इस्लाम और ईसाई दो ऐसे साम्राज्यवादी विचार हैं, जिनका अंतिम उद्देश्य स्थानीय लोक धर्म का विनाश कर अपना मजहबी वर्चस्व कायम रखना है। भारत में जहाँ हिन्दू धर्म इनके निशाने पर है, तो वहीं अफ्रिका में भी स्थानीय लोकधर्म को समाप्त कर इन दोनों के बीच वर्चस्व का युद्ध चल रहा है। इन दोनों साम्राज्यवादी विचारधाराओं के आने के बाद से ही स्थानीय लोक धर्म विलुप्त होने लगा था। परन्तु कहते हैं, स्मृतियों की चेतना कभी विलुप्त नहीं होती। पीढी दर पीढ़ी वह बढ़ती रहती है, वह प्रश्न उत्पन्न करती है कि आखिर हम क्या थे और क्या हैं?
ऐसे ही अफ्रीका के भी लोगों के मन में स्वयं के इतिहास के विषय में जिज्ञासा उत्पन्न हुई। नाइजीरिया के एक निवासी जैकब ओलुपेना ने अमेरिका में उन सभी आध्यात्मिक प्रक्रियाओं के विषय में शोध किया, जो अफ्रीका के ईसाईकरण और इस्लामीकरण से पहले विद्यमान थीं, और साथ ही उन्होंने उन अफ्रीकी अमेरिकी समूहों की धार्मिक प्रक्रियाओं का अध्ययन किया है, जो अमेरिका में गुलामों के रूप में आए थे। और उन्होंने पाया था कि कुछ प्राचीन धार्मिक अफ्रीकी परम्पराएं और मान्यताएं अभी तक चल रही हैं, जैसे क्यूबन रेंगला डे ओछा, हैतिकन वोदू, ब्राजील का कैनडोम्ब्ले, योरूबा और इव-फोन!
ओलुपेना का विचार है कि जो अफ्रीकी आध्यात्मिक मान्यताएं हैं, वह धार्मिक न होकर सांस्कृतिक हैं। क्योंकि अफ्रीकी सन्दर्भ में उन्हें संस्कृति, समाज और परिवेश से अलग नहीं किया जा सकता है। उनका विश्वास है कि अफ्रीकी आध्यात्मिकता को आप एकेश्वर वाद या बहुदेव वाद के रूप में बाइनरी लेंस से नहीं देख सकते हैं। यही बात हिन्दू धर्म सहित सभी लोकधर्मों पर लागू होती है। यह हमारी परम्पराओं में, हमारी चेतना में निहित है!
1990 के दशक में अधिकतर सब-सहारा देशों में प्राचीन एवं स्थानीय अफ्रीकी धर्म का ही पालन किया जाता th। आज वहां पर ईसाई और इस्लाम मत का पालन करने वालों की संख्या 450 मिलियन है, जो 1990 तक 7 मिलियन थी। और दोनों ही कुल जनसँख्या का 40% है। ओलुपेना के अनुसार “ईसाइयत दक्षिण में अधिक प्रभावी है तो वहीं इस्लाम उत्तर में अधिक प्रभावी है। और वहीं अफ्रीकी परम्पराएं सेन्ट्रल अफ्रीका में मानी जाती हैं। ओलुपेना के अनुसार केवल 10% जनसंख्या ही है, जो पूरी तरह से अफ्रीकी स्थानीय धर्मों का पालन करती है।
श्वेत देश जिन लोगों को गुलाम बनाकर ले गए, उनके कारण एक फायदा हुआ कि “स्थानीय अफ्रीकी धर्म पूरे विश्व में फ़ैल गए, यूनाइटेड स्टेट में और अमेरिका में।” वह कहते हैं कि अफ्रीकी समुदाय वाला धार्मिक व्यक्ति पूजा के मामले में कुछ ही विकल्पों तक सीमित नहीं रहता है। बल्कि उसके पास लचीलापन होता है।
परन्तु ओलुपेना कहते हैं कि ईसाई और मुस्लिम धर्म परिवर्तन ने अफ्रीकी समुदाय को बहुत प्रभावित किया है और यदि ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन अफ्रीकी लोकधर्म समाप्त हो जाएगा। और वह कहते हैं कि इन परम्परागत मत परम्पराओं के खोने का अर्थ होगा
“हम उस विश्वदृष्टि को खो देंगे जिसने सामूहिक रूप से निरंतर, समृद्ध, और एक महाद्वीप और कई अन्य समाजों को शताबदियों तक अपनी ज्ञानमीमांसा, तत्वमीमांसा, इतिहास और प्रथाओं के माध्यम से अर्थ प्रदान किया है। उदाहरण के लिए, यदि हम अफ्रीका में स्वदेशी अफ्रीकी धर्मों से वंचित हो जाएँगे तो धर्मपूजक विलुप्त हो जाएंगे और यदि वह विलुप्त हुए तो हम न केवल कई अफ्रीकियों के लिए एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक विशेषज्ञ खो देंगे, बल्कि एक ऐसी संस्था भी खो देंगे जो सदियों से अफ्रीकी इतिहास, ज्ञान और जानकारियों का भंडार रही है।
यदि हम इसे भारत के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं तो यह पाते हैं कि हिन्दू धर्म को धर्मान्तरण के माध्यम से नष्ट किए जाने का प्रयास दिनों दिन चल रहा है। एक बेहद सुनियोजित एवं रणनीतिक तरीके से हिन्दू धर्म को धीरे धीरे समाप्त करने का कुप्रयास चल रहा है।
जैसे ही व्यक्ति का धर्मांतरण होता है, वैसे ही वह स्वयं की देशी पहचान से विमुख हो जाता है, जैसे मतान्तरित हुए हिन्दू।
अफ्रीका में भी ऐसा ही परिदृश्य उत्पन्न हुआ है और लोग स्वयं को या तो मुस्लिम या फिर ईसाई कहते हैं, जबकि जो विदेशी धर्म हैं, वह अफ्रीकी महाद्वीप से स्वयं को नहीं जोड़ पाते हैं।
भारत में भी हम यही देखते हैं, कि कैसे विदेशी विचारों वाले छोटी छोटी बातों पर देश को जलाने की बात करने लगते हैं और देश के संसाधन जला देते हैं।
जैसे भारत में ईसाईयों ने भारतीयों के कौशल को मारकर उनकी भूमि और संसाधनों पर कब्ज़ा किया, वैसे ही एक अध्ययन के अनुसार
“ईसाइयों ने कभी कभी वहां के स्थानीय कौशल और कलाओ को नष्ट करने के माध्यम से लोगों के जीवन और संपत्ति को नष्ट किया और इससे परपरागत धार्मिक समुदायों के आर्थिक सृजन पर प्रभाव पड़ा,”
ईसाईयों ने जैसे प्रोपोगैंडा भारत में चलाया कि सैंट थॉमस केरल आए थे और उन्होंने हिन्दू धार्मिकों को गोस्पल के शब्द दिए, और इस झूठ की हवा खुद वेटिकन निकाल चुका है, वैसे ही अफ्रीका के मतांतरित ईसाई कहते हैं कि ईसाई धर्म परम्परागत धर्म जितना ही पुराना है।
नाइजीरिया के अनुसार घाना में भी ईसाई और इस्लाम मतांतरण गतिविधियाँ हुई हैं जैसा एक अध्ययन में कहा गया है
“घाना के मध्य क्षेत्र में नकुसुकुम-एकुमफी-एन्यान पारंपरिक क्षेत्र में ईसाई धर्म और इस्लाम की स्थापना, प्रचार और मिशनरी गतिविधियों के परिणामस्वरूप, मुख्य रूप से अफ्रीकी पारंपरिक धर्म (एटीआर) से इन दो साम्राज्यवादी मजहबों में स्वदेशी लोगों का रूपांतरण हुआ। इन अप्रवासी धर्मों की धार्मिक मान्यताओं, प्रथाओं और सामाजिक सेवाओं के प्रावधान ने पारंपरिक समुदायों के धार्मिक और सांस्कृतिक जीवन को प्रभावित किया है।“
चूंकि अफ्रीकी परम्परावादियों का विश्वास था कि यह दुनिया केवल इंसानों के लिए ही नहीं है, मानव प्रकृति के साथ जुड़ा हुआ है। मानवता, पशु एवं पौधों का अपना अस्तित्व होता है और वह सम्पूर्णता के साथ ही इस जगत में निवास करते हैं। ऐसे आध्यात्मिक लोग भी हैं, जो मानव से अधिक शक्तिशाली हैं और यह तत्व बताता है कि कैसे अफ्रीकी इन आध्यात्मिक शक्तियों के प्रति खुले मन से जुड़े थे। इस प्रकार धार्मिक आस्था जीवन के सभी क्षेत्रों में फैली हुई है और उन्हें अर्थ और महत्व से भर देती है।
जहाँ इस्लाम और ईसाई धर्म ने पारंपरिक समुदायों के जीवन को नकारात्मकता से प्रभावित किया है, तो वहीं पारंपरिक अफ्रीकी विश्वास प्रणाली के अस्तित्व ने वास्तव में ईसाइयों और मुसलमानों के बीच संबंधों पर लाभकारी प्रभाव डाला है और दो साम्राज्यवादी मजहबों के बीच दूरी समाप्त करने में सहायता की है। जैसे हम भारत में भी देखते हैं कि इस्लाम का उदार रूप भारत में ही पनपा।
अब लोग जड़ों की और पूछते हुए प्रश्न कर रहे हैं कि आखिर हम शत्रु किसे मान रहे हैं:
और
जैसा हम इस वीडियो में देखते हैं कि वैदिक विद्वान जेफरी आर्मस्ट्रोंग कहते हैं कि “ईसाईयत ने अफ्रीका, भारत और पूरे विश्व में स्थानीय संस्कृति को नष्ट कर दिया है।” ईसाईयत के विषय में वह कहते हैं कि प्यार के नाम पर गुलामी और अत्याचार को बढ़ावा दिया गया। वह कहते हैं कि “अब समय आ गया है कि इस्लाम और ईसाई दोनों ही रिलिजन दुनिया पर अपने विचारों को थोपने के लिए बल और विध्वंस का प्रयोग बंद करें!”
मूल लेख अंग्रेजी में: https://hindupost.in/dharma-religion/how-christianity-and-islam-decimated-africas-traditional-religions/ by Anuradha
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