वैसे तो विज्ञापनों पर बहुत कुछ लिखा गया और बोला गया है, परन्तु फिर भी बार बार कहना चाहिए। क्योंकि अब विज्ञापन से बढ़कर हिन्दू समाज को तोड़ने के लिए एक उपकरण बन गए हैं, और इनमें भी हिन्दू लड़की इनके निशाने पर होती है। हिन्दू लड़की को परिवार एवं समाज से तोड़ने के लिए हमेशा ही एक नयी चाल और नयी अवधारणा लेकर आते हैं।
अंडरगारमेंट्स और डियो के बहाने हिन्दू लड़कियों को सेक्स की चीज़ बनाना
पुरुषों के बनाए अंडर गारमेंट्स में लड़कियों का क्या काम है? पुरुषों के अंडरगारमेंट सेक्स अपील में क्या सम्बन्ध है? यदि पूछा जाएगा तो सहज ही कोई उत्तर न दे पाए, परन्तु फिर भी लड़कियों को मात्र वस्तु बनाकर पेश कर दिया जाता है। फेमिनिस्ट आन्दोलन कभी भी इस बात पर कोई भी आपत्ति व्यक्त नहीं करते हैं कि लड़कियों को अंतत: इन उत्पादों का एक ग्राहक ही क्यों बना दिया गया है?
हाल ही में लक्स कोजी का विज्ञापन हिन्दू स्त्रियों को और विशेषकर साड़ी पहनने वाली लड़कियों को लेकर बनाया गया है। आज जब लड़कियाँ साड़ी पहनकर मिशन मंगल जैसे अभियान पूरे कर रही हैं तो ऐसे में यह दिखाना अत्यंत निंदनीय है जिसमें लड़की एक अंडरगारमेंट पर फ़िदा हो रही है। ऐसा क्यों होता है कि पुरुषो का अंडरगारमेंट और लड़की मॉडल?
सभी को ज़टाक डियो का विज्ञापन याद होगा, जिसमें एक नवविवाहिता अपनी सुहागरात पर किसी लड़के को ज़टाक डियो लगाते देखकर, शादी छोड़कर चली जाती है। अपने सारे आभूषण आदि उतारकर रख देती है और अंगूठी भी! यह विवाह पर आक्रमण था और नवविवाहिता को मात्र सेक्स के साथ जोड़ने का कुप्रयास था, एवं अग्नि के सम्मुख लगाए फेरों को मात्र एक कामुक अर्थात एरोटिक गंध से भी हीन दिखाया था
ऐसे ही वाइल्ड स्टोन डियोड्रेंट का विज्ञापन भी यदि पाठकों को स्मरण हो।
बंगाली परिवेश में माता की पूजा का अपमान
इस विज्ञापन में एक बंगाली बहू परम्परागत लाल साड़ी में है और पूरे विज्ञापन में ढोल मंजीरे बज रहे हैं। महिला के माथे पर लाल सिन्दूर है। और वह अपने घर में एक ऐसे व्यक्ति से टकराती है, जिसने वह डियोड्रेंट लगाया हुआ है, और टकराते ही वह सुगंध में खो जाती है और विज्ञापन में ही सम्बन्ध स्थापित करते दिखाया है, परन्तु पृष्ठ भूमि में माता के आगमन के ढोल मंजीरे चल ही रहे हैं।
यह अत्यंत अपमानजनक विज्ञापन था। और यही कारण था कि उसे हालांकि प्रतिबंधित कर दिया गया था, परन्तु यूट्यूब पर अभी भी वह है! और विज्ञापन जगत ने हमेशा साड़ी पहने हिन्दू महिला को सेक्स कुंठित और सेक्स की भूखी दिखाया है, जैसे उसके मस्तिष्क में सदा ही सेक्स भरा रहता है।
गर्भ निरोधक को भी यौन संतुष्टि का प्रतीक बनाकर बेचा जा रहा है
ऐसा ही मामला है गर्भ निरोधक का, जिसका उद्देश्य कुछ और है, परन्तु उसे इस प्रकार दिखाया जाता है, जैसे वह मात्र सेक्सुअल संतुष्टि के लिए है।
हिन्दुओं के कामसूत्र पर अजीब सी टिप्पणी करने के लिए स्लाइस के साथ आमसूत्र बना दिया था, जिसमें एक आम के ड्रिंक पर ही लड़की को सेक्सुअल ऑब्जेक्ट बनाकर प्रस्तुत कर दिया था।
शेष भी कई है। परन्तु यह देखकर दुःख होता है कि लड़कियों के कामुक हावभाव ही उत्पादों को बेचने के लिए रह गए हैं। लड़की का शरीर ही क्यों निशाने पर रहता है, और वह भी अधिकाँश में साड़ी पहले महिला का।
हिन्दू स्त्रियों में आत्महीनता भरने और उन्हें सेक्स टॉय बनाने का षड्यंत्र
विज्ञापन जैसे हिन्दू स्त्री की देह तक सिमट कर रह गया है, उसे हिन्दू स्त्रियों की मेधा, प्रतिभा और उसकी रचनात्मकता से कोई मतलब रह ही नहीं गया है। उसे हिन्दू स्त्रियों की अस्मिता मात्र इतनी लगती है कि वह किसी न किसी तरह से केवल पट रही है, केवल डीयो पर ही अपने मातापिता और संस्कार को छोड़ सकती है।
हिन्दू लड़की के मनोविज्ञान से खेला जा रहा है और उसे मानसिक रूप से गुलाम बनाया जा रहा है और वह भी ऐसे बाज़ार का जो खुद हिन्दू विरोधी है। कोई भी आता है और आकर हिन्दू मान्यताओं पर प्रश्न उठाता है और उसमें महिला ही अपनी मान्यताओं के विरुद्ध बोलती है, जबकि उसे शायद उन मान्यताओं के विषय में पता ही नहीं होगा!
कभी केवल अंग्रेजी बोलने वाली लड़कियों या लड़कों को आधुनिक बता दिया जाता है। यह हिन्दू लड़कियों को उपभोक्ता संस्कृति का हिस्सा नहीं बना रहे हैं, बल्कि हिन्दू लड़की को वस्तु ही बना रहे हैं। वह उसके विवेक को नष्ट कर उसे मात्र एक गुलाम बनाते जा रहे हैं।
यह दुखद है कि उपभोक्ता भी हिन्दू होते हैं और बुराई भी हिन्दू धर्म की करनी है, आत्महीनता का भाव और आत्मदीनता का भाव भी उन्हीं के भीतर डाला जाता है, गुलाम भी हिन्दुओं को बनाया जा रहा है!
फेमिनिस्ट वेबसाइट्स और उन्हें पैसा देने वाले:
यह भी देखना होगा कि इस मानसिकता में कहीं फेमिनिस्ट वेबसाइट्स का तो हाथ नहीं है? और वह लोग इस लड़की को वस्तु बनाने वाली मानसिकता का कितना विरोध कर रही हैं? और यदि वह समाज तोड़ रही हैं, तो उन्हें पैसे कहाँ से मिल रहे हैं?
एक वेबसाइट इन दिनों बहुत अधिक दिखाई दे रही है और वह लगभग हर प्लेटफोर्म पर दिखाई देती है, उसमें ओपिनियन के नाम पर हिन्दू द्वेष से आगे कुछ नहीं है। इस हद तक हिन्दू द्वेष से भरी है यह Shethepeople, कि यदि ओपिनियन यदि कोई लड़की रोज पढ़े तो वह हिन्दू धर्म को ही सबसे अधिक पिछड़ा प्रमाणित कर दे।
इसमें अधिकाँश ओपिनियन मात्र हिन्दुफोबिया से भरे हुए कुंठा से परिपूर्ण पोस्ट होते हैं, और बार बार हिन्दू धर्म से सम्बन्धित मान्यताओं को ही नीचा दिखाना जिसका उद्देश्य है।
परन्तु विडंबना यह भी है कि ऐसी हिन्दू फोबिया से ग्रसित वेबसाइट्स को धन भी भारतीय व्यापारिक घरानों से प्राप्त होता है।
shethepeople को आनंद महिन्द्रा, जो महिन्द्रा समूह के अध्यक्ष हैं, उनकी ओर से एक अज्ञात राशि निवेश के रूप में प्राप्त हुई थी। आनंद महिन्द्रा के अनुसार महिलाओं को अपनी आवाज़ रखने के लिए एक मंच की जरूरत होती है और उनमें एक बौद्धिक भूख होती है जिसे साथ जोड़ने की और उन्हें उससे सम्बन्धित कंटेंट के साथ सशक्त करने की जरूरत होती है।”
मगर क्या जो लोग ऐसे वेंचर्स में निवेश करते हैं, क्या उन्हें यह देखना नहीं चाहिए कि क्या इस मंच के माध्यम से परोसा जा रहा है या फिर समाज के लिए वह कितने उपयोगी है?
परन्तु यह देखना और दुखद है कि आनंद महिन्द्रा ह्यूमेनिटी सेंटर हिन्दू धर्म का विरोध करने वाली कुख्यात “डिसमेंटलिंग ग्लोबल हिंदुत्व कांफ्रेंस” के सह-प्रायोजक के रूप में लिस्टेड थी।
यह कुछ उदाहरण हैं, जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि धर्म को सच्चे अर्थों में समझना होगा, धर्म से नई पीढ़ी को जोड़ना होगा, जिससे विज्ञापन का कंटेंट बनाने वाला युवा धर्म के विरोध में जाकर कोई कंटेंट न बना सके।