उत्तर प्रदेश में अब पुलिस की कार्यवाही चल रही है और सभी किसानों के पोस्टमार्टम हो गए हैं। एवं सभी दलों की सहानुभूति उन्हीं किसानों के साथ है, जो मारे गए। किसी भी देश के लिए हर इस प्रकार की मृत्यु दुखदायी होती है, परन्तु उन मृत्यु का क्या, जो इन कथित किसानों के हाथों हुई हैं? क्या उन्हें किसी भी प्रकार से जस्टिफाई किया जा सकता है? या फिर उन्हें इसलिए मारदिया जाना न्यायोचित है क्योंकि जो मारे गए हैं वह भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता है?
क्या अब विपक्ष जानबूझकर इस बात पर उतर आया है कि या तो हमें ही सत्ता मिले, नहीं तो हम भाजपा के कार्यकर्ताओं को मरवाएंगे? और उसके बाद भी झूठ फैलाएंगे?
भाजपा के कार्यकर्ता शुभम मिश्रा सहित किसान आन्दोलन के कारण हुई हिंसा और लिंचिंग में मारे गए सभी भाजपा कार्यकर्ताओं को कल प्रशासन की ओर से मुआवज़े की राशि मिल गयी है।

पर शुभम और शेष लोगों को कथित किसानों द्वारा मारा क्यों गया? क्या ब्राह्मण होने के नाते, क्या हिन्दू होने के कारण या फिर भाजपा का होने के कारण? यह समझ में नहीं आ रहा है?और सबसे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण इस पूरे कथित “किसान” आन्दोलन का भिंडरावाले के समर्थन में उतर आना है। राकेश टिकैत का यह बयान पूरे देश की आत्मा पर जले पर नमक छिडकने जैसा है, जिसमें वह भिंडरावाले को संत कह रहे हैं।
उससे भी अधिक जो दुखद और भड़काऊ बयान है वह यह कि भाजपा कार्यकर्ताओं को मारने वालों के विरुद्ध कोई एफआईआर दर्ज नहीं होने चाहिए। क्यों नहीं होनी चाहिए? पहले टिकैत का बयान सुनते हैं:
टिकैत इसमें कह रहे हैं कि “हमने मांग की थी कि दूसरे पक्ष वालों की शिकायत दर्ज नहीं की जाएगी?” अब प्रश्न है कि क्यों शिकायत दर्ज नहीं की जाएगी? क्या इसलिए क्योंकि मरने वाले हिन्दू थे? या फिर मरने वाले भाजपाई थे? हिन्दुओं के साथ कोई भी दल तब तक खड़ा नहीं होता है जब तक भाजपा के खिलाफ कोई एजेंडा न चलाना हो।
कल तक ब्राह्मणों के लिए प्रबुद्ध सम्मेलन कराने वाले सभी दल ब्राह्मणों की इस प्रकार लिंचिंग पर चुप क्यों हैं? क्या वह भी टिकैत की इस बात पर सहमत हैं कि इस प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं होनी चाहिए? ब्राह्मणों के सम्मान के लिए कथित रूप से मैदान में कूदने वाली कांग्रेस इन ब्राह्मणों के पक्ष में न बोलकर उस भीड़ के साथ है क्या जिसने उस भिंडरेवाला की तस्वीर पहनी हुई थी, जिसे खुद उनकी ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने समाप्त किया था?
यह गुत्थी बहुत उलझी हुई है?
जिस खालिस्तानी आतंकवाद का शिकार खुद कांग्रेस हुई है, उसी भिंडरावाला की तस्वीर पहने हुए व्यक्ति को कैसे वह किसान कह सकती है? और कैसे वह उस लिंचिंग को सही ठहरा सकती है?
क्या आप मात्र राजनीतिक विरोधी होने से उस व्यक्ति को मार डालेंगे? शायद कांग्रेस और उसके समर्थक दलों का यही कहना और मानना है? आपके लिए मात्र अपना समर्थन ही मायने रखता है और शेष कुछ नहीं?
और भिंडरावाला को संत कैसे कोई ठहरा सकता है? खालिस्तानी आतंकियों का इस किसान आन्दोलन से क्या लेना देना है? और भिंडरावाला और किसान कानूनों के बीच क्या सम्बन्ध है? क्यों हिन्दुओं की हत्याओं को राकेश टिकैत सही ठहरा रहे हैं और क्यों भिंडरावाला को संत ठहरा रहे हैं? और जिनका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं वह टिकैत के लिए आदमखोर है और जो भिंडरावाला, हज़ारो हत्याओं का कारण है, जिसके कारण न जाने कितने हिन्दुओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा, वह संत है?
संत और आदमखोर की परिभाषा गढ़ने वाले यह लोग कौन हैं?
पर इससे बढ़कर कल एक यूजर ने एनडीटीवी का एक वीडियो साझा किया, वह देखना महत्वपूर्ण है। उसमें यह दावा किया गया कि आशीष मिश्रा ही गाड़ी में था, और जहाँ पर नाम था, वहां पर बीप कर दिया। उस लड़के ने अंकित दास का नाम लिया, जो कांग्रेस के नेता के भतीजे है, मगर एनडीटीवी ने अंकित दास के नाम पर बीप चला दिया और इस प्रकार यह ही दिखाने का प्रयास किया कि गाड़ी में आशीष मिश्रा थे, जबकि आशीष मिश्रा ने यह कहा है कि वह उस समय दंगल में थे, जब यह हादसा हुआ।
आशीष मिश्रा को आज पुलिस की ओर से आज जांच के लिए उपस्थित होने का नोटिस दिया गया है।
पुलिस की जाँच में जो आएगा, वह आएगा, परन्तु एक समाज के रूप में क्या अब विरोध का अर्थ यही रह गया है कि हिन्दुओं को और विशेषकर ब्राह्मणों को निशाना बनाएं? उन की हत्या करने वालों को छोड़ दिया जाए और बिना किसी कारण के उन्हें आदमखोर कहा जाए? टिकैत और खालिस्तानी क्या चाहते हैं कि न्याय पाने का जो मूलभूत अधिकार है, वह हिन्दुओं से छीन लिया जाए? क्या उन्हें न्याय पाने का अधिकार भी नहीं है?
और उसमें एक नाम श्याम सुंदर निषाद का भी है, जिन्हें केवल इसलिए मार डाला गया क्योंकि उन्होंने भीड़ द्वारा मारे जाने पर भी यह नहीं कहा कि उन्हें अजय मिश्रा टेनी ने भेजा था। उनके परिवार के अनुसार वह दंगल देखने गए थे, और बदले में उन्हें ऐसी मौत मिली। तीस साल के श्याम सुन्दर निषाद की दो बेटियाँ हैं, चार साल की अंशिका और एक साल की जयश्री!
क्या इन दोनों बच्चियों के सिर से और शुभम मिश्रा की एक साल की बेटी के सिर से पिता का साया छीनने वालों पर कोई कार्यवाही भी न की जाए?
जिन लोगों ने उनका सब कुछ छीन लिया, क्या उनसे यह भी न प्रश्न किया जाए कि आपने क्यों किया? और यह जो कथित किसान हैं, वह शायद यह भी न चाहते हों कि उनके खूनी पंजों से मरे हुए मासूम लोगों को सरकार की ओर से मुआवजा भी मिले क्योंकि मुआवजा मिलने का अर्थ है किसी गलत काम का शिकार होना!
क्या यह कथित किसान आन्दोलन इतना स्वार्थी है कि वह ऐसे बच्चों को पिताविहीन ही नहीं कर रहा है, बल्कि यह इन बच्चियों के सिर से न्याय मिलने का मूल अधिकार भी छीन रहा है और उस पर एनडीटीवी जैसे चैनल जानबूझकर झूठ फैला रहे हैं, मूल नाम को दबाकर!
कुछ बहुत मूल प्रश्न हैं, जिनके उत्तर तो इस कथित आन्दोलन और इसका साथ देने वाले कथित “लेखकों” कलाकारों और “बुद्धिजीवियों” (कुबुद्धिजीवियों) को देने ही होंगे!