ब्राह्मण एक स्त्री की कोख से आया है ठीक वैसे ही जैसे एक चांडाल (प्राचीन काल में शव को ठिकाने लगाने वाला) जिसके लिए मोक्ष के द्वार उसने बंद कर रखे हैं, गौतम बुद्ध कहते हैं (ग्लिम्पसेस ऑफ वर्ल्ड हिस्ट्री: जवाहरलाल नेहरू ).
सारे ब्राह्मण एक जैसे नहीं, इतिहास से ये सबक लिया जा सकता है यदि कोशिश की जाती है तो। सन 2022 में ‘श्रीरामानुज सहस्त्रब्दी समारोहम’ (१००० वीं जयंती) के उपलक्ष्य में आध्यात्म के क्षेत्र और साथ ही सामाजिक समानता को लेकर श्री रामानुज के द्वारा जो कार्य किये गए उस कि पावन स्मृति में हैदराबाद में 216 फीट ऊंची भव्य प्रतिमा ‘ स्टेचू ऑफ़ इक्वेलिटी’ निर्मित कर उसका अनावरण नरेंद्र मोदी के हाथों हुआ था .
श्री रामानुज का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ, पर सामाजिक व धार्मिक क्षेत्र में समस्त प्रकार के भेदभाव युक्त बंधनों को अस्वीकार करते हुए श्रीरामानुज सभी जातीय बंधुओं के हाथों भोजन करते थे. कर्नाटक के मेलुकोटे स्थित प्रसिद्ध तिरुनारायण पेरुमाल वैष्णव मंदिर के द्वार सभी जातियों के लिए खुलवा दिए. गोल्ला[पिछड़े] समाज को तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रथम दर्शन का अधिकार उनके प्रभाव से ही संभव हो पाया.
इसी प्रकार कभी मीनाक्षी पूरम मंदिर में भी प्रवेश को लेकर जाति और पंथ को लेकर बड़ी झंझट हुआ करती थी. योगी आदित्यनाथ के गुरु विश्व हिन्दू परिषद् के महंत अवैधनाथ ने रामानुज की ही तरह इस स्थित से सदा मुक्ति पा लेने का निश्चय किया . और वो मंदिर के आगे तब तक धरने पर बैठे रहे जब तक मंदिर के द्वारा सबके लिए नहीं खुल गए .
इसके बाद भी यदि कोई जातिगत श्रेष्ठता के जूठे अहंकार में जी रहा हो तो उसे महर्षि वेद व्यास के जीवन पर एक दृष्टि जरूर डाल लेना चाहिये। उन्होंने उस माँ की कोख से जन्म लिया जो कि मत्स्य गंधा के रूप में विख्यात हैं। और, बताया जाता है कि ऐसे परिवार में उनका लालन-पालन हुआ जो मछली पालन कर सम्मान के साथ अपनी जीविका चलाया करता था।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत कहते हैं, जातिगत समुदाय के लिए जरूरी है वो खंड स्तर पर आयें , एकत्रित हों। और इस पर चर्चा करना कि अपनी जाति के समाज-जीवन में क्या-क्या कमियां और क्या-क्या खतरे हैं। देश के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं, इसकी चर्चा करना । इनके साथ और दो विषयों की चर्चा करना। पहली, अपने समाज में कोई एक ऐसी कौन सी एक समस्या है जो हम मिलकर दूर करेंगे। हर दो महीने में अगर बैठते हैं , तो फिर आगे दूसरी समस्या का समाधान पर विचार करेंगे। आगे वो जोड़ते हैं, सारे समाज मिलकर क्या इस पर विचार कर सकते हैं कि हमारे बीच कौन सी जाति दुर्बल है । सर्व-जातियों कि एक बैठक में , मेरा जाना हुआ। वाल्मीकि समाज के बंधुओं से बातचीत में पता चला उनके बच्चों के लिए पढ़ाई की व्यवस्था अपूर्ण है- सरकारी स्कूल में पढ़ाई होती नहीं; प्राइवेट स्कूल का व्यय हम उठा नहीं सकते। वहीं राजपूत समाज के नेतृत्व कर्ता बैठे थे। उनमें से एक ने कहा वाल्मीकि बस्ती तो हमारे द्वारा संचालित विद्यालय के निकट है। हम यहाँ 20% वाल्मीकि छात्रों को निशुल्क पढ़ाएंगे।
