पिछले कुछ समय से आप अंतराष्ट्रीय स्तर पर चल रहे घटनाक्रम को गहनता से अध्ययन करेंगे तो पाएंगे कि एक सतत प्रयास किया जा रहा है भारत और हिंदुत्व को कलंकित करने का। और यह प्रयास विदेशी ताकतों के सहयोग से किया जा रहा है, जिसमे स्थानीय नागरिक भी बढ़ चढ़कर भाग ले रहे हैं। पिछले 2 दशकों में, खासकर गुजरात में दंगो के पश्चात हिंदुत्व को एक आक्रामक धर्म बताने का प्रयास किया गया था। ऐसा प्रपंच रचा गया था जैसे हिन्दू समावेशी नहीं हैं, वह दूसरे धर्म और मजहब के लोगों के साथ सह-अस्तित्व नहीं रखना चाहते, जिसकी परिणीति गुजरात दंगों के रूप में हुई थी।
उसके कुछ समय के पश्चात हिन्दू आतंकवाद नाम का छद्म प्रचार गढ़ा गया था, जिसका एक ही उद्देश्य था कि हिन्दुओं को आतंकवादी घोषित करवाना, उन्हें आतंकवाद का पोषक बताना। इसी कारण साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित जैसे प्रतिष्ठित लोगों को झूठे आरोपों में कई वर्षों प्रताड़ित किया गया, जेल में डाल दिया गया था। विरोधियों का एक ही उद्देश्य था कि यह लोग किसी भी प्रकार आतंकवादी हमलों में अपने लिप्त होने की बात मान लें। अगर ऐसा होता तो इन लोगों के पास एक खुला अवसर होता, हिंदुत्व और हिन्दुओं का आक्षेप लगाने का और हमारे धर्म को इस्लाम के समानांतर रखने का।
2014 में नरेंद्र मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के पश्चात ऐसा लगा कि शायद अब यह प्रवृत्ति कुछ कम होगी, लेकिन हुआ इसका विपरीत ही। 2015 आते आते असहिष्णुता के नाम पर ऐसा प्रचार किया गया, जैसे भारत में मुसलमानों और कुछ ख़ास लोगों और जातियों के लिए रहना अत्यंत कठिन कर दिया गया है। ऐसा बताया गया कि आरएसएस और भाजपा ने हिंदुत्व का एक अत्यंत आक्रामक स्वरुप गढ़ दिया है, जो सह-अस्तित्व की विचारधारा में विश्वास नहीं करता, जो दूसरे धर्मों और मजहबों पर आक्रमण करता है। हिन्दुओ की संस्कृति को रूढ़िवादी बताया गया, उन्हें आक्रांता के रूप में प्रेषित किया गया, वहीं जिन मजहबी शक्तियों ने भारत पर आक्रमण किये थे, उन्हें नायक के रूप में चरितार्थ करने के प्रयास होते रहे।
यह तो थे दबे छुपे हमले, लेकिन पिछले वर्ष से इन सेक्युलर-लिबरल और बुद्धिजीवी लोगों के गठजोड़ ने एक नयी रणनीति बना ली है। इन्होने विदेशी विश्वविद्यालयों में गोष्ठियां करनी शुरू कर दी, पीछे ही वर्ष अमेरिका में “डिस्मैंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व” नामक आयोजन हुआ था। इसका एक ही उद्देश्य था विश्वभर में हिन्दुओं के प्रति द्वेष को बढ़ाना। इस कार्यक्रम में हिन्दुओं और हिंदुत्व के प्रति बड़े ही आपत्तिजनक वक्तव्य देने वाले व्यक्तियों और बुद्धिजीवियों को बुलाया गया था।
इस तरह के छद्म दुष्प्रचार की परिणीति हमने पिछले ही दिनों ब्रिटेन में देखी है, जहां मजहबी तत्वों ने हिन्दुओं पर लक्षित हमले किये थे । आप मजहबी तत्वों के वक्तव्य सुनिए, आप उन पर पिछले कुछ वर्षों में हिंदुत्व के विरुद्ध किये गए दुष्प्रचार की छाप साफ़ देखेंगे। ब्रिटेन में मीडिया और इस्लामिक संस्थाओं ने मिथ्या प्रचार कर ‘मिलिटेंट हिंदुत्व’ की एक झूठी कहानी को आगे बढ़ाने का काम किया है। इसी दुष्प्रचार का अगला पड़ाव है 7 और 8 अक्टूबर को न्यूयॉर्क की सेराक्यूज यूनिवर्सिटी में आयोजित होने जा रही “2022 न्यूयॉर्क कांफ्रेंस ऑन एशियन स्टडीज” की गोष्ठी।
अब आप पूछेंगे कि इस गोष्ठी में ऐसा क्या है जो हिंदुत्व और हिन्दुओं को कलंकित कर सकता है? इसका उत्तर आप को इस गोष्ठी में चिंतन के लिए प्रेषित किये गए विषयों को देख कर मिल जाएगा।
- गाय : दैवीय प्रतीक या एक घातक अस्त्र
- हिंदुत्व, मिलिटरिज्म और भारत में असुरक्षा
- इस्लाम पर आधारित आधुनिक बौद्ध मत
- रिलीजन, हेट स्पीच, और भारत और पाकिस्तानी स्टेट
गाय : दैवीय प्रतीक या एक घातक अस्त्र
जैसा कि नाम से ही पता लग रहा है, इसमें गाय पर प्रहार किया जाएगा। गाय हिन्दुओं के लिए पूजनीय है और उनके धर्म कर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। एक आम हिन्दू गाय को अपने परिवार का सदस्य ही मानता है, वहीं मजहबी लोग गाय की तस्करी कर, उसे मार कर, और खुलेआम मांस खा कर हिन्दुओं को चुनौती देने का कार्य करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में गौ सेवकों और गौ रक्षकों ने प्रतिकार भी करना शुरू किया है, और यह लोग उसी बचाव की प्रवृत्ति को ही ‘घातक अस्त्र’ बता कर हिंदुत्व और हिन्दुओं को बदनाम करेंगे।
हिंदुत्व, मिलिटरिज्म और भारत में असुरक्षा
यह विषय भी स्वतः स्पष्ट है, यहाँ हिंदुत्व को ‘मिलिटरिज्म’ से जोड़ा जा रहा है और उसके प्रभाव से किसी ख़ास मजहब के लोगो में आ रही असुरक्षा की भावना को उजागर किया जाएगा। यहाँ समझने वाली बात यह है कि हिन्दू मूल भाव से शांत प्रवृत्ति के होते हैं, जब उन पर लगातार आक्रमण होते हैं तभी प्रतिकार किया जाता है, और उसे ही यह लोग ‘मिलिटरिज्म’ का नाम दे रहे हैं। जबकि यह तो आत्मरक्षा का उपाय मात्र है, और इसकी आज्ञा तो धर्म और विधि सम्मत भी है।
लेकिन पिछले कुछ समय से हमने यह देखा है कि कैसे वामपंथी और कट्टर इस्लामिक तत्व हिंसा करने वालों की तरफ आँखें मूँद लेते हैं, वहीं प्रतिकार करने वालों को ही दोषी ठहरा देते हैं, और उन्हें ही समाज में असुरक्षा पैदा करने वाला बता देते हैं। यह हमने गोधरा में देखा, मुजफ्फरनगर में देखा, दिल्ली के दंगो में देखा, और पिछले ही दिनों ब्रिटेन में भी देखा। इस गोष्ठी में एक और प्रयास किया जाएगा हिन्दुओं को आक्रामक दिखाने का और उन्हें समाज के लिए अवांछनीय तत्व घोषित करने का।
इस्लाम पर आधारित आधुनिक बौद्ध मत
बौद्ध धर्म को हिन्दू धर्म का ही विस्तार माना जाता है। महात्मा बुद्ध को भगवान् विष्णु का अवतार भी माना जाता है, दोनों ही धर्म शान्ति और सह-अस्तित्व पर आधारित हैं और सैकड़ो सालों से हिन्दू और बौद्ध मिल जल कर रह रहे हैं। अब इस विषय को आप देखेंगे तो समझ आएगा कि कैसे बौद्ध धर्म को हिन्दू धर्म से अलग करने और इस्लाम से जोड़ने का प्रयास किया जाएगा। इसके पीछे कहीं ना कहीं आपको ‘जय भीम जय मीम’ वालों का योगदान दिखेगा, उनका भी एकमेव उद्देश्य है हिन्दुओं और बौद्धों को पृथक कर देना।
उसके लिए यह लोग मिथ्या प्रचार करेंगे, वामपंथियों और भ्रष्ट इतिहासकारों के दिए गए छद्म संदर्भो का दुरूपयोग कर यह बताया जाएगा कि बौद्ध धर्म और इस्लाम का सम्बन्ध है, और कहीं ना कहीं बौद्ध धर्म का आधुनिक स्वरुप इस्लाम से प्रभावित है। इससे आपको शायद कोई फर्क ना पड़े, लेकिन एक छद्म सन्देश लोगो तक जाएगा, और वह लोग अवश्य ही प्रभावित होंगे जो येन केन प्रकारेण अपने आपको हिंदुत्व से पृथक दिखाना चाहते हैं।
रिलीजन, हेट स्पीच, और भारत और पाकिस्तानी स्टेट
यह विषय देखने में जितना अच्छा लग रहा है, उतना ही दुरूह है और इसके बड़े दुष्परिणाम हो सकते हैं। इस विषय द्वारा भारत और पाकिस्तान को एक ही पलड़े में रखने का प्रयास होगा। भारत में अल्पसंख्यकों को सभी अधिकार दिए जाते हैं और यह समाज, प्रशासन और अन्य सभी क्षेत्रों में देखने को मिलता है। लेकिन इस गोष्ठी द्वारा यह भी संभव है कि भारत को अल्पसंख्यकों के लिए बुरा देश बताया जाए, यह भी संभव है कि भारत में पिछले दिनों हुई कुछ वैध और अवैध घटनाओं का बखान कर हिन्दुओं को एक असहिष्णु समाज बताया जाए।
जबकि दूसरी तरफ है पाकिस्तान, जहां अल्पसंख्यकों के लिए कोई अधिकार ही नहीं हैं, जहाँ अल्पसंख्यकों को पिछले 70 वर्षों से नस्लीय हिंसा का सामना करना पड़ रहा है, उसकी तुलना भारत के साथ की जायेगी। इससे पाकिस्तान को कोई लाभ या हानि नहीं होगी, जो होगा वह भारत को ही होगा, क्योंकि एक धर्मनिरपेक्ष देश को एक इस्लामिक मुल्क के साथ जोड़ कर देखा जाएगा, और एक छद्म प्रचार के रूप में यह दुनिया भर में प्रसारित भी किया जाएगा
परन्तु यह दुर्भाग्य है कि पश्चिम का अकादमिक जगत इस हद तक हिन्दू घृणा में अँधा हो गया है कि उसे पाकिस्तान एवं अन्य स्थानों पर हिन्दुओं के साथ होने वाले अत्याचार दिखाई नहीं देते हैं!