आजादी-पूर्व के हिन्दू समाज का वर्णन करते हुए, संघ के प्रचारक व भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक, दत्तोपंत ठेंगड़ी द्वारा रचित , श्रीधर पराड़कर द्वारा हिन्दी में अनुवादित ‘डॉ अंबेडकर और सामाजिक क्रांति की यात्रा’ में उल्लेख आता है: ‘हिन्दू धर्म की भिन्न-भिन्न जातियों में पृथकता में स्वार्थ-रक्षण की वृति इतनी अधिक है , जैसे कि प्रत्येक अपने आप में एक राष्ट्र है। प्रत्येक को लगना चाहिए कि किसी भी सामूहिक-कार्य की सफलता उसकी अपनी सफलता है ; और असफलता, उसकी अपनी असफलता। यही भावना व्यक्ति को राष्ट्रीय एकत्व में बांधने के लिए कारणीभूत होती है। परंतु हिन्दू समाज में जातिवाद इसके ठीक विपरीत कार्य करता है । एक राष्ट्र होने में, अस्मिता निर्माण करने में बाधक बनता है।’(पृष्ठ- 125)
इस स्थिति को बदल डालने में जो-जो काम जरूरी हैं वो सब करने का आग्रह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपने स्वयं सेवकों सहित सम्पूर्ण राष्ट्र से करता है । 100 वर्ष पूरे होने पर इस वर्ष संघ जो पाँच काम ‘पाँच परिवर्तन’ के रूप में करने जा रहा है , उसमें सामाजिक समरसता भी है ( अन्य हैं, पर्यावरण-रक्षण; परिवार-प्रबोधन, नागरिक-शिष्टाचार व स्वदेशी) । संघ के सर संघचालक मोहन भागवत कहते हैं, समरसता सहित ये पांचों कार्य बोल कर करने के नहीं है , करके दिखाने का है। जीवन में समरस आचरण को उतार कर ही समाज को जातिवाद मुक्त किया जा सकता है। आपसी सहज मेल-जोल बढ़ाकर किया जा सकता है । एक-दूसरे के यहाँ तीज-त्योहार पर आ-जाकर भी किया जा सकता है।
जो बात मोहन जी भागवत ने कही उसका एक उज्ज्वल प्रसंग हमारे नगर में देखने को मिला । इस नवरात्र पर हमारे शहर में वाल्मीकि-बस्ती में सह भोज का आयोजन हुआ। इसी में कन्या-भोज भी शामिल था। इस अवसर पर नगर के आरोग्य-भारती से जुड़े ख्याति प्राप्त चिकित्सक डॉ अमित मोदी, गगन नामदेव और उनके साथी कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे। उन्होंने मिलकर पंक्तियों में विराजित शक्ति-स्वरूपा कन्यायों की पूजन करी , चरण स्पर्श कर भेट स्वरूप राशि अर्पित करी। इसके बाद सब ने मिल-जुलकर भोजन ग्रहण किया।
इस प्रकार के उपक्रमों में संतों का कहीं सहभागिता हो जाए तो अन्य लोगों को जल्दी ध्यान में आ जाता है कि अब तक करने योग्य क्या पीछे छूट रहा था। इस बस्ती में गरबा का भी आयोजन हुआ । इस अवसर पर सीहोर स्थित कूबरेश्वर धाम के अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कथा वाचक पंडित प्रदीप मिश्रा का आगमन हुआ। इस नितांत ही आत्मीय पल के होने से यहाँ के रहवासीयों के इस विश्वास में निश्चित रूप से कई गुणा वृद्धि हुई होगी कि वृहद हिन्दू-समाज उनका अपना ही हैं। इसे दोहराने की कोई जरूरत बाकी नहीं।
विश्व हिन्दू परिषद के राष्ट्रीय प्रमुख मिलिंद परांडे कहते हैं, केवल शस्त्र धारण एकमात्र मार्ग नहीं जिससे कि समाज की रक्षा हो। अपने सामाजिक आचरण में कुछ जरा सी बातें और जोड़कर समाज को संगठित करके भी बड़े परिणाम लाए जा सकते हैं ।