HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma

Will you help us hit our goal?

HinduPost is the voice of Hindus. Support us. Protect Dharma
22.1 C
Sringeri
Thursday, June 1, 2023

कारवाँ पत्रिका ने योगी आदित्यनाथ के शासनकाल को बताया “आदित्यनाथ का आतंक का राज्य” और लिखा “हिंसा का पुजारी”

एजेंडा पत्रिका कारवाँ ने फिर अपना असली चेहरा दिखाते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए अपशब्दों का प्रयोग किया है और एक ऐसे नैरेटिव की स्थापना करने का कुप्रयास किया है, जिसे हिन्दू विरोधी मीडिया बार बार कर रहा है। जैसा हमने कल ही देखा था कि इंडियन एक्सप्रेस के एक सहज विज्ञापन को मुस्लिम विरोधी बता दिया गया था।

https://hindupost.in/bharatiya-bhasha/hindi/leftist-claimed-rioters-are-muslims-in-up-government-ad/

विपक्ष के साथ साथ वह मीडिया भी जोर शोर से योगी आदित्यनाथ को मुस्लिम विरोधी बताने में लगा हुआ है, जिसकी अपनी विश्वसनीयता भारत के नागरिकों की दृष्टि में नहीं है परन्तु एजेंडा बनाने वाले और हिन्दू विरोधी नैरेटिव स्थापित करने वालों के बीच है। उत्तर प्रदेश में पिछले पांच वर्षों का शासन शांति का शासन रहा है और दंगों से मुक्त रहा है। उत्तर प्रदेश का निवासी यदि आज रात को बारह बजे भी शान्ति से बाहर निकल सकता है तो वह केवल और केवल योगी आदित्यनाथ की सरकार द्वारा दिए गए सुरक्षित वातावरण के कारण। परन्तु एक बात समझ से परे है कि दंगा रहित प्रशासन को मुस्लिम विरोधी क्यों मान लिया जाता है, क्या यह धीरेन्द्र के झा जैसे लोग यह मानते हैं कि मुस्लिम ही दंगाई होते हैं?

यह अत्यंत विचारणीय प्रश्न है, क्योंकि योगी आदित्यनाथ ने जब आज़म खान, अतीक अहमद जैसों पर कार्यवाही की है तो क्या इनके पीड़ित मात्र हिन्दू थे या मुस्लिम भी थे? यहाँ तक कि आज़म खान ने तो मदरसा की जमीन भी हड़प ली है। खैर धीरेन्द्र के झा जैसे लोगों के लिए मुस्लिमों का अर्थ आजम खान, या फिर अतीक अहमद, या फिर कबाड़ माफिया जैसे लोग ही मुस्लिमों का नेतृत्व करते हैं। उनके लिए न ही आम हिन्दू मायने रखते हैं और न ही ऐसे लोगों का निशाना बन रहे देश से प्रेम करने वाले आम मुस्लिम।

खैर, कारवाँ पत्रिका के इस एजेंडे की पोल तो सोशल मीडिया पर लोगों ने खोल दी, जब उन लोगों ने वह सारे समाचार साझा करने आरम्भ किए, जिनमें मोस्ट वांटेड अपराधी स्वयं ही पुलिस के समक्ष आत्मसमर्पण करने आ रहे थे।

भू माफियाओं से लेकर कबाड़ माफियाओं तक योगी सरकार ने कदम उठाए हैं

आजम खान और अतीक अहमद तो बड़े नाम थे, जिनके आतंक के विषय में पिछली सरकार तक किसी के बोलने का साहस भी नहीं होता था। परन्तु एक बहुत बड़ा माफिया था, जिसके विषय में न ही कोई सोच सकता था और न ही कोई बोल सकता था, वह था कबाड़ माफिया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ का सोतीगंज एक ऐसा क्षेत्र था जहाँ पर कहने के लिए पुरानी गाड़ियां कटने के लिए आती थीं, परन्तु सत्य यही है कि कहीं से भी चोरी हुई गाड़ियाँ यहाँ आती थीं और जो गाड़ी एक बार इधर आई, वह फिर पुर्जे पुर्जे होकर कहाँ जाती थी, पता नहीं चलता था।

हाजी गल्ला से लेकर इकबाल कबाड़ी, उसके बेटे अबरार, इरफ़ान उर्फ़ राहुल काला आदि की अवैध संपत्तियां कुर्क हो चुकी हैं। क्या इन्होनें यह अपनी मेहनत से कमाई थीं? नहीं! यह सब चोरी और कबाड़ के कारण कमाई गयी थीं।

उत्तर प्रदेश चुनावों में गढ़ना है विपक्षियों को मुस्लिम विरोध का नैरेटिव

भारत में चुनाव का अर्थ होता है कट्टर मुस्लिमों के लिए, कट्टर मुस्लिमों द्वारा, कट्टर मुस्लिमों के पसंदीदा नेतृत्व का चुनाव करना। जैसे जैसे लोगों के भीतर मुद्दों के विषय में जागरूकता आती जा रही है और जैसे जैसे हिन्दू मीडिया द्वारा फैलाए जा रहे इस कथित सेक्युलरिज्म का अर्थ समझते जा रहे हैं, वैसे वैसे सही अर्थों में सेक्युलरिज्म की बात करने लगे हैं। कारवाँ जैसी पत्रिकाओं केलिए सेक्युलरिज्म का अर्थ होता है देश विरोधी कट्टर मुस्लिम विचारधारा का विस्तार करना, जबकि संविधान में ऐसा नहीं है और न ही न्यायपालिका इनके एजेंडे को सही मानती है।

पाठकों को स्मरण होगा कि कारवाँ पत्रिका द्वारा एक कथित इन्वेस्टिगेशन की गयी थी और उसमें अमित शाह को फंसाने के लिए जस्टिस लोया की मृत्यु को संदिग्घ बता दिया गया था। जस्टिस लोया सोहराबुद्दीन मुठभेड़ के मामले की सुनवाई कर रहे थे। परन्तु इस सहज मृत्यु को कारवाँ पत्रिका ने अपनी एक “रिपोर्ट” में दावा किया था कि जस्टिस लोया की मृत्यु साधारण नहीं थी, बल्कि संदिग्ध थी। और फिर उसके बाद से ही राजनीतिक शोर मचना आरम्भ हो गया था। परन्तु न्यायालय ने कहा था कि यह सहज मृत्यु थी।

न्यायालय में दोबारा याचिका लगाए जाने पर उच्चतम न्यायालय ने फटकार लगाते हुए कहा था कि चार जजों के बयान पर संदेह का कोई कारण नहीं है, उनपर संदेह करना संस्थान पर संदेह करने जैसा होगा। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि इस मामले के लिए न्यायपालिका को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है। 

धीरेन्द्र के झा के लेख उनकी विचारधारा का उल्लेख स्वयं कर देते हैं। हालांकि अब इसके पक्ष और विपक्ष में लोग उतर आए हैं, जहाँ जनता का रिपोर्टर जैसे एजेंडावादी पोर्टल इसके समर्थन में आकर लेख लिख रहे हैं और योगी आदित्यनाथ के विषय में लिखते हुए उन्हें हिन्दू आतंकी संगठन शुरू करने वाला बता रहे हैं। उन्होंने योगी आदित्यनाथ की हिन्दू युवा वाहिनी को आतंकी संगठन बता दिया है। और यह पोर्टल इस बात को लेकर हँस रहा है कि किस प्रकार हिन्दू कारवाँ के पीछे पड़ गए हैं।

दरअसल इन सभी को हिन्दुओं की चेतना से घृणा है और कट्टर मुस्लिम एजेंडे से प्यार। इनके लिए सोहराबुद्दीन नायक है और भारत के लिए प्राण अर्पित करने वाले मुस्लिम खलनायक!

भारतीय जनता पार्टी के नेता कपिल मिश्रा ने लिखा कि यह साबित होता है कि

जिहादियों और इस्लामिक आतंकियों के बाप हैं योगी

इस लेख को लेकर वकील युक्ति राठी ने एक शिकायद भी दर्ज कराई है:

प्रदीप भंडारी ने लिखा है कि जितनी मदद ऐसी मैगज़ीन करती हैं भाजपा की उतनी कोई नहीं कर सकता।। 2002 दंगों  के बाद ऐसी ही पदवी PM नरेंद्र मोदी को भी दी गई थी। सब जानते हैं उसके बाद क्या हुआ।

पश्चिम बंगाल और केरल में भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के कैडर की हत्या की जाती रही, परन्तु कारवाँ शांत रही, इसी बात पर एक यूजर ने लिखा कि

वहीं फिल्मनिर्माता अशोक पंडित ने लिखा कि भारत अब अर्बन नक्स्ल्स, खालिस्तानी और कांग्रेस से सुरक्षित है,

कारवाँ की इस कथित रिपोर्ट से अब यह स्पष्ट हो गया है कि हिन्दू मुस्लिम का मुद्दा जितना अधिक यह कथित पत्रिकाएँ बनाती हैं और हर गलत कार्य के लिए मुस्लिमों को दोषी ठहराती हैं, उतना कोई और नहीं करता। क्योंकि यदि दंगे न होने को लेकर यह लोग आतंक का राज और मुस्लिमों के विरोध में बता रहे हैं, तो क्या यह इस तथ्य को जनमानस के हृदय में स्थापित करना चाहते हैं कि मुस्लिम समुदाय की दंगे करवाता है?

क्या माफियाओं से मुक्ति को यह लोग मुस्लिम विरोधी बताकर यह स्थापित करना चाहते हैं कि मुस्लिम ही माफिया हैं?

यह क्या स्थापित करना चाहते हैं, यह तो वही जानें, परन्तु भारत में और विशेषकर उत्तर प्रदेश के लोग जानते हैं कि सोतीगंज का आतंक क्या था? आजम खान और अतीक अहमद का आतंक क्या था? अतीक अहमद तो जेल से ही फिरौती मांगने की अभी तक हिम्मत कर पा रहा है। तो जब इनकी प्रिय पार्टियों की सरकारें रही थीं, तब क्या होता होगा, यह अनुमान सहज लगाया जा सकता है!

यह देखना आवश्यक होगा कि गांधी जी के विषय में अपशब्द कहने पर जिस प्रकार कालीचरण जी महाराज पर कार्यवाही हुई, क्या वैसा ही कदम या वैसा ही विरोध योगी आदित्यनाथ के विषय में “हिंसा का पुजारी” कहे जाने पर होगा? क्योंकि गांधी जी न ही किसी संवैधानिक पद पर रहे थे और न ही वह लोकतांत्रिक प्रतिनिधि थे! परन्तु योगी आदित्यनाथ एक संवैधानिक पद पर हैं और मुख्यमंत्री हैं। और उनके बहाने हिन्दू धर्म एवं हिन्दुओं को आतंकी ठहराने का यह अत्यंत घृणित प्रयास है!

Subscribe to our channels on Telegram &  YouTube. Follow us on Twitter and Facebook

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Latest Articles

Sign up to receive HinduPost content in your inbox
Select list(s):

We don’t spam! Read our privacy policy for more info.