तेलंगाना के एक न्यायालय ने एजेंडा पत्रकारिता करने वाले द वायर को आदेश दिया है कि वह अपने पोर्टल से उन 14 लेखों को तुरंत हटाए जिनमें को-वैक्सीन का निर्माण करने वाले भारत बायोटेक के खिलाफ झूठ लिखा है, और जिनकी मंशा भारत बायोटेक के प्रति अविश्वास फैलाने की थी।
दरअसल जब से भारत में ही कोविड 19 से लड़ने के लिए वैक्सीन का निर्माण हुआ था, और भारत के आम नागरिकों को भारत की ही बनी घरेलू वैक्सीन सरकार द्वारा निशुल्क उपलब्ध की जा रही थी, तभी से भारत सरकार के साथ साथ को-वैक्सीन के खिलाफ भी मीडिया के एक वर्ग द्वारा झूठ फैलाया जाने लगा था। जैसे ही भारत द्वारा अपने देश में ही विकसित वैक्सीन के प्रयोग की घोषणा हुई थी, वामपंथी मीडिया जैसे विपक्ष और फ़ाइज़र जैसी कंपनी का मुखपत्र बन गए थे और को-वैक्सीन के खिलाफ एक संगठित अभियान आरम्भ कर दिया था।
चीन की वैक्सीन और फ़ाइज़र के लिए लॉबी करते करते को-वैक्सीन के खिलाफ जैसे श्रृखंला ही आरम्भ कर दी थी। यहाँ तक कि जनवरी में ही भारत बायोटेक ने कोवैक्सीन के खिलाफ फैलाए जा रहे भ्रामक समाचारों का खंडन करते हुए एक तथ्य शीट भी जारी की थी और उसमें उन तमाम हालिया समाचारों का खंडन किया था, और उसमें अंत में अपील की थी कि मीडिया की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है और आप करोड़ों लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं, तो हम यह आपसे अनुरोध करते हैं, कि आप सतर्कता के साथ अपना उत्तरदायित्व निभाएं
परन्तु क्या मीडिया संवेदनशील मामलों में, जिनमें करोड़ों भारतीयों का स्वास्थ्य जुड़ा है, एक जिम्मेदार रिपोर्टिंग करता है? यह प्रश्न एक बार फिर से इसीलिए उभर कर आया है, क्योंकि भारत बायोटेक द्वारा वायर पर 100 करोड़ की मानहानि के मुक़दमे की प्रतिक्रिया में तेलंगाना के एक न्यायालय ने द वायर को इन 14 लेखों को हटाने का आदेश दिया है, जिनमें भारत बायोटेक के अनुसार झूठ था।
जबकि पिछले ही वर्ष आईसीएमआर के एक अध्ययन के अनुसार कोवैक्सीन सफलतापूर्वक कोविड 19 के सभी वैरिएंट के लिए सबसे प्रभावी बताई गयी थी।
परन्तु उसके बाद भी बार बार भारत में बनी वैक्सीन को नीचा दिखाने का प्रयास किया जाता रहा, लेख प्रकाशित किए जाते रहे। पिछले वर्ष अप्रेल में ही वायर ने वैश्विक वैक्सीन एक्सपर्ट के हवाले से लेख लिखा था कि भारत को चीन से अतिरिक्त कोविड वैक्सीन आपूर्ति मांगनी चाहिए। और इसमें जैसे भारत को अक्षम बताते हुए यह कहा गया था कि वैक्सीन के वैश्विक विशेषज्ञ का कहना है कि भारत को अपनी वैक्सीन की कमी को पूरा करने के लिए चीन से वैक्सीन मांगनी चाहिए।
इसमें डॉ जेरोम किम के हवाले से कहा गया था कि यह पड़ोसियों की मदद का समय है और केवल बीमारी का नियंत्रण करना ही जरूरी नहीं है, बल्कि दो देश जो परम्परागत दुश्मन हैं, वह एक साथ आ जाएँगे।
और जब यह पूछा गया था कि भारत आपत्ति तो नहीं करेगा तो कथित विशेषज्ञ का कहना था कि लोगों के मरने से अधिक आपत्ति कहाँ होगी?
अर्थात द वायर ने पिछले वर्ष भी भारत की क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाने वाला लेख प्रकाशित किया था। और कथित विशेषज्ञ के माध्यम से भारत के उस अभियान को बदनाम करने का कार्य किया था, जो भारत में करोड़ों लोगों को स्वास्थ्य प्रदान कर रहा था।
इसी प्रकार 5 नवम्बर को भी भारत की इसी उपलब्धि के खिलाफ एक लेख लिखा था, जिसमें यह प्रमाणित करने का प्रयास किया गया था कि को-वैक्सीन को जो प्रयोग का अनुमोदन प्राप्त हुआ है, उसके पीछे कोई भी वैज्ञानिक कार्य न होकर राजनीतिक संरक्षण सम्मिलित है? और इसमें फिर से वैज्ञानिकों के हवाले से वैक्सीन की विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाए गए थे।
इसमें कुछ पत्रकारों द्वारा श्री नरेंद्र मोदी को श्रेय दिए जाने को प्रमुखता से दिखाते हुए, यह पूरी तरह से प्रमाणित करने का पूरा प्रयास किया गया था कि पत्रकारों की बात को अनदेखा नहीं किया जा सकता है और साथ ही इस अनुमोदन को वैज्ञानिक रूप से न देखकर राजनीतिक रूप से देखा जाना चाहिए।
हालांकि बाद में कुछ संतुलन साधते हुए यह कहा गया था कि हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन का तकनीकी सलाह समूह स्वतंत्र है और इस पर संदेह करके हम भारत के वैज्ञानिकों एवं ट्रायल करने वाले वैज्ञानिकों का अपमान करेंगे, फिर भी जनहित में ऐसे प्रश्न उठाते रहना चाहिए!
ऐसे एक नहीं कई लेख हैं, जिनमें बूस्टर डोज़ पर भी प्रश्न हैं?

इतना ही नहीं भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ पर कथित निष्पक्ष पत्रकार अपने देश की वैक्सीन की खिलाफत करते हुए फाइंज़र की वैक्सीन की तरफदारी करते हुए दिखाई दिए थे, जबकि फ़ाइज़र ने वैक्सीन के बहाने कई देशों को ब्लैकमेल करने का भी प्रयास किया था।
हालांकि अब जब न्यायालय की ओर से यह आदेश आया है कि उन सभी 14 लेखों को हटाया जाए तो वायर के मालिक siddharth ने ट्वीट किया कि वह भारत बायोटेक की धमकी से नहीं डरेंगे
न्यायालय की ओर से यह स्पष्ट किया गया है कि इस प्रकार के लेखों से वैक्सीन के प्रति हिचकिचाहट बढ़ेगी और लोग वैक्सीन लेने से डरेंगे। कुल 13 लोगों के विरुद्ध यह मुकदमा किया गया था जिनमें फाउन्डिंग एडिटर सिद्धार्थ सहित नीना संघी, प्रेम आनन्द मुरुगन आदि सम्मिलित हैं।
सोशल मीडिया पर लोग इस समाचार से प्रसन्न हैं, क्योंकि द वायर की एकतरफा पत्रकारिता पर आज से नहीं न जाने कब से प्रश्न उठ रहे हैं
परन्तु मात्र प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को नीचा दिखाने के लिए और इस सरकार द्वारा घरेलू वैक्सीन के निर्माण अर्थात आत्मनिर्भर भारत को विफल बनाने के लिए वायर जैसे एजेंडा पोर्टल्स ने मानवता के साथ जो अपराध किया है, क्या उसे क्षमा किया जा सकता है? प्रश्न कई हैं! परन्तु सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या अपने मन की सरकार न बनने पर देश की समस्त उपलब्धियों को खारिज किया जा सकता है और वह भी उस कथित वर्ग द्वारा जो स्वयं को जनता का हितकारी बताता है? तो प्रश्न तो उठता है कि कौन सी जनता के हित में यह कथित मीडिया कार्य करता है?
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