि उनके अनुसार वह हयादार होती हैं और उन्हीं की इज्जत होती है!
वह विस्तार से समझाते हुए लिखते हैं:
बीबी= उच्च वर्ग की मुस्लिम औरतों को ही बीबी कहा जाता है।
क़ौम = उच्च वर्ग के मुस्लिम समाज के लिए बोला जाने वाला शब्द, उस लफ्ज़ का इस्तेमाल कभी भी इस्लाम और आम मुस्लिमों के लिए नहीं होता था।
पश-ए-मन्ज़र(पृष्ठभूमि):-
जब सामाजिक सुधारों के फलस्वरूप अशराफ(मुस्लिम उच्च वर्ग) की बीबियाँ घरो से बाहर निकल के शिक्षा हासिल करने लगीं तब इस बात से अकबर इलाहाबादी को बहुत कष्ट हुआ और वो अपनी क़ौम को शर्म दिलाते हुए इसका विरोध अपने व्यंगात्मक अंदाज़ में कुछ यूँ किया।
अब आप के दिल में ये ख्याल आ रहा होगा कि अकबर इलाहाबादी को सारे मुस्लिमों की औरतों को बे-पर्दा होने का मलाल था। तो जनाब आप ये जान लें कि उस वक़्त पसमांदा (पिछड़े, दलित और आदिवासी) मुस्लिमों की औरतें तो पहले से ही बेपर्दा थीं और अपने रोज़ी रोटी के लिए अशराफ के घरों, गली मोहल्लों और बाज़ारों में आया जाया करती थीं। हज़रत को तो सिर्फ बीबियों के बेपर्दा होने की फ़िक़्र थी।
हालांकि यह अब राजनीतिक रूप ले चुका है और कर्नाटक से उठी हुई यह आग एक बार फिर से हिन्दुओं को ही जलाने के लिए उतारू है, जिसमें कांग्रेसी इकोसिस्टम है, पीएफआई है और वामपंथी फेमिनिस्ट हैं, जो मुस्लिम औरतो को हरम के उस अँधेरे में धकेलने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही हैं, जिनसे अभी भी वह बाहर नहीं निकल पाई हैं! ऐसे में कथित आजादी की बात करने वाली फेमिनिस्ट इसी पिछड़ेपन के साथ जाकर खड़ी हो गयी हैं, यह अवश्य ध्यान रखियेगा!