ट्रम्प ने चुनाव जीतते ही ताइवान को सचेत किया था कि वो अपनी कंपनी टीएसएमसी को चीन को आर्टिफिशियल इन्टेलिजेन्स(एआई) में उपयोगी सेमीकन्डक्टर चिप्स की आपूर्ति करने से रोके, जिसका पालन तत्काल हुआ। इसके बाद भी चीन में एआई की ग्रोथ बढ़ती रही, यहाँ तक कि अब डीपसीक के संचालन को शुरू करने की घोषणा भी कर दी गई।
बताया जाता है डीपसीक में यूएस की कॉम्पनी एनवीडीया की चिप्स का उपयोग हुआ है। इसकी प्रतिक्रिया में यूएस के सांसदों ने ट्रम्प से आग्रह किया है, डीपसीक में लगने वाली एनवीडीया की चिप्स पर नए प्रतिबंधों को लागू करने पर विचार किया जाए।
लेकिन एक कदम आगे निकालते हुए चीन ने भी लगे हाँथ चेतावनी दे डाली है कि यदि उसे चिप्स नहीं मिलेंगी, तो यूएस को उससे चिप्स के निर्माण में आवश्यक क्रिटिकल मिनरल्स गैलीयम , जर्मेनीयम, लिथीयम , एंटीमोनी भी नहीं मिलने वाले। पहले से ही निर्मित अविश्वास के माहौल में ये ताजा घटनाक्रम यूएस-चीन के मध्य संघर्ष को तेज ही करेगा। लेकिन संभावना ये जताई जा रही है कि इसके साथ ही यूएस के भारत के प्रति झुकाव में भी तेजी देखी जा सकती है। खबर है, एनवीडीया ने भारत में अपना भविष्य को तलाशना भी शुरू कर दिया है।
जबकि भारत ने भी घोषणा कर दी है कि जल्दी ही वो डीपसीक से भी ज्यादा एडवांस वर्ज़न अपने यहाँ निर्मित करने जा रहा है। आवश्यक क्रिटिकल मिनरल्स के लिए भारत, अमेरिका और अन्य देशों ने साझा प्रयास करने पर भी काम शुरू कर दिया है। लेकिन एनवीडीया पर पूर्ण निर्भर बने रहने का खतरा भारत भी उठाने को इच्छुक नहीं है। और वो भी अपने डोमेस्टिक चिप फैब्रिकैशन प्लांट में एआई चिप के निर्माण में अग्रसर हो चुका है। पर आवश्यक क्रिटिकल मिनरल के लिए फिर भी चीन की जरूरत पड़ेगी। जो कि भारत को मंजूर नहीं, इसलिए क्रिटिकल मिनरल मिशन को हरी झंडी दिखा दी गई है। आज दुनिया का सर्वाधिक 44 मिलियन टन क्रिटिकल मिनरल रिजर्व के साथ चीन दुनिया के शीर्ष पर है, जबकि भारत 6.9 मिलियन टन के साथ चौथे नंबर पर।
आज अमेरिका का चैटजीपीटी को डाउनलोड करने पर $20 प्रति माह देना होता है, तो वहीं अब डीपसीक के लिए मात्र 0.50 डॉलर प्रति माह। ओपन एआई, मेटा, एनवीडीया ये सब कंपनी बड़े खतरे में पड़ सकतीं हैं, इसी कारण अमेरिका को डीपसीक को प्रतिबंधित करने के लिए सख्त कानून का सहारा लेना पड़ा है। पर इस बीच अमेरिका के ओपन-एआई के सैम आल्टमन ने भारत का दौरा कर आईटी मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव से मुलाकात की है। जिसमें बताया गया कि भारत कैसे अपने सम्पूर्ण एआई स्टैक को निर्मित करने को प्रयत्नशील है। क्यूंकी यदि स्वनिर्मित जेनरेटिव एआई बनाना है तो पहले जीपीयू चाहिए, जिसे चिप कहा जा सकता है जो कि प्रोसेसिंग का काम करती है । लार्ज लैंग्वेज माडल चाहिए जो कि जीपीयू के बैसिस पर ट्रैन्ड होगा और एप चाहिए जो कि सर्विस को डेलिवर करेगा। ये तीनों ही मिलकर एआई-स्टैक के रूप में काम करती हैं।
कोस्ट ईफेक्टिव(कम लागत में बेहतर क्षमता) निर्माण में भारत ने दुनिया में अपनी ख्याति चंद्रयान जैसे अन्य अंतरिक्ष मिशन की सफलता से स्थापित कर ही दी है। और आज यदि चीन से निपटना है तो ये भारत के रहते ही संभव हो पाएगा, इसको आल्टमन जानते हैं। बदले में भारत ओपन एआई के लार्ज लैंग्वेज माँडल का अपने लिए उपयोग कर सकेगा। और साथ ही एप्स-निर्माण में सहयोग अर्जित कर पाएगा।
इसी क्रम में इस दिशा में भी प्रयत्न चल रहें कि रूस- यूक्रेन का युद्ध समाप्त हो। जो हिस्सा रूस के पास आ चुका है वो उसके पास ही रहे। और शेष यूक्रेन के पास, इस शर्त के साथ कि जहां क्रिटिकल मिनरल्स पाए जाते हैं वहाँ अमेरिका की कॉम्पनीयों को उनके उत्खनन को सुलभ बनाया जाए ।