तमिलनाडु के बहुत से जिलों के कई मंदिरों में आरती-पूजा-पाठ लगभग अब बंद हो चुकी है. अतिक्रमण, प्रशासन की उपेक्षा, और परिणामस्वरूप घोर अव्यवस्था के कारण लोग भी मंदिरों में जाने से बचने लगे हैं. मंदिरों की रक्षा में लगे टेम्पल वारशिपिंग सोसाइटी के हवाले से खबर है कि तंजावुर का ऐतिहासिक शिव मंदिर और गणेश मंदिर और बहुत से अन्य धार्मिक स्थल सरकार ने शैक्षणिक संस्थान, उसके अपने दफ्तर या अन्य उपक्रमों के संचालन में लगे संगठनों को आवंटित कर दिया है.
लेकिन मुस्लिम या ईसाई धार्मिक स्थलों को लेकर सरकार की तरफ से ऐसे साहस का प्रदर्शन देखने को नहीं मिला है. सबसे आघात पहुचाने वाली बात यह है कि देश के सम्पूर्ण हिन्दूओं के आस्था के केंद्र कन्याकुमारी और रामेश्वरम भी इसके अपवाद नहीं.
राहुल गाँधी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा एक पादरी के साथ इंटरव्यू करके शुरू की थी, याद होगा . ‘ईसा मसीह ही वास्तविक भगवान हैं जो कि एक मानव के रूप में प्रकट हुए.वे किसी शक्ति देवी की तरह नहीं थे.’ ये विवादस्पद वाक्य इन्हीं तमिल पादरी जार्ज पोनान्या के थे , जब राहुल गाँधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा के शुरू होने के पहले उनसे मिले थे. जिस कन्याकुमारी के ये पादरी महोदय हैं, वहां हाई कोर्ट ने एक दायर याचिका को लेकर माना था कि गरीब हिन्दुओं का हक़ धर्मान्तरित ‘क्रिप्टो क्रिस्चियन’ निगल रहे हैं. यहाँ के ईसाईयों के एक वर्ग ने पादरीयों के भड़काने पर विवेकानंद स्मारक के निर्माण का विरोध तक किया था. चर्च के पादरी ने ‘भारत माता’ को बीमार बताया था.
लेकिन अब बात सनातन धर्म पर जा पहुँची है, और उसके विषय में अपमानजनक टिप्पणियों की झड़ी लगा दी गयी है. इस में शामिल हैं बिहार, उत्तरप्रदेश से लेकर कर्णाटक, तमिलनाडु के अपने को धर्मनिरपेक्ष बताने वाले नेता. प्रमुख रूप से उदयनिधी स्टॅलिन का नाम सामने है.
उदयनिधि ने केवल अपने पिता ऍमके स्टालिन का ही अनुसरण किया है. स्टालिन विपक्ष की पटना में पहली बैठक में शामिल हुए थे. उन्होंने उद्घोषणा की थी कि सारे दल संगठित होकर ‘सेकुलरिज्म’ की रक्षा करे, ईसाई-मुसलमानों की रक्षा के लिए’. लेकिन ध्यान में रखने की बात ये है कि पिछले 2020 के चुनाव में चर्च ने उनकी पार्टी डीएमके का खुला समर्थन किया था. चुनाव जीतने पर अब शासन तंत्र चर्च के बताये रास्ते पर है. स्टॅलिन स्वयं चर्च में जाकर समर्थन पर धन्यवाद देकर बोलते पाए गए कि उनकी सरकार चर्च की ही सरकार है. एक ईसाई एक्टिविस्ट और चर्चित लेखिका ने यहाँ तक बोला कि तमिलनाडु में यदि धर्मान्तरण को गति देना है तो भाजपा को रोकना होगा. इसका डीऍमके पार्टी के हिन्दू नेताओं ने जमकर विरोध भी किया था. पर अब उदयनिधि के बयान को देखकर लगता है पार्टी को उनकी परवाह नहीं.
लूथेरन चर्च ने 1706 में भारत में प्रवेश किया . सर्व प्रथम तमिलनाडु में इसको लेकर आने वालों में प्रमुख रूप से शामिल थे संत ज़िगेन्वाल्ग, जब उनकी उम्र मात्र 23 वर्ष की रही होगी. उन्हें इस बात के लिए याद किया जाता है कि उन्होंनें यूरोप से भारत में प्रिंटिंग तकनिकी लायी थी. पर देश को उन्हें इसलिए नहीं भूलना चाहिए कि उन्होंने केवल बाइबिल ही प्रिंट हो ये कड़ाई से निर्देश दिए थे. उनके रहते भारत में रचित कोई धर्म-शास्त्र की प्रिंटिंग नहीं की जा सकती थी. उन्होंने तमिलनाडु में मात्र 14 वर्ष बिताये और उनका निधन हो गया.
1998 में भारत में आकर ईसाईयों के सर्वोच्च धर्मगुरु पोप जॉन पॉल ने देश के कार्डिनलों की एक सभा कोलकोता में आयोजित की थी. उस सभा में पोप ने कहा था-‘उपासना की स्वतंत्रता में मतान्तरण की स्वत्रंता शामिल है. यदि कोई अपना मत बदलना चाहता है , तो किसी को ये अधिकार नहीं है कि उसकी मंशा को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से बदलने की कोशिश करे. ईशा मसीह के जन्म के प्रथम हजार वर्षों में ईसाइयत यूरोप में स्थापित हुई. दूसरे हजार वर्षों में अफ्रीका में, अब तीसरे हजार वर्षों में हमें एशिया में ईसाइयत को स्थापित करना है.
स्टॅलिन, उनके पुत्र और न जाने कितने देश में उन्हीं के काम को आगे बढ़ाने में लगे हुए.