HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
33.1 C
Sringeri
Friday, March 31, 2023

17 जून 1674 जीजाबाई का प्रयाण दिवस

शिवाजी ने अपनी माँ का स्वप्न पूर्ण तो कर दिया था, फिर भी जीजाबाई के हृदय में कुछ अधूरापन था। वह अधूरापन क्या था? वह अधूरापन था शिवाजी का राज्याभिषेक न होना। उन्हें अब स्वतंत्र शासन में आँखें मूंदनी थी। उनका पुत्र इतिहास रच ही नहीं चुका था, बल्कि स्वयं ही इतिहास बन चुका था। औरंगजेब को वह अपनी शक्ति दिखा चुकी थीं कि एक हिन्दू स्त्री की शक्ति क्या होती है। वह यदि ठान ले तो वह सब कुछ प्राप्त कर सकती है। वह इतने बड़े मुग़ल शासन को भी धक्का दे सकती है।

और अब उन्हें अनुभव होने लगा था कि उनका जाने का समय आ गया था। अब उनके हृदय में जैसे सब कुछ पिछ्ला चल रहा था। उन्होंने एक ऐसे समय में जन्म लिया था जब हर ओर इस्लामिक आतंक छाया था। पश्चिमी शक्तियाँ भी भारत को नोचने के लिए आ गयी थीं। उन्हें अपने विवाह का दिन भी ज्ञात था जब अचानक से ही उनका भाग्य शाहजी के साथ जुड़ गया था।

जीजाबाई को ध्यान था कि उनके पिता कितने प्रभावशाली सरदार थे। लखुजी जाधव अहमदनगर दरबार में काफी प्रभावशाली सरदार थे, कहा जाता है कि वह सिंदखेड़ नामक गाँव के राजा थे। इतना तो तय है कि वह बहुत अमीर एवं अहमदनगर दरबार में बहुत प्रभावशाली थे। उनके घर पर जब त्यौहार मनाया जाता था तो लगभग सभी मराठा अधिकारी और सरदार अपने अपने परिवारों के साथ आते थे। उस साल भी आए। जब जीजा मात्र पांच या छ वर्ष की थीं।

मालोजी, जो अहमदनगर दरबार में एक वीर सैनिक थे, उनके पुत्र शाहजी, जिनकी उम्र जीजाबाई से कुछ ही वर्ष अधिक होगी, जीजाबाई के साथ खेलने लगे। और खेल ही खेल में लखुजी के मुंह से निकला “कितनी प्यारी जोड़ी है” और मालोजी ने यह सुन लिया। कुछ दिनों बाद ही शाहजी और जीजाबाई का विवाह हो गया। (डेनिस किनकैड-शिवाजी द ग्रेट रेबेल)

शिवाजी का जन्म शिवनेरी के दुर्ग में हुआ था। उस समय शाहजी जीजाबाई के साथ नहीं थे। मगर जीजाबाई ने साहस नहीं हारा। जीजाबाई ने अपने पुत्र में एक स्वप्न देखा, और उस स्वप्न को पूरा करने के लिए जीवन के हर सुख त्याग दिए। जीजाबाई ने अपने पुत्र के माध्यम से मुगलों के अत्याचारों के विरुद्ध एक स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने का स्वप्न देखा। यह स्वप्न साधारण स्वप्न नहीं था।

परन्तु जीजाबाई भी कहाँ साधारण थीं? जीजाबाई को तो जैसे महादेव ने भेजा ही था स्त्री का एक ऐसा आदर्श प्रस्तुत करने के लिए जिनका अनुसरण सदियों तक किया जाने वाला था। जिनका नाम आदर्श माता में सर्वथा प्रथम स्थान पर आने वाला था। कैसी रही होंगी वह महिला जिन्होनें गुलामी में रहते हुए स्वप्न ही नहीं देखा, अपितु उसे पूर्णतया साकार किया।

जब शिवाजी ने उनकी गोद में आँखें खोली होंगी, तब उनके उस स्वप्न ने और बड़ा आकार लिया होगा, जो अब तक अंगड़ाई के रूप में था। शिवाजी तलवार ही उठाएंगे ऐसा उन्हें ज्ञात था। शिवाजी बड़े होते गए, उन्हें वह उनके जीवन के लक्ष्य समझाती गईं। उनके जीवन का लक्ष्य था स्वराज्य, और मात्र स्वराज्य!

उन्होंने मुगलों के होते हुए भी अपना एक स्वतंत्र शासन का सपना देखा। वह भगवा शासन में अंतिम सांस लेना चाहती थीं। परन्तु उससे पहले एक लम्बी यात्रा थी जो उन्हें और उनके पुत्र को करनी थी। जो हिन्दुओं को करनी थी। उन्हें मुगलों का घमंड तोडना था, और वह सरल कार्य नहीं था। मुगलों का साम्राज्य कोई छोटा मोटा साम्राज्य नहीं था। और शाहजी मुगलों की निगाह में आ चुके थे। उन्हें हर कीमत पर मुग़ल पकड़ना चाहते थे। पर वह पकड़ में नहीं आ रहे थे। अंतत: जब शिवाजी छोटे थे शायद तीन वर्ष तो जीजाबाई को मुगलों ने कैद कर लिया था। वह तीन वर्षों तक मुगलों की कैद में रहीं, और फिर एक दिन चुपके से भाग निकलीं! संभवतया यही सूझबूझ उन्होंने अपने पुत्र में स्थानांतरित कर दी थी, और तभी शिवाजी, जब जयसिंह के साथ हुई संधि के उपरान्त आगरा गए थे और औरंगजेब ने उन्हें कैद कर लिया था, उस कैद को तोड़कर शिवाजी सुरक्षित अपनी माँ के पास सुदूर दक्कन में आ गए थे।

जब शिवाजी आगरा से वापस आ गए थे तो उसके बाद जीजाबाई को यह विश्वास हो चला था कि अब भगवा दक्कन में लहराने ही वाला है। फिर आया वर्ष 1674, और जून का माह! इधर शिवाजी के छत्रपति घोषित होने का दिन समीप आता जा रहा था तो वहीं जीजा की साँसें कम होती जा रही थीं, जैसे वह सब कुछ समेट कर जाना चाहती  थीं। फिर आया 6 जून 1674, जब जीजाबाई का स्वप्न पूर्ण हुआ और शिवाजी छत्रपति बने!

शिवाजी जब इस नए रूप में जीजाबाई के सम्मुख गए तो माँ की आँखों से गर्व के अश्रु बह निकले।

रुंधे गले से बोलीं जीजाबाई “तुम जैसा पुत्र सदियों में एक बार जन्म लेता है। एक हुए थे राम जो अपने पिता की आज्ञा की पूर्ति के लिए वन चले गए थे और एक हो तुम, जिसने स्वतंत्रता के मेरे स्वप्न को अपना ध्येय बनाया। आज इस माँ का यह आशीर्वाद है शिवा, कि तुम इतिहास के अमिट हस्ताक्षर रहोगे। भारत के वीरों का इतिहास तुम्हारे बिना पूर्ण न होगा। अब मैं शांति से आँखें मूँद सकती हूँ!” 

महल में नारे लग रहे थे

छत्रपति शिवाजी की जय और शिवाजी नए कर्तव्य पथ पर बढ़ रहे थे। पराधीनता के युग में स्वतंत्र हिन्दू साम्राज्य की नींव रखी जा चुकी थी। दिल्ली की सत्ता तक संदेशा चला गया था! एक साया जो अँधेरे में था, उसकी आँखों से भी खुशी के आंसू बह निकले! “खुदा, शुक्रिया तुम्हारा! अब पूरी ज़िन्दगी इसी खुशी में काट लूंगी!” औरंगजेब यह देखकर कुपित तो था, परन्तु अब कुछ करने की स्थिति में नहीं था! बस उत्तर में बैठकर दक्कन में लहराते स्वतंत्र भगवा को देख सकता था!

जीजाबाई ने अपने पुत्र के स्वतंत्र राज्य में 17 जून 1674 को अंतिम सांस ली! जीजाबाई सदा आदर्श हिन्दू स्त्री बनी रहेंगी क्योंकि उन्होंने एक ऐसा लक्ष्य प्राप्त किया, जो प्राप्त करना न ही सहज संभव था और न कल्पनीय था। उन्होंने अकल्पनीय प्राप्त किया तथा  हिन्दू जनमानस के हृदय में सदा के लिए बस गईं।

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.