विश्व पुस्तक दिवस पर प्रस्तुत है पाठकों के लिए महानायक शिवाजी उपन्यास का अफजल वध का अंश
इधर शिवाजी अपनी योजना को अंतिम रूप दे रहे थे। क्योंकि अफज़ल क्यों मिलना चाहता था शिवाजी को नानाजी नायक ने बता ही दिया था। तय हुआ कि प्रतापगढ़ दुर्ग के नीचे जहां से रास्ता घने जंगलों की तरफ जाता है, वहां पर एक छोटी सी ऐसी झोपडी बनाई जाएगी, जहां पर प्रवेश का एक ही मार्ग हो! अफजल के आने के लिए बहुत ही खूबसूरत मार्ग की व्यवस्था की गयी। यह विशेष ध्यान रखा गया कि प्रतापगढ़ के दुर्ग में कोई भी कहीं से प्रवेश न करने पाए। इस योजना की एक एक गतिविधि की जानकारी मोरोपंत, नेताजी पालकर और तानाजी मालसुरे के पास थी। नेताजी पालकर दुर्ग के पूर्वी हिस्से की तरफ छिपे थे क्योंकि यह बहुत मुमकिन था कि अफजल की सेना वहां से आक्रमण करती। मोरोपंत खान की सेना के पीछे जावली गए। और आक्रमण के संकेत के लिए पांच तोपें लगाईं गईं! शिवाजी ने जंगल में दोनों तरफ अपने
“कल का दिन बहुत विशेष है। या तो हम रहेंगे या वह! परन्तु इस बात का विशेष ध्यान रहे कि मैं रहूँ या न रहूँ, योजना का पालन पूरी तरह से होना चाहिए! एक बार फिर से जय बोलिए! माँ भवानी की जय! वही हैं जो हमें विजय का मार्ग प्रदान करेंगी!”
और पूरा दुर्ग माँ भवानी के जयकारों से गूँज गया! वह गूँज कोसों दूर जीजाबाई तक भी पहुँची और जब अगले दिन सुबह माँ भवानी की पूजा अर्चना के उपरान्त शिवाजी अफज़ल से मुलाक़ात करने जा रहे थे तभी उनके सम्मुख एक सुखद आश्चर्य के रूप में उनकी माँ आ गईं! जीजाबाई उनके सामने थीं!
वह क्षण शिवाजी और जीजाबाई दोनों के लिए शून्य था। शून्य जितना विस्तृत, शून्य जितना ही महत्वपूर्ण! आज यदि शिवाजी विजयी होंगे तो उनकी जीत का आकाश विस्तृत होता जाएगा! सफ़ेद वस्त्रों में जीजाबाई शक्ति की प्रतिमूर्ति प्रतीत हो रही थीं! शिवाजी को लगा जैसे स्वयं माँ भवानी ही अपना आशीर्वाद देने आ गयी हों। शिवाजी ने माँ के चरण स्पर्श किए और दोनों ही कुछ क्षणों के लिए मौन हो गए! वह मौन न केवल उन दोनों के लिए बल्कि पूरी सेना के लिए असहनीय हो रहा था। अंतत: जीजाबाई ने ही मौन तोडा:
“”तुम्हें ऐसे ही संघर्षों के लिए तैयार किया है शिवा! तुम्हें विजयी होना ही है! स्मरण रखना कि धर्म और अधर्म के संघर्ष में विजय सदा धर्म की होती है! जब तुम्हारे साथ कोई नहीं था तब तुमने इतने दुर्ग प्राप्त कर लिए तो अब तो तुम्हारे साथ साथी हैं! माँ भवानी तुम्हें विजय प्रदान करेंगी! और तुम्हारे पास तो तुम्हारी माँ भवानी तुम्हारी कटार के रूप में हैं।””
अफजल खान पूरे 1500 सैनिकों के साथ आना चाहता था। परन्तु मुलाक़ात स्थल पर इतने लोग नहीं आ सकते थे इसलिए उसने अपने साथ सैनिकों की संख्या कम कर दी थी। उसे बताया गया कि शिवाजी इतने हथियारों और सैनिकों को देखकर भयभीत हो जाएंगे तो वह केवल एक तलवार लेकर आए। दोनों के बीच हुई शर्त के अनुसार दोनों ही अपनी अपनी तरफ के दो ही साथियों के साथ मिल सकते थे और शिवाजी को निशस्त्र मिलना था।
वह 10 नवंबर 1659 का दिन था जब दो योद्धा अपने अपने मन में शत्रु का खात्मा करने की योजना के साथ प्रतापगढ के पास मिल रहे थे। अफजल को अपने विशाल डीलडौल पर यकीन था और उसे लगता था कि वह शिवाजी को मसल देगा। अंतत: अफजल का इंतज़ार खत्म हुआ और शिवाजी के आने की उसे सूचना प्राप्त हुई। शिवाजी एक क्षण के लिए रुके, और उन्होंने दूर से ही अफजल को देखा! उसके विशाल शरीर को देखा! फिर धीरे धीरे कदम बढ़ाए। शर्त के अनुसार शिवाजी निशस्त्र थे, जैसे ही अफजल खान ने शिवाजी को देखा उसने उन्हें गले लगाने के बहाने अपने विशाल शरीर का फायदा उठाते हुए मारना चाहा। उसने अपनी बाजुओं से शिवाजी को कस कर लपेट लिया और गला दबाना चाहा परन्तु शिवाजी पूरी तरह से तैयार थे, और इससे पूर्व कि वह कुछ कर पाता वैसे ही शिवाजी ने सतर्कता बरतते हुए अफज़ल खान का पेट बाघनख (बाघ के नाखून से बना हथियार) से चीर दिया। अफजल की चालबाजियों के बारे में शिवाजी को पता था इसीलिए वह अपने अंगरखे में छुपाकर बाघनख लाए थे!
“”अफजल, मुझे ज्ञात था कि तुम कुछ न कुछ करोगे? तुमने यहाँ आने से तुलजापुर का मंदिर तोडा है, मेरे साथियों को मारा है और औरतों को छूने का दुस्साहस किया है! तुम्हें गाँवों में आग लगाई है! तुम्हारे पापों के लिए तो जितनी भी सजा दी जाए वह कम है! और जब यहाँ निशस्त्र आना था तब तुम तलवार लेकर आए! इतना विश्वासघात? मुझे अपनी बाजुओं में लपेट कर मारोगे? मगर समर्थ गुरु रामदास का यह शिष्य इतना निर्बल नहीं कि अपनी औरतों को मारने वाले के हाथों मारा जाए!”” शिवाजी बघनखे से उसके पेट को चीरते हुए कहते जा रहे थे!
“बड़ी बेगम के कहे अनुसार तुम दोस्ती के बहाने से मुझे मारना चाहते थे? मेरे संग उन्हीं विठोबा का आशीर्वाद है जिन्हें तुमने पंढरपुर में नष्ट करने का प्रयास किया, मगर वह सुरक्षित रहे! मेरे साथ माँ भवानी का आशीर्वाद है अफजल! तुमने हम मराठों को आपस में लड़ाने का प्रयास किया।“” शिवाजी क्रोध में बोलते जा रहे थे! शिवाजी के इस रौद्र रूप में अफजल को वह सभी मूर्तियाँ याद आ रही थीं जिन्हें इतने वर्षों उसने तोडा था! उसे उन पुजारियों का दिया हुआ श्राप याद आ रहा था जो उन्होंने समवेत स्वरों में हर मूर्ति तोड़े जाने पर दिया था! यह रौद्र रूप उसे उन सब औरतों की चीखों की याद दिला रहा था, जिन्हें वह और उसके सैनिक दुश्मन राज्यों से उठा लाते थे और जिस्म से खेलने के बाद तलवार से टुकड़े कर देते थे!
अफजल को इस तरह देखकर उसके साथ आए अंगरक्षक ने शिवाजी पर तलवार से प्रहार किया। परंतु शिवाजी के साथ आए साथियों ने इसे विफल कर दिया। किसी नशेडी की तरह अफजल खान शिविर से बाहर भागा मगर शिवाजी ने जल्द ही उसका खात्मा कर दिया। मरते हुए अफजल के कानों में उस मौलवी की भविष्यवाणी गूंज रही थी। दो दिन पहले ही जिस औरत को मारा था उसके टुकड़े टुकड़े होते जिस्म ने उसे घेर लिया था और जिस्म का हर टुकड़ा चीख रहा था। उसकी चीख उसके कान में बार बार कंपित हो रही थी। जिन 63 बेगमों को बावडी में डुबोया था उनकी बाहें उसे बुला रही थीं। जिनकी बाहों में जाने के लिए वह उत्सुक रहता था आज उसे वह भयभीत कर रही थीं। आज तक जिन जिन राजाओं को उसने धोखे से मारा था वह सब उसके आसपास तलवार लेकर खडे थे और तुलजा पुर में उसके द्वारा ध्वस्त मां भवानी का मंदिर अट्टाहास कर रहा था। अफजल का सिर उसी तरह से काटा जा चुका था जैसे उस मौलवी ने बताया था। अफजल मारा जा चुका था और उसकी सेना एक ऐसे चक्रव्यूह में फंसी थी जहां से जीवित नहीं निकला जा सकता था।
उसकी सेना शिवाजी के बिछाए हुए जाल में फंसी। वह वहीं की तरफ गयी जहां शिवाजी ले जाना चाहते थे। घोड़े, ऊँट और हाथी जंगल में वहीं पहुंचे जहां से वापसी का रास्ता न था और वापसी में शिवाजी की सेना ने मार्ग रोका हुआ था, हाथियों ने अपने ही घुड़सवारों एवं पैदल सैनिकों को कुचलना शुरू कर दिया!
अफजल की मौत की सूचना आसमान में कौंधती बिजली की तरह पूरे भारत में फ़ैल गयी! जिन सैनिकों ने समर्पण कर दिया, उनकी जान बख्श दी गयी। औरतों और बच्चों को सही सलामत उनके घर भेज दिया गया।