मध्य पूर्व ने पैसा केवल अपने तेल के स्त्रोत के माध्यम से ही नहीं बनाया। तेल से प्राप्त राशि को निवेश करके भी बनाया। अमेजन , वालमार्ट, ट्विटर और यहाँ तक की फुटबाल से जुड़ा फिफा जैसे खेल संगठनों में भी यहाँ के शेखों का पैसा लगा हुआ है। आज हम यहाँ से 45% के लगभग तेल आयात करते हैं। तो यहाँ काम कर रहे भारतीयों से देश में रेमिटेंस् आता है, साथ ही अन्य वस्तुओं के अलावा शोधित तेल हम वापस यहाँ निर्यात भी करते है ।
पैसा के आवागमन के यही रास्ते है। और इसको लेकर किसी के द्वारा भ्रमित होने की जरूरत नहीं। अडानी को लेकर उठे सवालों पर तो बिल्कुल नहीं। एलआईसी ने टाटा-ग्रुप में 1.3 लाख करोड़ निवेश किये हैं; आदित्य बिरला ग्रुप में 42 हजार करोड़ ; 82.80 हजार करोड़ आयटीसी ; 64.42 करोड़ एचडीएफसी बैंक ; 79.36 हजार करोड़ एसबीआई में जबकि अडानी कंपनी में 60 हजार करोड़ । ये भी भूला दें ये ठीक नहीं कि एलआईसी एक लिस्टेड कंपनी है जो कि सेबी (SEBI) तथा इरडाई (IRDAI) के द्वारा निर्धारित नियमावली से बंधी हुई है। एलआईसी कुल 55 लाख करोड़ रुपए का प्रबंधन करती है, जिसमें से वार्षिक निवेश 5.5 लाख करोड़ का है।
आडानी बिहार में पावर प्लांट लगाए सरकार की बड़ी इच्छा थी। लेकिन बिहार में पैसा लगाने से कौन है जो नहीं बचेगा। आडानी की भी पूरी कौशिश रही कि वह इससे बचें। लेकिन सरकार ने बड़े आग्रह के साथ जमीन उपलब्ध कराकर उन्हें मना ही लिया। लेकिन अब हमेशा की तरह राहुल गांधी को फिर शिकायत ये हुई की उन्हें सस्ते में जमीन क्यूँ दी ? लेकिन उन्हें कोई कैसे बताए कि दो तरह के रिटर्न होते हैं । एक होता है इकोनॉमिक रिटर्न , और इसमें कौन निवेश करता है । तो उत्तर है , इसमें सरकार निवेश करती। क्योंकि इसमें इकोनॉमिक रिटर्न केवल रेवेन्यू के रूप में ही प्राप्त नहीं होता । पावर प्लांट की ही उदाहरण लें तो इससे बिजली उत्पादन बढ़ेगा, बदले में बहुत से लाभ हासिल होंगे । उद्योग का विस्तार होगा; कृषि उत्पादन बढ़ेगा; इससे रोजगार सर्जन होगा है। ये कंपनी के द्वारा रिटर्न आन इन्वेस्टमेंट की तरह नहीं। सरकार रेविन्यू रिटर्न के आधार पर कार्य नहीं करती। इकोनॉमिक रिटर्न पर, समाज-कल्याण और देश के समग्र हित पर कार्य करती है।
देश आजाद हुआ तो स्वास्थ-सेवा; सिंचाई; सुरक्षा-व्यवस्था सरकार ने अपने हाथों में ली , क्योंकि अगर चाह भी लेती तो निजी क्षेत्र इसमें सीधे हाथ ही नहीं डालते। क्योंकि यहाँ जनहित में बहुत से ऐसे प्रावधान के साथ उन्हें काम करना होता, जो कि सीधे रेवेन्यू रिटर्न को प्रभावित करता है। जब बात जीडीपी की होती है तो वो इकोनॉमिक इंडेक्स को दर्शाता है।
आजादी के बाद स्थापित हेवी इंजीनियरिंग रांची की जमीन हजारों एकड़ में है । इसके बड़े भाग में आज भी खेती होती है। नेहरू जी ने इस जमीन को क्यूँ दिया था? क्योंकि इससे इकोनॉमिक रिटर्न प्राप्त होना था। लोगों को नौकरी मिलेगी ; तो देश को हेवी इंजीनियरिंग वस्तुएं । जिससे इन वस्तुओं को बाहर से आयातित करना ही न पड़े। (जयपुर डायलॉग) कोई कितनी कोशिश कर ले वो समाज में असंतोष फैलाने में सफल नहीं हो सकता, जब तक लोगों को समृद्धि से अपना हिस्सा हासिल हो रहा है। राहुल के पूर्वज जवाहरलाल नेहरू ये बहुत पहले ही लिख गए हैं।
देखें, ‘…. पीढ़ीयों से ब्रिटिश उद्योग का दुनिया पर आधिपत्य रहा। और इससे प्राप्त लाभ साथ ही भारत और अन्य अधीन राष्ट्रों के शोषण से धन-संपदा का देश में सतत प्रवाह बना रहा। इसका एक हिस्सा श्रमिकों तक भी पहुंचता रहा , और उनका जीवन स्तर उस ऊंचाई पर पहुँच गया जिसकी उन्होंने कभी कल्पना नहीं की थी। सही है, संपन्नता और क्रांति के मध्य अति अल्प समानता होती है। इससे श्रमिकों के बीच जो कभी क्रांति की भावना पनपने को थी वो भी विलुप्त हो गई।’ (ग्लिम्पसेसे ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री)
आडानी हों चाहे ‘वोट-चोरी’ , राहुल गांधी की ये लड़ाई कॉंग्रेस पार्टी के लिए नहीं अपितु काँग्रेस पार्टी के अंदर अपनी हैसियत को बचाए रखने की है। उनके द्वारा ये बताने की है पार्टी की दुर्गति का कारण उनकी अक्षमता नहीं बल्कि उनके द्वारा उठाए जा रहे मुद्दों के कारण है। उनकी तकलीफ ये है जो वो बोलते फिर रहें, उसके समर्थन न उनके सहयोगी दल न उनकी अपनी राज्यों की इकाई खड़ी दिख रही है।
