उसका जन्मदिन 2 दिसंबर को था और वह अपने जन्मदिन को लेकर उत्साहित थी। केरल की नन जालंधर के चर्च में चार साल से काम कर रही थी। पर वह अपने जन्मदिन से एक या दो दिन पहले ही यह दुनिया छोड़ गयी। पुलिस और चर्च का कहना है कि उसने आत्महत्या की, जबकि परिवार इससे सहमत नहीं है। मैरी मर्सी के परिवार का कहना है कि 29 नवम्बर को परिवार के साथ बातचीत के दौरान वह बहुत खुश थी।
परन्तु चर्च का कहना है कि मैरी मर्सी ने आत्महत्या ही की है और चर्च पुलिस के साथ हर प्रकार से सहयोग कर रहा है। चर्च के अनुसार एक पत्र भी सामने आया है, जिसमें नन ने परिवार और अपने समूह से माफी माँगी है।
क्या इस मामले में निर्णय आ पाएगा? पता नहीं! क्योंकि चर्च और ननों के शोषण का इतिहास बहुत पुराना होने के साथ साथ इस शोषण में बुद्धिजीवी पीड़िताओं के साथ नहीं बल्कि शोषण करने वालों के साथ खड़े पाए जाते हैं। यही कारण है कि इन ननों की संस्थागत मृत्यु भी आवाज नहीं बन पाती है। क्योंकि एक बड़ा वर्ग यह स्वीकारने को तैयार ही नहीं होता है कि चर्च एक संस्था के रूप में अपनी ननों के साथ खड़ा नहीं है। यदि आप यह सोचते हैं कि यह एक ही मामला है, तो जरा पिछले वर्ष कोर्ट द्वारा इन्हीं दिनों आए सिस्टर अभया वाले निर्णय पर एक दृष्टि डालना आवश्यक है।
सिस्टर अभया
पिछले वर्ष आए इस निर्णय ने जैसे देश को चौंका दिया था। केरल की एक नन को एक दो नहीं बल्कि पूरे 28 वर्षों के बाद न्याय मिला था। हालांकि सिस्टर अभया जिंदा नहीं थी, क्योंकि 19 वर्षीय सिस्टर अभया को तो 28 वर्ष पहले 1992 में ही एक पादरी और सिस्टर सेफी ने मिलकर मार डाला था क्योंकि सिस्टर अभया ने उन्हें आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया था।
चोर ने सिस्टर अभया को न्याय दिलाया और चर्च दोषियों के साथ रहा
इस मामले में सबसे रोचक तथ्य था कि एक चोर उस दिन चर्च में कुछ चोरी करने आया था और उसने इस हत्याकांड को होते देखा। इतने वर्षों तक उसने अपनी गवाही नहीं बदली थी। उसे हर प्रकार के लालच दिए गए परन्तु वह अपनी बात पर अडिग रहा और उसीकी गवाही के आधार पर सिस्टर अभया को न्याय मिला।
अपराधियों के वकीलों ने राजू का आपराधिक इतिहास भी न्यायालय में सम्मुख रखा, जिसे राजू अर्थात उस चोर ने खुशी खुशी स्वीकार कर लिया। परन्तु उसके बाद भी वह सिस्टर अभया को न्याय दिलाने पर अडिग रहा, जबकि इस पूरे मामले में चर्च और ईसाई संस्थाओं की सहानुभूति अपराधी के साथ रही थी।
सिस्टर लूसी
अब आइये बात करते हैं ऐसी ही एक पीड़ित नन सिस्टर लूसी की। सिस्टर लूसी अपने लिए नहीं लड़ रही हैं, बल्कि वह लड़ रही हैं एक ऐसी नन के लिए जिसके साथ जालंधर के बिशप फ्रैंको मुलक्क्ल ने वर्ष 2014-16 के बीच कई बार बलात्कार किया था।
हालांकि इस मामले में भी चर्च बिशप के साथ ही खड़ा है। और मजे की बात है कि केवल भारत के ही चर्च इस मामले में बिशप फ्रैंको के साथ नहीं खड़े हैं बल्कि वेटिकन भी उन्हीं के साथ खड़ा है। इस मामले में ननों की बात तो सुनी नहीं गयी, बल्कि साथ ही इस मामले में मुख्य गवाह को भी मार डाला गया। फादर कुरियाकोज कट्टुथारा अक्टूबर 2018 में ही पंजाब के होशियारपुर जिले के दसुया में ‘‘रहस्यमय परिस्थितियों’’ मृत मिले थे। और परिवार वालों ने केरल में पोस्टमार्टम की बात की थी!
परन्तु चर्च द्वारा इस पर पर्दा डालने का काम जारी रहा था। सिस्टर लूसी ने आवाज उठाई तो उन्हें ही कान्वेंट खाली करने के लिए कह दिया गया। परन्तु सिस्टर को लगा कि यहाँ उनकी आवाज़ नहीं सुनी गयी तो वेटिकन में सुनी जाएगी, परन्तु जून में उनकी निराशा और बढ़ गयी जब वेटिकन ने उनकी अपील यह कहते हुए ख़ारिज कर दी कि चूंकि उन्होंने ऐसे कार्य किए हैं जो स्वीकार्य नहीं है जैसे ड्राइविंग लाइसेंस लेना और कविताएँ लिखना!
अर्थात सर्वोच्च संस्था भी औरतों को ड्राइविंग सीखने और कविता लिखने जैसी मूलभूत आजादी नहीं देती है।
कई नन संदिग्ध स्थिति में मृत पाई गयी हैं
इससे पहले अप्रेल में एक और नन केरल के कोल्लम जिले के एक कुँए में मृत पाई गयी थी। पुलिस ने आरंभिक जांच में कहा था माबेल जोसेफ नामक नन ने “आत्महत्या” की है। और कथित रूप से एक पत्र भी मिला था।
जांच जारी थी, और जांच कहाँ पहुंचेगी, यह सभी जानते हैं!
चर्च द्वारा यौन शोषण पर आ चुकी हैं कई रिपोर्ट्स
समाचार एजेंसी एपी ने वर्ष 2018 में एक रिपोर्ट लिखी थी, जिसमें यह स्पष्ट किया था कि भारत में दशकों से चर्च परिसर के भीतर ननों का यौन शोषण हो रहा है। ननों ने विस्तारपूर्वक बताया था कि कैथोलिक पादरी कैसे उनपर सेक्स के लिए दबाव डालते हैं। और ऐसा नहीं हैं कि कैथोलिक चर्च के सेंटर कहे जाने वाले वेटिकन को इस विषय में पता नहीं है। उन्हें यह जानकारी है कि एशिया, यूरोप, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में पादरी और बिशप ननों का यौन शोषण करते आ रहे हैं। हालांकि यह भी सत्य है कि इसे रोकने के लिए वेटिकन ने बहुत ही कम कोशिशें की हैं।
इस रिपोर्ट में कई ननों ने यह भी बताया है कि यदि वह आवाज़ उठाती हैं तो उनपर वित्तीय संकट आ जाते हैं क्योंकि उनके खर्च चर्च पर ही निर्भर होते हैं।
कई ननों ने अपने डरावने अनुभव बताए थे, और जाहिर है सभी आवाज़ उठाने से डरती हैं। परन्तु जब फ्रैंको मुल्क्कल के विरुद्ध शिकायत दर्ज की गयी, तब संस्थागत गंदगी बाहर आई और लोगों ने देखा कि कैसे आरोपियों के पक्ष में जाकर चर्च खड़ा हो गया और शिकायत करने वाली नन ही जैसे दोषी हो गयी।
जेल में लोग मिलने गए परन्तु पीड़िता के पास कोई नहीं था।
क्रिसमस की खुशी के अवसर पर हम अपने सभी ईसाई बंधुओं को बधाई देते हुए चर्च और सरकार से यह अपील करते हैं कि वह ननों के साथ हो रहे इस शोषण के विरुद्ध कठोर कदम उठाए, जिससे यह नन भी हर उत्सव का आनंद उठा पाएं
अपनी सभी फेमिनिस्ट बहनों से भी अनुरोध करते हैं कि वह भी साथ आएं, अपनी इन बहनों के!