अंतत: अक्षय कुमार का कथित जादू और सरकार की प्रशंसा और तरफदारी भी सम्राट पृथ्वीराज चौहान फिल्म को हिट कराने में असफल हो रही है और अब उसके शो लगातार निरस्त हो रहे हैं। इस फिल्म से पूरे फिल्म उद्योग सहित देश के एक विशाल वर्ग को यह आशा थी कि यह फिल्म उनके हिन्दू गौरव को प्रस्तुत करेगी। हिन्दू योद्धाओं का जो विस्मृत इतिहास है, उसे बताएगी। वहीं इस फिल्म के साथ यश राज फिल्म्स का बैनर था, जो यह आश्वस्त करने के लिए पर्याप्त था कि भव्यता में कोई कमी नहीं रही होगी!
परन्तु ऐसा क्या हुआ कि कई राज्यों में कर मुक्त होने के बाद भी यह फिल्म दर्शकों को लुभा नहीं रही है। इसके क्या कारण हो सकते हैं? आइये समझने का प्रयास करते हैं कि क्यों जनता ने इसे नकार दिया?
उर्दू का अतिशय प्रयोग:
वैसे तो लोग इसके कई कारण बता रहे हैं, परन्तु सबसे बड़ा कारण है भाषा का ध्यान न रखना। सभी जानते हैं कि जब मोहम्मद गोरी ने आक्रमण किया था उस समय भारत की भाषा उर्दू नहीं थी। और इस फिल्म के डायलॉग में जमकर उर्दू के शब्दों का प्रयोग किया गया है। और गाने भी स्तरीय नहीं हैं।
लोगों की समीक्षा भी उर्दू को लेकर ही है कि कैसे इतनी अधिक उर्दू का प्रयोग किया जा सकता है?
क्या वह कालखंड ऐसा कालखंड था जब इश्क, वतन, औरत, हक़, फर्ज, रिश्ते, आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता था? उर्दू के तमाम शब्द ट्रेलर में ही दिखाई दे रहे थे एवं गाने भी एजेंडा वाले ही गाने थे।
सम्राट पृथ्वीराज फिल्म का हरि-हर गाना, जिसे वरुण ग्रोवर ने लिखा है, उसमें कहने के लिए पृथ्वीराज चौहान का महिमामंडन है, परन्तु एक पंक्ति ऐसी है जो हैरान करती है। सम्राट पृथ्वीराज की प्रशंसा करते हुए उसमें कहा गया है कि
ऐसा एक पृथ्वीराज जैसे,
गोकुल में हो मोहन ||
ऐसा एक पृथ्वीराज जैसे,
कुरुक्षेत्र में अर्जुन ||
ऐसा एक पृथ्वीराज जैसे,
लंका में दशानन ||
ऐसा एक पृथ्वीराज जैसे,
रावण को राम सतावन ||
लंका में दशानन जैसे सम्राट पृथ्वीराज चौहान कैसे हो सकते हैं? रावण की विद्वता अलग बात है, परन्तु वाल्मीकि रामायण के अनुसार रावण का चरित्र कैसा था, यह हर धर्म प्रेमी हिन्दू को ज्ञात है, फिर सम्राट पृथ्वीराज चौहान को लंका में दशानन जैसा बताकर कौन सा एजेंडा सेट किया जा रहा है? और फिर क्या लिखते हैं ऐसा एक पृथ्वीराज जैसा रावण को राम सतावन!
ऐसे ही एक और गाना है, जिसे संयोगिता गाती हैं,
हद कर दे पिया हद कर दे,
हर सरहद को रद्द कर दे!
सरहद, रद्द, हद यह सब कैसे उस समय की राजकुमारी की भाषा हो सकती है? ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे वरुण ग्रोवर ने पूरा अपना एजेंडा इस फिल्म में प्रयोग कर लिया है!
एक और गाना है, जिसमें संयोगिता को जौहर करते हुए दिखाया जा रहा है। जौहर करते हुए जब दिखाया जा रहा है, तो जौहर करती रानियों के वस्त्रों पर भी शोध नहीं किया है। जौहर करते समय स्त्रियाँ पूर्ण श्रृंगार करके स्वयं को अग्नि में समर्पित करती थीं। वहीं इस फिल्म में नाच गाने के साथ केसरिया बाना पहने हुए स्त्रियों को नचवा दिया गया है।
अब इसकी तुलना में पद्मावत फिल्म का अंतिम दृश्य जिसमें दीपिका पादुकोण जौहर के लिए दुर्ग की समस्त महिलाओं के साथ जा रही हैं, कितना भव्य दृश्य प्रतीत हो रहा है। आज भी इस दृश्य को देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं, आप उस पीड़ा को देह पर अनुभव करते हैं, परन्तु पृथ्वीराज चौहान में जौहर जैसी सम्मानजनक परम्परा, जो स्त्रियों के लिए एक ऐसी प्रथा थी, जो उनके मान की रक्षा करने के लिए होती थी, उसे नाच गाकर हल्का या कहें मसखरा सा दिखा दिया है। केसरिया बाना तो शाका करने वाले राजपूत योद्धा पहनकर जाते थे।

राजा के वस्त्रों एवं वैभव का ध्यान नहीं रखा है
इस फिल्म को देखकर जो लोग निराश हैं, उनमें से कईयों का कहना यह भी है कि मात्र भाषा के स्तर पर ही घालमेल नहीं किया है, बल्कि राजाओं के वस्त्र कैसे होते थे, उनकी भव्यता का भी ध्यान नहीं रखा गया है। लोगों का कहना है कि भाषा, तथ्यों, और वस्त्रों, आभूषणों आदि पर तनिक भी रीसर्च नहीं किया गया है। इसके साथ ही तथ्यों को तोड़मरोड़ कर भी प्रस्तुत किया गया है।
इस फिल्म में वामपंथी फेमिनिज्म का तड़का जानबूझकर ऐसा लगाया गया है, जो असहज प्रतीत होता है। जबकि यदि इसकी तुलना संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावत से करें तो उसमें, जहां सारे “वोक” लोग थे, वहां पर यह आशंका थी कि फेमिनिज्म का तड़का होगा, परन्तु ऐसा कुछ नहीं था। उसमें भव्यता थी। उसमें जो भव्यता दिखाई थी, उससे बार-बार इस गौरव का अनुभव हो रहा था कि इसी सोने की चिड़िया को तो लूटने के लिए मुसलमान आते रहे थे।
वहीं जब सम्राट पृथ्वीराज चौहान देखते हैं, तो पाते हैं कि पृथ्वीराज चौहान के आभूषणों पर भी विशेष जतन नहीं किये गए हैं और संयोगिता को जो वस्त्र पहनाए गए हैं, उनके विषय में लोगों का कहना है कि इससे अच्छे वस्त्र तो टीवी सीरियल्स में पहनाए जाते हैं। वहीं अन्य पीरियड फ़िल्में जैसे पद्मावत, जोधा अकबर, बाजीराव मस्तानी, पानीपत आदि सभी फिल्मों में भारत की भव्यता को ही उकेरा गया है। इन सभी फिल्मों के नायकों की भव्यता के आगे सम्राट पृथ्वीराज चौहान का चित्रण फीका प्रतीत हो रहा है।
लव जिहाद का भी एजेंडा है
यही नहीं, इस फिल्म में लव जिहाद का भी एजेंडा है। पृथ्वीराज एक औरत के प्यार को पूर्ण करना चाहते हैं। गोरी के पास एक हिन्दू सेक्स स्लेव चित्रलेखा है। वह गोरी के भाई मीर हुसैन के साथ भाग जाती है। पृथ्वीराज कसम खाते हैं कि वह इस जोड़े को अलग करने से गोरी को रोकेंगे और वह हिन्दू महिला के दफनाए जाने की इच्छा भी पूरी करते हैं। gems of bollywood द्वारा साझा किये गए इस वीडियो को कॉपीराइट के कारण हटा दिया गया है!
इतना ही नहीं, इसमें गोरी के सामने पृथ्वीराज के मुख से यह कहलवाया गया है कि उनका सिर मात्र फकीरों के ही सामने झुकता है। जबकि फकीर चिश्ती की भूमिका पर कोई बात नहीं की गयी है!
और इसमें जब सम्राट की मृत्यु होती है तो उसे भी शहादत कहा गया है। जबकि यह हर कोई जानता है कि शहादत का अर्थ होता है इस्लाम के लिए शहीद होना।
जो लोग फिल्म देखकर आए हैं, वह खुलकर इसी बात पर हैरानी व्यक्त कर रहे हैं कि अंतत: उस समय कैसे सम्राट पृथ्वीराज चौहान इतनी उर्दू बोल सकते थे? इसका कारण क्या है?
इस फिल्म को लेकर कोई विशेष रिसर्च वर्क नहीं किया गया, ऐसा प्रतीत होता है। और जिन डॉ द्विवेदी पर लोगों का विश्वास था, वह विश्वास पूर्णतया विफल हुआ है।
यह फिल्म नायक एवं इतिहास का अपमान है:
यह फिल्म हिन्दुओं के नायक पृथ्वीराज चौहान एवं हिन्दुओं के इतिहास का सबसे बड़ा अपमान बनकर सामने आई है। जो एजेंडा फिल्म बनाते हैं, जैसे जोधा अकबर या फिर मुगले-आजम, वह लोग अपने नायकों को जनता के मस्तिष्क में स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं, वह गानों पर काम करते हैं, हम आज भी मुगले-आजम के गाने गुनगुनाते हैं, यह जाने बिना कि क्या कोई अनारकली नामक औरत थी भी या नहीं?
एक फिल्म से उस जहांगीर को लार्जर देन लाइफ बना दिया गया है, जिसने नूरजहाँ से शादी के लिए उसके पति को ही मरवा डाला था। एवं असंख्य मंदिर को तोडा था!
एक फिल्म जोधा अकबर, से अकबर की वह छवि पूर्णतया नई पीढ़ी के मस्तिष्क से गायब हो गयी है, जो पूरी तरह से हिन्दूओं की ह्त्या करने वाली थी। जो अकबर हरम को संस्थागत रूप देने वाला था, उसे एक ऐसे प्रेमी के रूप में दिखाया गया, जैसे उससे महान पति हो ही नहीं सकता! जबकि जोधा का वर्णन शायद ही कहीं इतिहास में हो!
यह होता है अपने दृष्टिकोण के अनुसार फिल्म बनाना और ऐसी भव्य फिल्म बनाना, कि लोग इसे दशकों तक स्मृति में रखें। जबकि सम्राट पृथ्वीराज चौहान का एक भी आयाम ऐसा नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि यह शीघ्र ही स्मृति से लोप नहीं हो जाएगी!
कहा जा सकता है कि इस फिल्म में वही वामपंथ का एजेंडा डाला गया है, जिसमें प्रभु श्री राम को रावण के समकक्ष खड़ा कर दिया है, जिसमें उर्दू को ऐसी भाषा बता दिया गया है, जो भारत में सदियों से थी और संस्कृत को विलुप्त कर दिया है, धर्म के स्थान पर फेमिनिज्म एंजेंडा मुख्य बना दिया गया है और भारत की भव्यता को नीचा दिखाया गया है।
लोग यही कह रहे हैं कि “डॉ. द्विवेदी से यह आशा नहीं थी!”
वहीं कुछ लोगों का यह कहना है कि कुछ नहीं तो पृथ्वीराज चौहान को जानने के लिए और उनकी कथा को आदर देने के लिए ही यह फिल्म देखी जाए, तो यह और भी अधिक मूर्खता की बात है क्योंकि यदि सही इतिहास प्रस्तुत किया जाता तो यह फिल्म आज थिएटर से हट नहीं रही होती
इस बहाने लोग वर्ष 1959 में बनी पृथ्वीराज चौहान फिल्म देख रहे हैं, जिसमें मत चूको चौहान वाली पूरी पंक्तियाँ हैं एवं वह इतिहास के अधिक निकट है तथा हर प्रकार के एजेंडे से मुक्त है! जो लोग इस फिल्म की आलोचना करने वालों की आलोचना यह कहकर कर रहे हैं कि अब लोग ऐसी फ़िल्में बनाने का साहस नहीं करेंगे उन्हें कश्मीर फाइल्स फिल्म को ध्यान में रखना चाहिए, जिसने कम बजट में भी ऐसा विमर्श तैयार कर दिया है, जिसके कारण लोग अब बातें कर रहे हैं।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान।।
पद्मावत फिल्म के माध्यम से जौहर को लोगों ने समझा और फिर उसी मध्य आईएसआईएस द्वारा यजीदी लड़कियों के यौन शोषण की कहानियाँ आईं तो लोग और समझे कि अंतत: उस समय लोग स्त्रियाँ जौहर क्यों कर लेती थीं? यदि राष्ट्रनायकों के नाम पर एजेंडा ही परोसा जाएगा तो क्यों कोई थिएटर में जाएगा?
अंतत: नैरेटिव या विमर्श निर्माण की प्रक्रिया में हर बार हिन्दुओं के साथ छल ही क्यों होता है? प्रश्न इस फिल्म के बाद उभर कर आ रहा है क्योंकि कहीं न कहीं लोगों को ऐसा प्रतीत हो रहा है कि क्या इस फिल्म को इसलिए बनाया गया ताकि अक्षय कुमार एवं डॉ द्विवेदी की राष्ट्रवादी छवि का लाभ उठाकर वरुण ग्रोवर जैसे वामपंथियों और हिन्दू-विरोधियों का एजेंडा हिन्दुओं को बेच दिया जाए?
After reading your comments, I am very much disappointed with Dr Dwivedi. Why he has degraded himself to such a low level?