दिल्ली से सटे गुरुग्राम में गौ तस्करों ने फ़िल्मी स्टाइल में आतंक फैलाया। गुरुग्राम पुलिस ने 22 किलोमीटर तक गौ तस्करों का पीछा किया और कुल 6 तस्करों को पकड़ने में सफलता हासिल की। इनके नाम हैं, बल्लू, तस्लीम, पापा, शहीद और खालिद। इतना ही नहीं जो वीडियो सामने आया है उसमे देखा जा रहा है कि वह गायों को नीचे फेंकते जा रहे थे जिससे पुलिस की गाड़ी पलट जाए,
और पुलिस से बचने के लिए फ्लाईओवर से कूदे 2 गौ तस्करों के हाथ पैर टूट गए थे और ट्रक का टायर फटने के बाद भी आरोपी रिम पर गाड़ी दौड़ाते रहे।
इस सम्बन्ध में डीसीपी क्राइम गुरुग्राम राजीव देसवाल ने कहा कि
“बीती रात की घटना है जिसमें सेक्टर 29 से करीब 6-7 गाय चोरी करनी शुरू की गई, जिसकी सूचना पुलिस को मिली, जिसके बाद पुलिस ने नाकाबंदी की। रास्ते में आरोपी गायों को गिराते हुए जा रहे थे क्योंकि उनके पीछे PCR वैन भी थी।
उनके अनुसार
“नाकाबंदी के दौरान एक गाड़ी में 5 लोग सवार मिले जिन्होंने भागने की कोशिश की और उन्हें मामूली चोटें आई। गायों का इलाज करवाया गया है और आरोपियों का इलाज भी कराया गया। अभी आरोपी पुलिस कस्टडी में हैं। आरोपियों के पास से 1 देसी पिस्तौल, 5 खोखे और 1 जिंदा कारतूस बरामद हुआ है।
किसी भी शहर में इस प्रकार की घटना मात्र क़ानून व्यवस्था की ही बात नहीं कहती है, बल्कि अपराधियों के हौसले की भी कहानी कहती है, विशेषकर गौ तस्करों का यह दुस्साहस भय उत्पन्न करता है कि क्या उनके दिल में न क़ानून और व्यवस्था को लेकर कोई भय नहीं है? यह प्रश्न इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह घटना तब हुई है जब राज्य में हरियाणा गोवंश संरक्षण व गो संवर्धन विधेयक-2015 लागू है और वहां पर गो हत्या, तस्करी और गो मांस की बिक्री पर रोक है।
यहाँ तक कि यह भी प्रावधान हैं कि गोवंश तस्करी में लिप्त पाए जाने पर 3 से 7 साल तक का कठोर कारावास। 30 से 70 हजार रुपए तक का जुर्माना। तस्करी में लिप्त वाहन को जब्त कर नीलामी में बेचा जाएगा। एक राज्य से दूसरे राज्य में गोवंश ले जाने के लिए परमिट लेना होगा। यह घोषणा पत्र देना होगा गोवंश कत्लखाने में नहीं ले जाया जाएगा। जिन राज्यों में गो हत्या पर रोक नहीं हैं, वहां के लिए परमिट जारी ही नहीं किए जाएंगे।
फिर भी ऐसा क्या है, जिससे गौ तस्करों के हौसले इतने बुलंद होते हैं? क्या कारण है कि उनके दिल में इस संबध में क़ानून का भय नहीं है?
सेक्युलर्स एवं कट्टर इस्लामी तत्वों का समर्थन
हमने देखा है कि गौ तस्करों द्वारा गौ रक्षकों की हत्याओं पर जहाँ एक ओर पूरी तरह से चुप्पी रहती है तो वहीं गौ चुराने वाले और उन्हें काटने वालों के प्रति सेक्युलर वर्ग एवं कट्टर इस्लामी वर्ग ही नहीं बल्कि एक बड़े मुस्लिम समुदाय का समर्थन रहता है। वह गौ तस्करों के साथ हुई सख्ती को मात्र मुस्लिमों के साथ होने वाले अन्याय से जोड़ देते हैं।
कितनी ही बार गौ तस्करों के हाथों हत्या के समाचार आए हैं, परन्तु उन पर शान्ति रही है। इटावा में औरैया में वर्ष 2018 में दो साधुओं की हत्या कसाइयों ने इसलिए कर दी थी क्योंकि वह गौकशी में बाधा बन रहे थे। एक साधु की जीभ भी काट दी थी। ऐसे एक नहीं कई मामले हैं, परन्तु यह मामले दबकर रह जाते हैं और बिकता है इख़लाक़ की मौत का झूठ।
दादरी में गौ मांस खाने को लेकर गुस्साई भीड़ ने इख़लाक़ की हत्या कर दी गयी थी और फिर उस समय यह भी प्रमाणित करने का कुप्रयास किया गया था कि इख़लाक़ के घर से मिला मांस गाय का नहीं बल्कि बकरे का था। परन्तु जब पूरी तरह से जाँच हुई तो यह पता चला था कि इकलाख ने अपने फ्रिज में या तो गौमांस रखा था या फिर गौवंश का मांस।

परन्तु इस बात को लेकर कभी भी शोर नहीं होता कि जिस गाय का वध सरकारों ने प्रतिबंधित कर रखा है, उसे काटा जाना एक समुदाय विशेष के लिए क्यों जीने और मरने का विषय बन जाता है? क्यों वह आदर नहीं कर पाता है कि हिन्दुओं की भावनाओं का ध्यान रखें! गूगल पर गौ तस्कर द्वारा हमला टाइप करते ही तमाम घटनाएं आ जाती हैं:

क्योंकि उन्हें पता है कि उनके द्वारा किये गए हर कुकृत्य पर उन्हें सेक्युलर और कट्टर इस्लामी तत्वों का समर्थन मिलेगा और उन्हें उस वर्ग का भी साथ मिलेगा जो अपराध पर उठाए गए कदम को मुस्लिमों के साथ हुआ अत्याचार बताता है, यह भी शोर मचाता है कि मुस्लिमों पर अत्याचार बढ़ गए हैं और साथ ही यह भी शोर होता है कि भारत में मुस्लिम सुरक्षित नहीं है।
परन्तु कोई भी इन गौ तस्करों से यह प्रश्न नहीं करता है कि आखिर गौ वध ही उनके लिए अनिवार्य क्यों है?
क्या गाय को इसलिए जीने का अधिकार नहीं होना चाहिए क्योंकि हिन्दू धर्म का एक बड़ा वर्ग उसे अपनी माँ मानता है? क्या हिन्दुओं के प्रति घृणा निकालने के लिए ही गाय को अपना हथियार बनाया जा रहा है?