उमर खालिद की प्रेमिका बनोज्योत्स्ना जब भी मटन या चिकन या फिर कोई मछली की डिश खाती हैं, तो वह एक गहरे अपराधबोध में भर जाती हैं, क्योंकि तिहाड़ जेल में उमर खालिद को केवल शाकाहारी भोजन दिया जाता है। उमर को मांसाहार पसंद है और अपनी आजादी के दिनों में वह जंक फ़ूड खाया करता था। जब 2020 में अगस्त में उसे पूछताछ के लिए बुलाया गया था तो उसे विश्वास था कि उसे हिरासत में ले लिया जाएगा, तो उसने अपनी आजादी के दिनों में “चिकन पास्ता खाया था, सफ़ेद सॉस के साथ!”

ऐसा mid-day ने अपनी एक रिपोर्ट “एंड शी वेट्स फॉर उमर खालिद” में लिखा है। और ऐसा पेश किया गया है जैसे उमर खालिद की आजादी छीन ली गयी है और उसे जबरन ही जेल में रखा हुआ है। यह पूरी रिपोर्ट पाब्लो नेरुदा की पंक्तियों से लेकर कैंसर से पीड़ित फ्रांसीसी रष्ट्रपति फ्रांकोइस मित्तरेंड के अंतिम भोज तक की बात करती है।
इसमें लिखा है कि उमर खालिद अपनी आजादी की सीमित सीमा में मांसाहारी भोजन खाने के बिना भी कुछ ऐसा करता है, जो उसे जिंदा रखती है। और वह है तमिल सीखना!
इस पूरे लेख में उमर खालिद की पीड़ा, उसका संघर्ष दिखाया गया है कि कैसे वह कभी भी अपने साथ होने वाले अन्याय के बारे में नहीं बात करता है और वह अपनी प्रेमिका के साथ केवल गप्पे मारता है, सोशल मीडिया पर ट्रेंड की बात करता है, आदि आदि!
मगर इस रिपोर्ट में वरिष्ठ पत्रकार अजाज अशरफ ने लिखा है कि जेल में उमर ऐसे लोगों का दोस्त बन गया है, जिनके साथ वह बाहर रहते नहीं जुड़ सकता था, जैसे ओलम्पिक मेडलिस्ट सुशील कुमार उमर के जिम वर्क आउट पर ध्यान देता है, उमर गरीब कैदियों के लिए एप्लीकेशन लिखता है आदि आदि!
मगर लेखक इस बात से दुखी है कि जब उमर के खिलाफ एक समाचारपत्र ने प्रकाशित किया कि “देश को झुकाने के लिए दंगे किए-उमर” तो उमर से उसके साथ के कैदियों ने यह प्रश्न किए कि “उमर क्या तुमने दिल्ली दंगे शुरू किये?” उमर हाल ही में हिजाब पर आए फैसले से भी दुखी था क्योंकि यह कर्नाटक की मुस्लिम औरतों के साथ अन्याय है!
और फिर भी बनोज्योत्स्ना सबसे दुखी लाइन लिखने से इंकार कर देती है!
देश को दंगों की आग में झोंकने वाले उमर खालिद पर इतना प्यार क्यों?
क्या उमर खालिद को किसी आन्दोलन में किसी गरीब या किसी सताए हुए व्यक्ति की ओर से सरकार से लड़ने के लिए गिरफ्तार नहीं किया गया है, बल्कि उसे इसलिए गिरफ्तार किया गया है कि उसने दिल्ली को दंगों की आग में झोंक दिया था। आखिर दिल्ली को दंगों में आग में झोंकने वाले जहरीले इंसान का इतना महिमामंडन कैसे कोई कर सकता है?
उमर खालिद को किसी दुराग्रह के आधार पर नहीं बल्कि आरोपी गुलफिशा के दिए गए बयानों के आधार पर गिरफ्तार किया गया है। उसने साफ कहा है कि उमर खालिद पैसों से मदद करता था और भीड़ को भड़काऊ भाषण देता था, जिससे लोग धरने में जुड़े रहते थे!
मीडिया के अनुसार आरोपी महिला ने उमर खालिद ने यह भी कहा था कि उसके पीएफआई और जेसीसी से अस्छे रिश्ते हैं। उसने कहा था कि
““हम सीक्रेट जगह पर मीटिंग करते थे जिसमे प्रोफेसर अपूर्वानंद, उमर खालिद और अन्य सदस्य शामिल होते थे। उमर खालिद ने कहा था कि उसके PFI और JCC से अच्छे सम्बंध है। पैसों की कमी नहीं है। हम इनकी मदद से मोदी सरकार को उखाड़ फेंकेगे। प्रोफेसर अपूर्वानंद को उमर खालिद अब्बा सामान मानता है।”
इस मामले की सुनवाई के दौरान पता चला था कि गुल को उमर खालिद ने कहा था कि सरकार मुसलमानों के खिलाफ है, भाषण से काम नहीं चलेगा, खून बहाना पड़ेगा!
उसी सुनवाई में डीपीएसजी ग्रुप के व्हाट्सएप चैट भी पेश किए गए थे, जिसमें उमर खालिद और कई और लोग सदस्य थे, जिसमें यह भी मेसेज था कि “आग लगवाने की पूरी तैयारी है!”
मगर दिल्ली को दंगों में सुनियोजित रूप से धकेलने वालों को आजादी के दीवाने जैसा क्यों प्रस्तुत किया जा रहा है?
मीडिया कभी घाटी में दुर्दांत आतंकी बुरहान वानी को एक बूढ़े अध्यापक या प्रिंसिपल का बेटा बनाकर उसके पक्ष में सहानुभूति की लहर पैदा करता है, तो कभी हिन्दू लड़कियों को जानबूझकर अपने जाल में फंसाने वाले मुस्लिम लड़कों को पीड़ित बनाकर पेश करता है और अब दिल्ली को दंगों की आग में जलाने वाले उमर खालिद को ऐसे इंसान के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, जिसकी रूचि पढने में है, जिसके “मांसाहार” की आजादी का हनन हो रहा है, जिसकी अपनी गर्लफ्रेंड के साथ रहने की आजादी का हनन हो रहा है और इन सारी आजादियों के हनन के बावजूद भी वह आगे बढ़ रहा है, वह नई किताबें पढ़ रहा है और अपनी “मांसाहार” की आजादी के हनन का विरोध भी नहीं कर रहा है!
परन्तु जो लोग मारे गए, उनके जीवित रहने के अधिकार की बात कौन करेगा?
जबकि उसने उसके सम्बन्ध पीएफआई से हैं, उसे यह छिपा कर ले जाते हैं, और इस सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए दिल्ली को दंगों में जिस प्रकार जलाया उसका उल्लेख नहीं हैं एवं न ही इस बात का उल्लेख है कि कैसे कुछ लोगों ने सरकार उखाड़ने के लिए निर्दोष लोगों की जान ले ली! न जाने कितने अभी तक जेल में हैं!
पर नैरेटिव क्या बन रहा है कि एक प्रेमी प्रकार के इंसान को तिहाड़ में “मांसाहार” की आजादी नहीं है और इस कारण उसकी प्रेमिका भी बिना अपराधबोध के मांस नहीं खा पाती है! यदि प्रेम है तो प्रेम में तो जीवन तक बलिदान कर दिए जाते हैं, उमर की प्रेमिका जब तक उमर “तिहाड़” से बाहर नहीं आता, तब तक “मांसाहार” छोड़ भी सकती हैं!
खैर, वह उमर और उनका निजी जीवन है, उससे तब तक किसी को कोई मतलब नहीं था, जब तक दिल्ली दंगों के दाग धोने के लिए अपने इस कथित प्यार और “मांसाहार” की आजादी को उन्होंने ढाल नहीं बनाया था, अब लोग प्रश्न तो करेंगे ही कि क्या उमर की मांसाहार की आजादी अधिक महत्वपूर्ण है या फिर जो लोग इन दंगों में मारे गए उनके जीवन का अधिकार?

क्या न्यायालय या आम जनता के लिए सरकार गिराने की मंशा के लिए लोगों का इस्तेमाल कर उन्हें दंगों की आग में धकेलने वाले उमर खालिद की मांसाहार की आजादी महत्वपूर्ण है या फिर दिलाबर नेगी का जीवित रहने का अधिकार?

प्रश्न तो मीडिया से है ही कि एक खलनायक को नायक क्यों बनाया जा रहा है? क्यों सहानुभूति उत्पन्न की जा रही है?