spot_img

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

spot_img
Hindu Post is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
39.6 C
Sringeri
Friday, April 26, 2024

विवाह पंचमी और यशोदा देवी द्वारा लिखित विवाह विज्ञान पुस्तक की महत्ता

आज माता सीता एवं प्रभु श्री राम के विवाह के अवसर पर विवाह पंचमी मनाई गयी। भारतीय विमर्श में इन दिनों विवाह की पूरी अवधारणा को विकृत कर दिया है एवं उसे स्त्री के शोषण का आधार बता दिया जाता है। विवाह संस्था के विषय में ऐसा कह दिया जाता कि जिसमे प्रवेश करके लड़की का जीवन बर्बाद है और इतना ही नहीं इसे लड़कों के लिए केवल अतिरिक्त जिम्मेदारी बता दिया जाता है।

दाम्पत्त्य जीवन में क्या सुख है, वह इन दिनों जैसे गायब है। ऐसे में जब हम विवाह पंचमी मना रहे हैं तो आवश्यक है कि वैद्य यशोदा देवी द्वारा लिखी गयी पुस्तक “विवाह विज्ञान” पढनी चाहिए। यह पुस्तक इसलिए आज के लिए आवश्यक है क्योंकि यह पुस्तक विवाह को आध्यात्म एवं धर्म के साथ जोडती है। जब वामपंथी फेमिनिज्म विवाह को गुलामी बताता है और वह कहता है कि परिवार दरअसल नष्ट हो जाने चाहिए, उस समय यशोदा देवी का विमर्श अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि यशोदा देवी विवाह को तोड़ने के मुख्य कारण 70% असंतुष्टि वाली पूरी धारणा को ध्वस्त करती हैं।

वह प्रेम, देह, यौन सम्बन्ध एवं आध्यात्म, सभी को परस्पर इस प्रकार गूँथ देती है कि पाठक विवाह का महत्व समझ सकते हैं। वैध यशोदा देवी का नाम आम परिदृश्य से विलुप्त है। वह विलुप्त क्यों है उसके विषय में विमर्श होना ही चाहिए। क्योंकि यदि यशोदा देवी का विमर्श चलता तो आज विवाहों के टूटने की स्थिति नहीं आती। वह विवाह के लिए ग्रहों की अनुकूलता पर भी बात करती हैं।

वह विवाह को मात्र दो देहों का मिलन ही नहीं बतातीं, वह यौन संतुष्टि को मात्र देह तक नहीं जोडती है, बल्कि वह उससे भी कहीं अधिक वृहद स्वरुप प्रस्तुत करती हैं।

इस पुस्तक के समर्पण को ही पढ़ना चाहिए, जिसमें वह लिखती हैं कि दम्पत्तय जीवन को सुखमय बनाने वाले और नारी जीवन के महत्व को समझने वाले तथा गृहस्थाश्रम को स्वर्ग-सुख का अनुभव करने की अभिलाषा रखने वाले, आरोग्यता और दीर्घ जीवन तथा उत्तम सन्तान के इच्छुक दम्पतियों के कर कमलों में यह तुच्छ भेंट सादर समर्पित है!”

जहां इस समय का फेमिनिज्म एवं सामाजिक विमर्श केवल जीवन में सेटल होना ही निर्धारित करता है, कि बस शादी हो जाए और एक बच्चा! वर्तमान चलन में गृहस्थाश्रम में सुख की पूरी अवधारणा ही बदल गयी है और जिसका परिणाम है कि लिव इन में लोग रहने के लिए चले जाते हैं क्योंकि वह विवाह के उत्तरदायित्व को उठाने से हिचकते हैं।

वह विवाह के आदर्श में माता सती एवं महादेव को बताती हैं। वह महादेव एवं माता सती के प्रेम की व्याख्या करते हुए लिखती हैं कि “जिस प्रकार सती अपने शिव से प्रेम करती थीं, उससे कहीं अधिक शिव जी का प्रेम सती पर था!”

“शिवजी रात दिन सती के मृत शरीर को लिए फिरते थे।” वह प्रेम की व्याकुलता को लिखती हैं। क्या ऐसा प्रेम बिना विवाह के हो सकता है? नहीं? ऐसा प्रेम उस विवाह के बिना नहीं हो सकता है जो हमारे यहाँ पर सृष्टि के आरम्भ से ही है। यह पुस्तक उस बेहूदा संतुष्टि के प्रश्नों के तमाम उत्तर देती है,

वह दाम्पत्त्य प्रेम की महत्ता बताते हुए लिखती हैं कि

“दाम्पत्त्य प्रेम संसार का वह दुर्लभ पदार्थ है, जिसकी चाहना साधारण पुरुषों से लगाकर देवता तक करते हैं। दाम्पत्तय प्रेम के मुख से अधिक सुख स्वर्ग में भी नहीं हैं!

वह विवाह के उपरान्त होने वाले उस सुख की महत्ता के विषय में बात करती हैं, जिसे आज प्रेम और सेक्स दो अलग अलग आयामों में भौतिक रूप से परिवर्तित कर दिया। वह संतुष्टि की उस परिभाषा से परे देह, स्वास्थ्य एवं आध्यात्म को परस्पर जोडती हैं।

विवाह विज्ञान पृष्ठ – 41

वह इस बात पर भी बल देती हैं कि गृहस्थी में सुख के लिए आर्थिक सामंजस्य एवं संतोष आवश्यक है। वह लिखती हैं कि आमदनी कम, खर्च ज्यादा होने के कारण ऐश्वर्य एवं सुख भोग से भी स्त्रियों की अभिलाषा पूर्ण नहीं होती है, इसलिए सैकड़ा पीछे निन्न्यान्वे दंपत्ति ऐसे मिलेंगे जिनमें उन्मुक्त प्रेम नहीं होता है। इसी कारण गृहस्थी का सूझ जैसा चाहिए होता है, वैसा नहीं मिलता है, बल्कि दाम्पत्य जीवन दुखमय हो जाता है।

वह विवाह में अनुकूलता को लेकर भी मुखर हैं। वह लिखती हैं कि स्त्रियाँ भी कई प्रकार की होती हैं, उन स्त्रियों के योग्य पुरुष भी कई प्रकार के होते हैं। किस स्त्री का किस प्रकार का पुरुष होना चाहिए, वैसे ही पुरुष से विवाह होने पर दाम्पत्त्य जीवन का सच्चा आनंद मिलता है!

आज जब हम हर क्षेत्र में विवाह को लेकर अजीब धारणाओं को देख रहे हैं, उद्देश्य रहित विवाहों को देख रहे हैं, रोज बढ़ते हुए तलाकों की संख्याओं को देख रहे हैं, ऐसे में यह देखना अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि विवाह विज्ञान का कितना अनुपालन किया जा रहा है? विवाह पंचमी के दिन यह उचित होगा कि इस पुस्तक को कम से कम एक बार पढने का प्रयास किया जाए क्योंकि यह विवाह के उस विज्ञान पर बात करती है, जिसके ज्ञान के अभाव में वामपंथी विमर्श हर धारा में अपना स्थान बनाता जा रहा है एवं फेमिनिज्म का वह सिद्धांत जिसमें परिवार को शोषण करने वाला एवं विवाह को गुलामी की जंजीर बताने वाला विमर्श फलफूल रहा है।

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.

Thanks for Visiting Hindupost

Dear valued reader,
HinduPost.in has been your reliable source for news and perspectives vital to the Hindu community. We strive to amplify diverse voices and broaden understanding, but we can't do it alone. Keeping our platform free and high-quality requires resources. As a non-profit, we rely on reader contributions. Please consider donating to HinduPost.in. Any amount you give can make a real difference. It's simple - click on this button:
By supporting us, you invest in a platform dedicated to truth, understanding, and the voices of the Hindu community. Thank you for standing with us.