राहुल गाँधी के मायावती को लेकर दिए गए बयान पर पलट वार करते हुए उनकी (मायावती) प्रतिक्रिया इस रूप में आयी है कि राजीव गाँधी बसपा के विरोध में हद पार करते हुए कांशीराम को सीआईऐ का एजेंट तक बता गए थे | वैसे इस बात को भी याद रखना चाहिए कि धारा 370 के विरुद्ध संसद में भाजपा का समर्थन करते हुए उन्होंने कहा था कि बाबा साहब अम्बेडकर देश में समानता के पक्षधर थे, और वे अनुच्छेद 370 के पक्ष में बिल्कुल नहीं |
आगे चलकर जब राजस्थान में सत्ताधारी कांग्रेस ने बसपा के विधायक तोड़कर अपने साथ मिला लिया, तो मायावती का ट्वीट आया था कि कांग्रेस हमेशा ही बाबा साहब आम्बेडकर एवं उनकी मानवतावादी विचारधारा की विरोधी रही है | इसी कारण डॉ. आम्बेडकर को देश के पहले कानून मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था | कांग्रेस ने उन्हें न तो कभी लोकसभा में चुनकर जाने दिया और न ही भारतरत्न से सम्मानित किया | यहाँ उनके द्वारा दिए गए बयान से जुड़े इतिहास की सच्चाई क्या है ये भी जानना लेना जरूरी होगा |
दरअसल बाबा साहब चाहते थे कि देश में सामान नागरिक सहिंता लागू हो | लेकिन मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए नेहरु उनके विरोध में उतर आये. इन परिस्थितियों में जब सन १९५२ के महाराष्ट्र के भंडारा के उपचुनाव में कांग्रेस के विरुद्ध डॉ. अम्बेडकर शेडयूल कास्ट फेडरेशन से खड़े हुए तो रा.स्वयं सेवक संघ के प्रचारक और भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक दत्तोपंत ठेंगरी के नेतृत्व में स्वयंसेवकों ने उनका पूरे दम-ख़म से समर्थन किया था | जबकि,सी.पी.आई. के संस्थापक सदस्य श्रीपाद अमृत डांगे ने अपील की थी कि कामरेड भले अपना वोट बर्बाद कर दें,पर अम्बेडकर को जीतने ना दें | चुनाव में पराजित बाबासाहब ने बाद में याचिका दायर की थी जिसमे कहा गया था कि कामरेड डांगे ने गैर कानूनी रूप से उनके विरुद्ध अपप्रचार किया |
यहाँ इस ओर ध्यान देना भी जरूरी होगा कि संघ से उनकी निकटता इस घटना से भी पुरानी थी | सन १९३९ में पुणे में लगे रा. स्व. सेवक संघ के संघ शिक्षा वर्ग में डा.अम्बेडकर का जाना हुआ था | उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया में वहाँ जो कहा वो जानने योग्य है –“अपने पास के स्वयंसेवक की जाति को जानने की उत्सुकता तक नहीं रखकर, परिपूर्ण समानता एवं भ्रातभाव के साथ यहाँ व्यवहार करनेवाले स्वयंसेवकों को देखकर मुझे आश्चर्य होता है|”
डॉ. अम्बेडकर के प्रमुख अनुयायियों में से एक रेवाराम कबाडे थे | आगे चलकर उन्हें भी नागपुर में आयोजित रा.स्वयं सेवक संघ के संघ शिक्षा वर्ग के सार्वजानिक समारोह में प्रमुख अतिथि के रूप में बुलाया गया था | नेहरु द्वारा संघ पर लगाये गए प्रतिबन्ध को उठाने के लिए सरदार पटेल व श्यामाप्रसाद मुखर्जी के साथ ही बाबासाहब ने भी प्रयत्न किये थे | जुलाई १९४९ में प्रतिबन्ध उठने के बाद संघ के द्वितीय सरसंघचालक गुरु गोलवलकर उनका [बाबासाहब] आभार मानने के निमित्त सितम्बर १९४९ में उनसे मिले थे | (‘बाबासाहब अम्बेडकर और सामाजिक क्रांति की यात्रा’- दत्तोपंत ठेंगडी , अनुवादक- श्रीधर पराड़कर)
दरअसल इतिहास का स्वयं अध्ययन ना करते हुए औरों के तैयार किये भाषण पर राहुल गाँधी अपना भरोसा कायम रखे रहना चाहते हैं, इसलिये उनके साथ ये स्थिति अक्सर बनती रहती है और वे अपने ही हांथों अपनी मुश्किलें बढ़ाते रहते हैं |
Late Rajiv never dreamt that his son Rahul wife Sonia will be agents of China for destroying India from inside with or without power???