नब्बे के दशक को इस बात के लिए भी याद किया जा सकता है कि इस दौर में भारत को विश्व-स्तरीय सुन्दरीयाँ मिली l इनमें विशेष रूप से सुष्मिता सेन, प्रियंका चोपड़ा, युक्ता मुखी आदि का नाम लिया जा सकता है l सौन्दर्य-प्रतियोगता में जब इनसे इनके आदर्श के बारे में पूछा जाता था तो लगभग सबके मुख से एक ही नाम निकलता था- ‘मदर टेरेसा’ l इनके आलावा देश में नारीयों का गौरव बढ़ाने वालों की कोई कमी रही हो ऐसा नहीं, लेकिन जागरूकता के आभाव के कारण शायद ये स्थिति बनती होगी l स्वभाविक है, इसमें उनका दोष नहीं l
जवाहरलाल नेहरु ने दुनिया के इतिहास पर एक किताब लिखी है, ‘ग्लिम्प्सेस ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’ l इस किताब में एक जगह उल्लेख मिलता है कि १९ वीं सदी के मध्य-काल में मराठा और सिख हिन्दू-पुनरुत्थान के शिखर पर थे l और उनके ही द्वारा मुग़लों को अंततः हिंदुस्तान की सत्ता से उखाड़ फेंका गया, ना कि अंग्रेजों द्वारा (पृष्ठ- 365, 370)l इस दौरान सिखों का नेतृत्व महाराजा रणजीत सिंह के हांथों में थे; और मराठों का रघुनाथ राव और मल्हार राव होलकर के हांथों l मराठों को विजेता की इस अवस्था में पहुंचाने में योगदान रहा छत्रपति शिवाजी के द्वारा निर्मित स्वराज्य की आकांशा और उसको पाने के लिए धैर्य के साथ कुशल रणनीति का परिपालन l
वीर छत्रपति शिवाजी को जन्म देने वाली महान विदुषी थी माता जीजाबाई l उनके अपने जीवन में मिले पीड़ा दायक कटु अनुभवों नें ही उन्हें छत्रपति शिवाजी को निर्माण करने की दिशा में अग्रसर किया l जब जिजाबाई अपनी बाल्यावस्था में थीं तो एक दिन उनका एक मंदिर के पास से गुजरना हुआ, तो देखती क्या हैं वहां कुछ स्थानीय पठान सैनिक मंदिर के ओटले पर बैठे हुए है और हुक्का पी रहे हैं l ये देख कि हुक्के से निकलता धुआं मंदिर के अन्दर जा रहा है, उन्होंने इस का विरोध किया l इस पर सैनिकों नें अभद्र रूप से डांटते हुए चांटा मार उन्हें भगा दिया l जब वे घर पहुंची और रोते हुए पिता से शिकायत करी तो उन्होंने उसकी बात अनसुनी कर दी l अबोध बालिका को क्या पता था कि परकीयों के अधीन जीवन जीनें वाले अन्य हिन्दुओं की ही तरह उसके पिता अन्याय सहने को विवश थे !
बालिका बड़ी हुई और उसकी शादी निजामशाह के अधीन जागीरदार शाहजीराजे के साथ हो गयी l एक दिन मौका पाकर उसने अपने पति को बचपन की घटना सुनाते हुए उनसे पूछ लिया कि क्या इन आततायीयों को देश के बाहर नहीं निकाल जा सकता l सुल्तान के लिए जीने-मरने वाले शाहजीराजे नें उन्हें चुप रहने की सलाह देते हुए बात ख़त्म कर दी l इस बीच उनकी जेठानी को महावत खान नाम का पठान सेनापति अपहरण करके उठा ले गया, और पूरा खानदान असाहय बन देखता रह गया l
इधर बालिका जिजाबाई नें बालक शिवाजी को जन्म दिया l अपने पति और खानदान से उम्मीद खो चुकी जिजाबाई नें ठान लिया कि अपने सपने को साकार करने के लिये वो अब अपने बालक शिवा का निर्माण करेंगी l और केशव पंडित, दादाजी पन्त, संत समर्थ रामदास आदि की देख-रेख में राज-काज के लिए जरूरी विधाओं को लेकर उनकी शिक्षा-दीक्षा शुरू हुई l और जब तक शिवाजी युवा होते वो देश कि दुरावस्था के कारण और उसके निदान के मार्ग से सु परिचित हो चुके थे l फिर एक दिन वो आया जैसा कि नेहरूजी जी के उपरोक्त वर्णन में हमें देखने को मिलता है l
जीजाबाई कितनी प्रगतिशील और दूरदृष्टिवान थीं l इसको एक और उदहारण से अनुभव किया जा सकता है l विवध क्षेत्रों के कुशल संचालन के लिए शिवाजी नें अष्ठ मंडल का निर्माण किया था, जिसमें एक प्रायश्चित मंडल भी था l इसके प्रमुख राव निवालकर थे l मुसलमान बन जाने पर इनकी स्वयं घर-वापसी हुई थी, और जीजा बाई के सरंक्षण में इन्हें पुन: हिन्दू बनाया गया था l फिर उनके सुपुत्र का विवाह जीजाबाई नें अपने ही परिवार की एक लड़की से कराया था l
इसी प्रकार अहिल्या बाई होलकर, रानी कमलापति जैसी अनेकों महान नारियां है अंतरराष्ट्रिय महिला दिवस के अवसर पर जिन्हें हम याद कर सकते हैं l