एक बार फिर से राही मासूम रजा चर्चा में हैं। वह एक पुरानी फिल्म बेमिसाल के एक डायलॉग को लेकर चर्चा में हैं। चूंकि मुस्लिमों के अनुसार भारत का इतिहास मात्र मुगलों के आगमन के साथ ही आरम्भ होता है, तो अब तक संवाद ऐसे ही लिखे जाते रहे थे, जिनमें हिन्दू इतिहास को जमकर नीचा दिखाया जाए। बेमिसाल फिल्म, जिसमें विनोद मेहरा, राखी और अमिताभ बच्चन ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं।
इसमें विनोद मेहरा अमिताभ बच्चन से यह कहता है कि “भारत में लगभग सारे हिल स्टेशन अंग्रेजों ने डिस्कवर किए थे, मगर कश्मीर मुगलों ने खोजा था।”
फिर वह कहता है कि “जहाँगीर सही ही कहता था”
उसके बाद राखी की एंट्री फिल्म में होती है!
फिर उसके पांच या छ मिनट के बाद पुन: यह डायलॉग आता है, जिसमें अमिताभ बच्चन राखी को प्रभावित करने के लिए यह बात कहता है “क्या एक बात आपलोगों को मालूम है कि भारत में जितने भी हिल स्टेशंस हैं, सब के सब अंग्रेजों ने डिस्कवर किए। एक कश्मीर ही है, जिसे मुगलों ने डिस्कवर किया।” इस पर प्रतिक्रिया देते हुए राखी का जबाव होता है कि “मुगलों का तो जवाब ही नहीं। उनका म्यूजिक देखिए, पेंटिंग देखिए, आर्किटेक्चर देखिए।” फिर अमिताभ बच्चन का कहना होता है कि जो मुगलों का असली कॉन्ट्रिब्यूशन है, उसका तो नाम ही नहीं लिया।
जब राखी पूछती हैं कि वो क्या है, तो इस पर अमिताभ बच्चन कहते हैं, “अरे मुगलई खाना।” और इसके बाद वह तीनों ही ठहाके लगाकर हंसने लगते हैं!
यह बात कितनी अपमानजनक है कि एक ओर राही मासूम रजा स्वयं को गंगा-पुत्र या गंगा किनारे वाला कहा करते थे, वह कश्मीर के विषय में यह कैसे सोच भी सकते हैं कि कश्मीर को मुगलों ने डिस्कवर किया? और डिस्कवर क्या होता है? क्या वह कोई चीज़ थी जो कहीं से खोजकर निकाल दी? परन्तु चूंकि उस समय फिल्मों पर ही नहीं बल्कि साहित्य पर भी वाम और इस्लामी कब्ज़ा था, तो राही मासूम रजा ने भी उसी प्रकार से लिखा।
मुस्लिम दरअसल भारत का इतिहास ही मुगलों के आगमन से मानते हैं, तो उनके लेखन में वही रहता है। यदि उससे पहले का रहता भी है तो ऐसा जैसे एक अन्धेरा सा कोई स्थान था, जहाँ पर इस्लाम रोशनी लाया?
जैसे भेदभाव था, और इस्लाम ने आकर भेदभाव समाप्त कर दिया।
हमारी एक पूरी पीढ़ी यही सुनकर ही बड़ी हुई है कि हिन्दू, और हिन्दी आदि किसी का कोई भी इतिहास नहीं था और मात्र वामपंथी साहित्य ही एकमात्र साहित्य था। लोगों तक पहुँच ही नहीं हो पाती थी उस साहित्य की, जो भारत के लोक से जुड़ा होता था।
आधा गाँव में क्या लिखते हैं राही मासूम रजा
राही मासूम रजा का एक उपन्यास है आधा गाँव! इसमें वह मुस्लिमों के बीच जो जातिगत भेदभाव है उसके विषय में भी लिखते हैं।
जब उपन्यास आरम्भ होता है, तभी लिखा है “मुझे नहीं मालूम कि मँझले दादा के अब्बा को इन नईमा दादी में ऐसी कौन सी बात नजर आई कि उन्होंने एक अच्छी खासी गोरी चित्ती दादी को छोड़कर करइल मिट्टी की इस पुतली को निकाह में ले लिया और फिर उनके लिए यह खलवत बनवाई! नईमा दादी बहरहाल जुलाहन थीं और सैदानियों के साथ नहीं रह सकती थीं!”
फिर जैसे जैसे इस उपन्यास में आप आगे बढ़ेंगे तो मुस्लिम समाज लड़कियों और औरतों के बारे में क्या सोचता है, या फिर क्या रीतिरिवाज हैं, इसमें लिखा है। जैसे
“दूसरा ब्याह कर लेना या किसी ऐरी गैरी औरत को घर में डाल लेना बुरा नहीं समझा जाता था। शायद ही मियाँ लोगों का ऐसा कोई खानदान हो, जिसमें कलमी लड़के और लडकियां न हों! जिनके घर में खाने को भी नहीं होता, वह भी किसी न किसी तरह कलमी आमों और कलमी परिवार का शौक पूरा कर ही लेते हैं!”

फिर उन्होंने कबड्डी खेलने का वर्णन करते हुए लिखा है “कबड्डी कबड्डी, कबड्डी, मैं कबड्डी खेलता हुआ उस पाले के उधर गया। मैं कनखियों से लगातार अपने दुश्मनों को देख रहा था, लेकिन कभी कभी मेरी आँख भटक कर उन जुलाहों की तरफ भी चली जाती थी। जो मीर साहब को कबड्डी खेलता देखकर इकट्ठा हो गए थे। जैसे कि मीर साहब के लड़के का कबड्डी खेलना कोई और अनोखी बात थी – मगर थी तो अनोखी ही बात; क्योंकि उस दिन मैं पहली और आख़िरी बार जुलाहों के लड़कों के साथ कबड्डी खेला था”
अर्थात राही मासूम रजा अपने समाज में व्याप्त कमियों को जानते भी थे, परन्तु फिर भी वह यह स्वीकारने को तैयार नहीं थे कि इस्लाम से पहले हिन्दुओं का भी इतिहास था? क्योंकि उन्होंने बाद में आकर महाभारत के संवादों पर भी काम किया था। हालांकि यह भी वामपंथियों द्वारा फैलाया गया कि राही मासूम रजा ने महाभारत के संवाद लिखे, परन्तु दो वर्ष पहले वरिष्ठ पत्रकार अनंत विजय ने अपने लेख में लिखा था कि कैसे महाभारत में से पंडित नरेंद्र शर्मा को विस्मृत कर दिया गया और प्रोपोगैंडा के चलते मात्र राही मासूम रजा जो याद रखा गया।
उनके लेख के अनुसार रजा साहब और पंडित नरेंद्र शर्मा में परस्पर विमर्श होता था और रजा जो भी लिखकर भेजते थे, उसे पंडित नरेंद्र शर्मा देखते थे और फिर ही वह आगे जाता था।

परन्तु वामपंथियों का एजेंडा है हिन्दुओं की एक एक चीज़ को खुरच कर मिटा देना और उसमें उन्होंने लेखकों का बहुत ही शानदार प्रयोग किया है। राही मासूम रजा का नाम उनके एजेंडे को सूट करता था, तो उन्होंने उसका जमकर प्रयोग किया और महाभारत के संवादों से पंडित नरेंद्र शर्मा का नाम एकदम मिटा दिया, जैसे राही मासूम रजा ने कश्मीर के इतिहास से ऋषि कश्यप का नाम मिटा दिया, जैसे हैदर फिल्म में मार्तंड मंदिर का इतिहास मिटा दिया और उसे शैतान की गुफा कर दिया। हाँ भाई जब मुगलों ने खोजा तो महान मुगलों से पहले शैतान ही तो रहा करते होंगे, जिन्हें मुगलों ने मारकर राज किया!
परन्तु अब एजेंडे पर प्रश्न उठते हैं, दबी बातें सामने आती हैं, और यही कारण है कि लोग बिलबिला रहे हैं, वामपंथी कट्टर इस्लामी एजेंडा तड़प रहा है!