कहते हैं राजनीति में कोई दुश्मन नहीं होता, वहीं यह भी कहा जाता है कि राजनीति में कभी भी पास पलट सकता है। चुनाव पश्चात गठबंधन करने सरकार बनाने गिराने के लिए कुख्यात नीतीश कुमार एक बार फिर से बिहार के मुख्यमंत्री बन गए हैं। उन्हें दोपहर 2 बजे राज्यपाल फागू चौहान ने राजभवन में पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई, वहीं लालू यादव के पुत्र आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने बिहार के नए उप-मुख्यमंत्री के पद की शपथ ले ली है।
एक बार फिर से बने महागठबंधन की सरकार के बाकी मंत्रियों को 15 अगस्त के बाद शपथ दिलाए जाने के आसार हैं । वहीं यह भी कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय जनता दल को ज्यादा मंत्री पद दिए जाएंगे। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि नीतीश कुमार देश के इकलौते ऐसे नेता हैं, जिन्होंने किसी राज्य के मुख्यमंत्री के तौर पर 8वीं बार शपथ ली है। हालांकि वही ऐसे एकलौते नेता भी हैं, जो हर कुछ वर्षों में अपनी राजनीतिक निष्ठा और गठबंधन को बदल देते हैं। ऐसा हम नहीं कहते हैं, आंकड़ें कहते हैं।
नितीश कुमार के शपथ लेते ही एक बार फिर से वही जोड़ी, बिहार की सत्ता के शीर्ष पर आ गई है, जिसे 2015 के चुनाव में राज्य की जनता ने सत्ता पर बैठाया था। हालांकि दो ही वर्ष बाद 2017 में नीतीश कुमार ने आरजेडी को छोड़ भाजपा हाथ पकड़ लिया था । लेकिन इस बार नितीश कुमार ने इसका ठीक उलटा किया और भाजपा को छोड़ आरजेडी के साथ चले गए। खैर, राजनीतिक मजबूरियाँ होती हैं, ऐसे ही कोई बेवफा नहीं होता।
नितीश कुमार ने नाटकीय घटनाक्रम में छोड़ा भाजपा का साथ
मंगलवार को बिहार की राजनीति में नाटकीय बदलाव आया जब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ गठबंधन तोड़ने और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की घोषणा की। इसके दो घंटे के भीतर ही उन्होंने आरजेडी के साथ नए गठबंधन बनाने और फिर से सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। नीतीश कुमार शाम 6 बजे विधायकों के समर्थन की चिट्ठी देने के लिए राज्यपाल फागू चौहान के पास पहुंचे, तो आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी उनके साथ थे। राज्यपाल से मिलने के पश्चात नीतीश कुमार और तेजस्वी ने एक साथ प्रेस से वार्ता भी की।
सूत्रों के अनुसार नीतीश कुमार ने राज्यपाल को 164 विधायकों के समर्थन का पत्र दिया है, जिसमें सात राजनीतिक दलों के विधायक सम्मिलित हैं । बिहार विधानसभा में अभी कुल 242 विधायक हैं, और बहुमत के लिए 122 का आंकड़ा जरूरी है, अतः यह कहा जा सकता है कि नितीश कुमार और आरजेडी की सरकार ने बहुमत प्राप्त कर लिया है। इस अवसर पर तेजस्वी यादव ने बीजेपी पर कड़ा आक्रमण करते हुए कहा कि बिहार में भाजपा को छोड़कर अन्य सभी राजनीतिक दल अब नीतीश कुमार के साथ हैं । तेजस्वी ने कहा कि पूरे हिंदी बेल्ट में अब बीजेपी को किसी भी दल का साथ नहीं मिल रहा है, क्योंकि बीजेपी अपने सहयोगी दलों को खत्म कर देती है।
नितीश के भाजपा से गठबंधन तोड़ने के क्या कारण हो सकते हैं?
यूं तो नीतीश कुमार कभी भी पाला बदलने के लिए विख्यात रहे हैं, लेकिन इस बार ऐसा करने के कई कारण बताये जा रहे हैं । वह बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान के भाजपा के पक्ष और जदयू के विरोध में प्रचार करने से क्रुद्ध थे। भाजपा के मुकाबले जदयू के आधी सीटों पर सिमटने, सरकार चलाने के लिए स्वतंत्रता ना मिलने, और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष एवं विधानसभा अध्यक्ष के सरकार पर लगातार आक्रामक रहने से भी नीतीश असहज थे।
वहीं एक कारण बताया जाता है आरसीपी सिंह को केंद्र में बिना उनसे सलाह लिए मंत्री बनाना। यह ऐसा कदम था जो नीतीश कुमार को बहुत चुभा और उन्होंने आरसीपी सिंह को राज्यसभा का टिकट भी नहीं दिया। नितीश को इसके पीछे भाजपा का षड्यंत्र लग रहा था, और इसी कारण उन्होंने चुपके चुपके अपने विधायकों से संपर्क साधना शुरू कर दिया था, ताकि सही समय पर पाला बदला जा सके।
नितीश कुमार का भाजपा से अलग होने का एक कारण हो सकता है उनके वोट बैंक में भाजपा द्वारा सेंध लगाने का प्रयास करना। भाजपा ऐतिहासिक रूप से अगड़ों का राजनीतिक दल मानी जाती रही थी, लेकिन २०१४ के बाद भाजपा ने बड़ी तेजी से दलितों, ओबीसी, पिछड़ों और अतिपिछड़ों में अपनी पैठ बनायी थी। पिछले ही दिनों भाजपा नेतृत्व ने महादलितों और पसमांदा मुस्लिमों को जोड़ने का आह्वान किया था, जिसके बाद नितीश कुमार को अपना वोट बैंक खिसकता हुआ दिख रहा था।
आपको बता दें कि बिहार में जदयू के वोट बैंक में महादलितों और पसमांदा मुस्लिमों का बड़ा योगदान है। यह भी संभव है कि नितीश कुमार ने अपने वोट बैंक पर पकड़ बनाये रखने के लिए भाजपा को छोड़ दिया हो।
नितीश की पलटी बनी विपक्ष के लिए उम्मीद की किरण
भाजपा से बुरी तरह हार चुके विपक्ष के लिए बिहार का घटनाक्रम उम्मीद की एक नई किरण की तरह आया है। इस नए घटनाक्रम के बाद हिंदी पट्टी क्षेत्र में सामाजिक न्याय से जुड़े मुद्दों को हवा मिलने और भाजपा के कोर एजेंडे जैसे समान नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण, एनआरसी जैसे विषयों पर विपक्ष मजबूत हो कर उभर सकता है। इनमें भी जातिगत जनगणना के प्रश्न पर नए राजनीतिक संघर्ष की शुरुआत हो सकती है, क्योंकि नितीश कुमार स्वयं इसके विरोध में हैं। ऐसे में चुनावों में मिल रही हार, महाराष्ट्र के अप्रत्याशित सत्ता परिवर्तन, केंद्रीय एजेंसियों द्वारा विपक्षी नेताओं पर छापे से परेशान विपक्ष के आत्मविश्वास को यह घटनाक्रम कुछ समय के लिए उछाल देगा।
नितीश के लिए आसान नहीं होगा सरकार चलाना
नितीश कुमार ने भले ही आरजेडी के साथ गठबंधन कर लिया है, लेकिन उनके लिए सरकार चलना आसान नहीं होने वाला है। आरजेडी ने एक बार फिर से अधिक मंत्री पदों की मांग की है, वहीं यह भी सवाल उठ रहे हैं कि क्या अब फिर से लालू प्रसाद यादव ही अदृश्य रूप से बिहार की सरकार चलाएंगे? पिछली बार भी जब जदयू और आरजेडी की सरकार बनी थी, तब भी नितीश कुमार को यही समस्या आयी थी, जो आज वह भाजपा के साथ बता रहे हैं, यानी शासन करने की स्वतंत्रता ना होना।
देखना होगा कि इस बार यह गठबंधन कितने दिनों तक चलता है और कितने दिनों तक नितीश स्वतंत्र शासन कर पाते हैं?