हिन्दुओं के मंदिरों को वैसे तो सरकारी तौर पर नियंत्रित किया ही जाता है, साथ ही मंदिरों के साथ कई और घटनाएँ ऐसी होती हैं, जो यह प्रश्न उठाती हैं कि क्या वास्तव में हिन्दू मंदिरों में चढाया गया धन सुरक्षित है? इतनी घोषणाएं होती हैं कि अमुक मंदिर में इतना धन श्रद्धालुओं ने चढ़ाया, उतना धन चढ़ाया, तो उस धन से आखिर उन श्रद्धालुओं के समाज के लिए क्या होता है? क्या यह धन सुरक्षित रूप से कहीं जा पाता है? ऐसे तमाम प्रश्न कई घटनाओं के आलोक में उठते हैं, जिनमें से एक हालिया घटना तमिलनाडु के मंदिरों से है।
एक मंदिर में बोर्ड का अधिकारी जहाँ 30 ग्राम का सिक्का चुराते हुए पकड़ा गया तो वहीं दूसरी घटना में एचआरसीई के कमिश्नर के जूते एक महिला उठा रही थी।
हाल ही में तिरुवेरुम्बर के श्री एरुम्बीस्वरर (Sri Erumbeeswarar) के एग्ज़िक्युटिव ऑफिसर को सोने की गिन्नी अर्थात स्वर्ण मुद्रा चुराते हुए पकड़ लिया गया। जब वह हुंडी की गणना कर रहा था तब उसने यह कुकृत्य किया। वह सरकार द्वारा उन अधिकारियों एवं कर्मचारियों के समूह का हिस्सा था, जो त्रिची में श्री समयपूरम मरिअम्मन मंदिर में हुंडी गिनने के लिए एचआरसीई द्वारा नियुक्त किए गए हैं। आरोप है कि उन्होंने कुछ स्वर्ण मुद्राएं अपनी जेब में रख ली थीं।
द हिन्दू के अनुसार एक अधिकारी यह सब देख रहा था तो उसने यह घटना अन्य लोगों को बता दी। जब वेतरिवल की तलाशी ली गयी तो उनके पास से 30 ग्राम के सोने के सिक्के मिले और फिर उन्होंने इस आधार पर समयपुरम में इस मामले को लेकर शिकायत दर्ज कराई है। हालांकि वेतरिवल अभी तक फरार है। इसी बीच एचआरसीई आयुक्त ने जांच पूरी होने तक उसे सस्पेंड कर दिया है।
मंदिरों के साथ ऐसी एक नहीं बल्कि कई घटनाएं होती हैं। ऐसी एक और घटना हुई जिसमें एचआरसीई कमिश्नर एक महिला से अपनी चप्पलें उठवाते हुए नजर आ रहे हैं। एचआरसीई आयुक्त कुमारगुरुबारन आईएएस ने 16 दिसंबर को चेन्नई के तिरुवल्लिकेनी में श्री पार्थसारथी मंदिर का दौरा किया। मंदिर से निकलते समय एक महिला को चप्पल ले जाने का उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है।
हालांकि इस बारे में भी कई कहानियां प्रचारित हुईं। कुछ का कहना है कि महिला, जो चौकीदार प्रतीत होती है, से कहा गया था कि वह आयुक्त के जूते पूरे दौरे के दौरान पकड़ी रहे, जबकि कुछ का कहना है कि अधिकारी जब अपने जूते खोज रहे थे तो वह महिला कर्मचारी खुद ही जूते ले लाई थी। एक और दावा है कि यह निचले स्तर के अधिकारी थे जिन्होंने महिला को कार्य करने के लिए कहा।
कारण कुछ भी रहा हो, ऐसा नहीं प्रतीत हुआ कि अधिकारी को यह बात बुरी लगी कि एक महिला उनके जूते उठाकर ला रही है! न तो अधिकारी ने जूते ले जाने के लिए महिला को डांटा और न ही उसे ले जाने की कोशिश की। इससे यह समझ में आता है कि यह पहली बार नहीं हुआ होगा कि उनके जूते कोई और लेकर चल रहा हो।
उत्तर भारत में दक्षिण के यह समाचार बहुत ही कम संज्ञान में आ पाते हैं, मगर यह बात सत्य है कि एचआरसीई कर्मचारियों की नियुक्ति में भी कई बार विसंगतियां पाई गयी हैं और इन विसंगतियों के विषय में कई बार सूचित किया गया और मंदिरों के जीर्ण-शीर्ण होने और मंदिर की घटती संपत्ति को इसका कारण बताया गया। एचआरसीई के अधिकारी भोजन खरीदते पाए गए और कुछ मामलों में मंदिर के पैसे से अपने निजी इस्तेमाल के लिए वाहन भी खरीदते पाए गए। मंदिरों के अंदर काम करने वाले एचआरसीई में क्रिप्टो-ईसाईयों के पदों पर कब्जा करने के उदाहरण भी सामने आए हैं। जब हम इन घटनाओं को ध्यान में रखते हैं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होता कि इसका आयुक्त कर्मचारियों के साथ बुरा व्यवहार कर रहा है जबकि एक अन्य अधिकारी मंदिर के पैसे की चोरी कर रहा है।