किसी भी कार्य में आपका प्रदर्शन कैसा है, इसको जानने के लिए कुछ मापदंड होते हैं। आप उन मापदंडों के परिणामों को जानकार यह पता लगा सकते हैं कि आप, आपकी संस्था, या आपका देश कैसा प्रदर्शन कर रहा है । दुनिया भर में ऐसे ही ढेरों सर्वे और रिपोर्ट होती हैं जो किसी भी देश के प्रदर्शन को नापने वाले मापदंडों को तैयार करती हैं, और फिर उसके अनुसार उन देशों को श्रेणी या वरीयता दी जाती है। इन रिपोर्ट से देश के बारे में सकारात्मक या नकारात्मक अनुभूति बनती है, जिसका प्रभाव उस देश के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मामलों पर पड़ता है।
ऐसा ही भारत के साथ भी होता रहता है, जैसे ही देश में सकारात्मक माहौल बन रहा होता है, या देश नई नई उपलब्धि पा रहा होता है, तब विपक्ष के पास बोलने को कुछ बचता नहीं हैं। तभी एकाएक गरीबी या भुखमरी की रिपोर्ट आ जाती हैं, जिनमे दर्शाया जाता है कि हमारे देश में अधिकांश लोग गरीब हैं, उनके पास खाने को अन्न नही है, या उनका जीवन दयनीय है। ऐसी रिपोर्ट आते ही विपक्ष हमलावर हो जाता है, मीडिया शोर मचने लगता है, सोशल मीडिया पर ट्रेंडिंग होने लग जाता है, वहीं विदेशी तत्व भी भारत का उपहास उड़ाने का यह अवसर नहीं छोड़ते।
ऐसी स्थिति में अधिकांश लोगों को समझ नहीं आता कि इस तरह के दुष्प्रचार से कैसे लड़ें, अधिकांश लोग तो ग्लानि भाव में डूब जाते हैं । वह यही सोचते रहते हैं कि हमारे देश की हालत बड़ी खराब है, सरकार निकम्मी है आदि आदि। वैसे भी आप लड़ेंगे तभी जब आपको जानकारी होगी। इस लेख के द्वारा हम आपको ग्लोबल हंगर इंडेक्स के बारे में जानकारी देने का प्रयास करेंगे।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स क्या है?
ग्लोबल हंगर इंडेक्स (वैश्विक भूख सूचकांक) में भारत 107वें स्थान पर खिसक गया है। पिछली बार के मुकाबले भारत छह पायदान नीचे है। जीएचआई के लिए दुनिया के 136 देशों से आंकड़े जुटाए गए और इनमें से 121 देशों को वरीयता सूची में डाला गया है। बाकी 15 देशों से समुचित आंकड़े नहीं होने के कारण उन्हें वरीयता सूची में स्थान नहीं मिल पाया है। इस सूची में भारत अपने लगभग सभी पड़ोसी देशों से पीछे है। मात्र अफगानिस्तान से ही भारत की स्थिति थोड़ी सी बेहतर है, जो इस सूची में 109वें स्थान पर है। 29.1 स्कोर के साथ भारत में ‘भूख’ की स्थिति कथित रूप से गंभीर बताई जा रही है।
सन 2000 से लगभग हर साल यह सूची जारी होती है। इसमें जिस देश के अंक कम होते हैं, उतना ही उसका प्रदर्शन अच्छा माना जाता है। कोई देश भूख से जुड़े सतत विकास लक्ष्यों को कितना पूरा कर पा रहा है, इसकी निगरानी करने का साधन ही वैश्विक भूख सूचकांक को माना जाता है। यह सूचकांक किसी भी देश में भूख के तीन आयामों को देखता है। पहला देश में भोजन की अपर्याप्त उपलब्धता, दूसरा बच्चों की पोषण स्थिति में कमी और तीसरा बाल मृत्यु दर(जो अल्पपोषण के कारण हो)।
यह सूचकांक एक जर्मन एनजीओ “Welthungerhilfe” द्वारा बनाया जाता है। इस संस्था को जर्मन सरकार, संयुक्त राष्ट्र और माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स की संस्था का सहयोग और समर्थन प्राप्त है। अब हम बात करते हैं उन चार मापदंडों की, जिनकी गणना कर के यह सूचकांक बनाया जाता है।
- आवश्यकता से कम पोषक खाना मिलना : इसमें जनसंख्या में उन लोगों का अनुपात निकाला जाता है, जिन्हे उपयुक्त कैलोरी युक्त खाना नहीं मिल पाता। कुल गणना में इस मापदंड का महत्त्व एक तिहाई होता है।
- चाइल्ड स्टंटिंग : इसमें 5 वर्ष से छोटे उन बच्चों का अनुपात निकाला जाता है जिनकी लम्बाई अपने उम्र के अन्य बच्चों से कम रह गयी हो। यह कमी भी पोषण की कमी से होता है। कुल गणना में इसका महत्त्व १६ प्रतिशत होता है।
- चाइल्ड वेस्टिंग : इसमें 5 साल से कम उम्र के उन बच्चों का अनुपात निकला जाता है, जिनका वजन अपनी उम्र के अन्य बच्चों से कम रह जाता है। इसका कारण भी भोजन में पोषक तत्वों की कमी होता है। कुल गणना में इसका महत्त्व 16 प्रतिशत होता है।
- चाइल्ड मोरालिटी : इसमें उन बच्चों का अनुपात निकाला जाता है जो 5 वर्ष की उम्र से पहले है मर जाते हैं। इतनी जल्दी मृत्यु का कारण पोषण की कमी और अस्वस्थ जीवन व्यवस्था होती है । कुल गणना में इसका महत्त्व एक तिहाई होता है।
इस सूचकांक के लिए जानकारी कैसे इकट्ठी की जाती है?
संयुक्त राष्ट्र की संस्थाएं, डब्लूएचओ, और कुछ अन्य संस्थाएं सभी देशों में जा कर यह जानकारी एकत्रित करते हैं। यह संस्थाएं जनसँख्या के अनुसार नमूना बनाते हैं और सर्वेक्षण करते हैं, लोगों से प्रश्न पूछ कर आंकड़ें एकत्रित किये जाते हैं। अंततः उन सभी आंकड़ों को जोड़ कर एक फार्मूला उपयोग कर यह सूचकांक बनाया जाता है।
भारत के परिप्रेक्ष्य में यह सूचकांक गलत क्यों?
ताजा रिपोर्ट पर केंद्र सरकार ने कड़ी आपत्ति जताई है। भारत सरकार ने नाराजगी जताते हुए कहा कि रिपोर्ट से यह साफ पता चलता है कि रिपोर्ट बनाने में हर तरह से लापरवाही बरती गई है और यह भारत को ऐसे राष्ट्र के रूप में दिखता है, जो अपनी आबादी की खाद्य सुरक्षा और पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है’। केंद्र ने कहा कि इस सूचकांक में जो भी तथ्य बताये गए हैं, वह आधारहीन हैं और उनकी गणना भी गलत है।
वहीं गणना करने के लिए इन संस्थाओं ने भारत से मात्र 3000 लोगों को ही चुना। आप स्वयं बताइये कि क्या भारत जैसे देश में जहां जनसँख्या 138 करोड़ हो, वहाँ मात्र 3000 लोगों से बात कर किसी सूचकांक को बनाया जा सकता है?
इस सूचकांक के साथ दूसरी समस्या है इसका गणना करने के लिए आधारभूत तथ्य, जो भारतीय परिप्रेक्ष्य में सही नहीं बैठते। भारतीय सरकार के अनुसार भारत में कैलोरी की दैनिक आवश्यकता पुरुषों में लिए 1500 है, वहीं महिलाओं के लिए 1200 है। वहीं इस सूचकांक में गणना करते समय कैलोरी की सबसे कम आवश्यकता 1800 मानी जाती है, जो भारत के परिप्रेक्ष्य से डेढ़ गुना ज्यादा है। यहाँ यह जानना महत्वपूर्ण है कि हर देश में कैलोरी की दैनिक आवश्यकता अलग हो सकती है, इसमें उस देश की भोगौलिक स्थिति, जलवायु, मौसम, ऐतिहासिक खान पान की आदतें और अन्य कई कारक हो सकते हैं। ऐसे में उनके मापदंड भारत के मापदंडों से मेल नहीं खाते।
आपके मन में अगला प्रश्न यह हो सकता है कि एकाएक यह सब देश भारत पर आक्रामक क्यों हो गए हैं? इसे समझने के लिए आप इन मुख्य बिंदुओं को समझने का प्रयत्न कीजिये।
- भारत पिछले कुछ समय से संयुक्त राष्ट्र की गलत नीतियों, उसके दोमुहे आचरण के लिए सभी मंचों से मुखर हो कर आवाज़ उठा रहा है।
- भारत ने कोरोना की वैक्सीन बनाई, तो फार्मा लॉबी ने भारत को बदनाम करने का प्रयत्न किया । लेकिन फिर भी भारत पीछे नहीं हटा, और ना मात्र स्वयं के करोड़ों नागरिकों को यह वैक्सीन लगाई, बल्कि १०० से अधिक देशों को वैक्सीन भी निर्यात की। इससे फार्मा लॉबी परेशान हो गयी है, और बिल गेट्स की संस्था भी कहीं ना कहीं इस गठजोड़ में लिप्त है। गैम्बिया
- पिछले दिनों अफ़्रीकी देश गाम्बिआ में भारतीय कंपनी द्वारा निर्मित खांसी की दवाई से कथित रूप से ६० से अधिक बच्चो की मृत्यु पर बड़ा बवाल हुआ । डब्लूएचओ ने बिना जांच किये ही इस दवाई पर रोक लगा दी, वहीं भारतीय सरकार ने उनकी कार्यवाही को अधूरा बताया। बाद में गाम्बिआ के राष्ट्रपति ने इस पर सफाई दी कि बच्चों की मृत्यु एक बैक्टीरिया के कारण हुई है, ना कि इस खांसी की दवाई के असर से। लेकिन इन संस्थाओं ने एकाएक भारतीय फार्मा को बदनाम करना शुरू कर दिया था।
- रूस और यूक्रेन के युद्ध में भारत ने तटस्थ रूख रखा है, इससे सबसे अधिक समस्या उत्पन्न हुई है अमेरिका, इंग्लैंड और जर्मनी को। यही कारण है कि इन देशों के नेताओं के बयान बड़े आपत्तिजनक आने लगे हैं। जर्मनी ने कश्मीर का मुद्दा उठाया है, वहीं अमेरिका ने पाकिस्तान को फंडिंग देनी शुरू कर दी है, दूसरी ओर इंग्लैंड की एक महिला मंत्री ने भारतीयों के बारे में आपत्तीजनक टिपण्णी की, जिसके पश्चात दोनों देशों के मध्य होने वाला ‘फ्री ट्रैड एग्रीमेंट’ अब खटाई में पड़ गया है।
अब इन चारों बिंदुओं को आप जोड़ कर देखेंगे तो आपको समझ आ जाएगा कि क्यों एकाएक इन देशों और संस्थाओं ने भारत पर आक्रमण करना शुरू कर दिया है। वहीं एक और सत्य यह भी है कि यह लोग कितना भी हल्ला मचा लें, लेकिन कोई भी इस बात को नहीं नकार सकता कि भारत ने पिछले कुछ वर्षों में दुनिया के अधिकाँश देशों को कई लाखों टन अनाज और अन्य खाद्य पदार्थ निर्यात किये हैं।
इन देशों में इजिप्ट, अफ़ग़ानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, इजराइल, इंडोनेशिया, मलेशिया, नेपाल, ओमान, फिलीपींस, क़तर, दक्षिणी कोरिया , श्री लंका, सूडान, स्विट्ज़रलैंड, थाईलैंड, यूएई, वियतनाम और यमन हैं । यह सभी देश इस सूचकांक में भारत से कहीं ऊपर हैं, इनमे से कई तो विकसित राष्ट्र भी हैं। ऐसे में क्या यह प्रश्न नहीं उठता कि अगर भारत में इतनी भुखमरी है तो हम इतने लाखो टन खाध सामग्री दूसरे देशों की सहायता करने के लिए कैसे भेज पा रहे हैं?
यह आंकड़ें और सूचकांक, जो हर देश के विविध बातों के बारे में बिना किसी जमीनी सर्वे कराये बस अपने मन मुताबिक जारी कर दिए जाते हैं, इनक एकमात्र उद्देश्य होता है अन्य देशों में राजनीति अस्थिरता पैदा करना । इस तरह का बौद्धिक आतंकवाद कट्टर इस्लामिक आतंकवाद से भी दुरूह है, क्योंकि इसमें आप दुश्मन से हथियारों से नहीं लड़ सकते।