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Friday, April 19, 2024

एक ओर चल रहा है हिन्दू मंदिरों को सरकारी बेड़ियों से छुड़वाने का प्रयास, वहीं एक ओर रचा जा रहा है मंदिरों को खत्म करने का षड्यंत्र?

भारत वह देश है जहाँ हर कदम पर हमें एक देवालय अपनी भव्यता की छटा बिखेरता दिख जाता है। उत्तर में केदारनाथ से दक्षिण में रामेश्वरम तक इन्हीं मंदिरों की भव्यता एवं पौराणिक इतिहास पर ही तो हिन्दू सदियों से गौरवान्वित महसूस करते हैं। साथ ही भारत ही वह देश है जहाँ मंदिरों में भगवान भले ही अनेकों स्वरूप में विराजमान होते हैं, मगर भक्त समान श्रद्धा से अपने इष्ट एवं ईश्वर को नमन करते हैं।

किन्तु, भारत की एक विडंबना यह भी रही है कि लम्बे समय से हमारे हिन्दू मंदिर सरकारी बेड़ियों में जकड़े हुए हैं। साथ ही सरकार ने मंदिरों में ईश्वर के दान को हड़पकर अपने तिजोरियों में भर लिया है। अब तो ऐसा भी समय आ गया है जहाँ स्वयं सरकार ही मंदिरों को तोड़ने का निर्देश दे रही है।

आपको बता दें कि तमिलनाडु में स्टालिन सरकार ने अपने वर्तमान कार्यकाल में कई हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त करने का कार्य किया है। इन ध्वस्त किए गए मंदिरों में कुछ ऐसे भी मंदिर थे जो 1000 से अधिक साल प्राचीन थे। तमिलनाडु में कोयंबटूर जिले में मुथनकुलम झील के पूर्वी बांध के साथ बने नौ हिंदू मंदिरों को पिछले वर्ष तमिलनाडु सरकार ने नष्ट कर दिया। इस पक्षपाती कार्रवाई के बाद कई हिन्दू संघठन तमिलनाडु की सड़को पर विरोध के लिए उतरे।

तमिलनाडु सरकार का यह एक पक्षपाती कार्रवाई का उदाहरण नहीं है, बल्कि ऐसे कई मंदिरों पर बुलडोजर चलाने का काम किया है। आश्चर्य यह होता है कि उत्तर प्रदेश बुलडोजर अपराधियों के ठिकानों पर चल रहे हैं और तमिलनाडु में हिन्दू मंदिरों पर। एक रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि बीते साल दो दर्जन से अधिक(16) हिन्दू मंदिरों को तोड़ा गया है। साथ ही तमिलनाडु में स्टालिन के नेतृत्व वाली द्रमुक सरकार ने 40 साल पुराने मंदिर के ढांचे को केवल यह दावा करते जिए नष्ट कर दिया था कि यह एक जलाशय के पास स्थित है। इसी तरह, सरकारी अधिकारियों ने तंजावुरी में 1000 साल पुराने मंदिर पर भी बुलडोजर चलाया।

आपको यह भी बता दें स्टालिन सरकार पर कई बार हिन्दुओं के साथ पक्षपात करने का आरोप लग चुका है। साथ ही मुख्यमंत्री एम.के.स्टालिन खुद भी एक चर्च के उद्घाटन में कह चुके हैं कि “तमिलनाडु में सत्ता में सरकार आपके(ईसाईयों) द्वारा बनाई गई है।”

मंदिरों की शह में धर्मांतरण बढ़ा

पाठकों को यह जानकर आश्चर्य होगा कि चर्च या मस्जिद के किसी भी अवैध ढांचे को तमिलनाडु में हाथ लगाया गया हो ऐसा न तो खबर में सुनने को मिला और न तमिलनाडु सरकार ने इस बात की सुध ली। साथ ही यह जानकर भी आप हैरान होंगे कि तमिलनाडु में स्टालिन की डीएमके सरकार आने के उपरांत ही धर्मांतरण माफियाओं ने अपने पैर मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ा। इन सबमें सबसे आगे है ईसाई धर्मांतरणकारी, जिसने दक्षिण से लेकर भारत के उत्तर तक अपना पैर ऐसी ही सरकारों की शह में मजबूत कर लिया है।

धर्मांतरण से जुड़ा एक ताजा मामले सामने आया जिसमें तमिलनाडु के तंजावुर में सेक्रेड हार्ट स्कूल की छात्रा लावण्या को जबरन धर्मांतरण कराने के लिए दबाव बनाया गया, जिससे तंग आकर बच्ची ने आत्महत्या जैसा घातक कदम उठा लिया। इस घटना ने देश को झंकझोर कर रख दिया है और यह सोचने पर विवश कर दिया है कि मंदिरों के ध्वस्तीकरण के साथ-साथ क्या तमिलनाडु प्रशासन धर्मांतरण को भी बढ़ावा दे रही है?

पड़ोसी राज्य कर्नाटक में सरकार ले रही है सकारात्मक फैसले

जहाँ एक तरफ तमिलनाडु सरकार मंदिरों के ध्वस्तीकरण में खून-पसीना झोंक रही है वहीं पड़ोसी राज्य कर्नाटक में इसके विपरीत मंदिरों को सरकारी बेड़ियों से छुड़ाने का कार्य आरम्भ हो गया है। कर्नाटक में भाजपा सरकार ने बजट सत्र में घोषणा की है कि सरकारी नियंत्रण वाले मंदिरों को मुक्त किया जाएगा। पिछले वर्ष’ कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई ने आश्वासन दिया था कि उनकी सरकार मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के लिए एक कानून पारित करेगी। मंदिरों को मुक्त करना कर्नाटक और अन्य जगहों पर हिंदुओं की लंबे समय से मांगों में से एक रहा है, जिसे मुख्यमंत्री ने अपने भाषण में स्वीकार किया।

आपको बता दें कि पिछले साल दिसंबर में सीएम बोम्मई ने बीजेपी कार्यकारिणी की बैठक में कहा था कि उनकी सरकार बजट सत्र से पहले मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने के लिए एक कानून लाएगी। बहरहाल इस फैसले ने हिन्दुओं को एक आशा की छोटी सी किरण अवश्य प्रदान की है। आपको बता दें कि यह मुद्दा उस समय सामने लाया गया था 100 साल पुराने मंदिर विध्वंस का मामला सामने आया था।

मैसूर के सांसद प्रताप सिम्हा ने ही इस मामले को मुख्यमंत्री के सम्मुख उठाया था, जिन्होंने तब विध्वंस अभियान को तुरंत रोकने का आदेश दिया था। इससे पहले उत्तराखंड में कई हिन्दू मंदिरों सरकारी नियंत्रण से मुक्त लिया जा चुका है। इनकी संख्या 51 है। कर्नाटक सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य अवश्य है।

शांतनु मिश्रा

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