ऐसा माना जाता है कि इस्लामिक मुल्कों में दूसरे धर्मों का पालन करने और उनके त्यौहार मनाने पर कई तरह के प्रतिबन्ध होते हैं। चलिए वह तो इस्लामिक मुल्क हैं, वहां हिन्दुओं और अन्य धर्म के लोगो को काफिर समझा जाता है, इसलिए इस प्रकार का व्यवहार समझ आता है। सोचिये यह कितनी बड़ी विडंबना है कि हिन्दू बहुल और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र यानी भारत में भी हिन्दुओं को अपने त्योहारों को मनाने के लिए प्रशासन के आगे गिड़गिड़ाना पड़ता है, चिरौरी करनी पड़ती है। उसके पश्चात भी हिन्दुओं को अनुमति नहीं मिलती, और वह मन मसोस कर रह जाते हैं।
देशभर में आज गणेश चतुर्थी मनाई जा रही है, यह हिन्दुओं के सबसे बड़े त्योहारों में माना जाता है। लेकिन अब भारत में हिन्दुओं को अपने त्यौहार मनाने के लिए भी न्यायालय के आगे गिड़गिड़ाना पड़ रहा है। कर्नाटक के बेंगलुरू स्थित ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी मनाने से जुड़े मसले पर उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार (30 अगस्त, 2022) को साफ कर दिया कि वहां यथास्थिति बनी रहेगी। इसका अर्थ है कि हिन्दुओ को इस मैदान में गणेश महोत्सव मनाने की आज्ञा नहीं मिली है। उच्चतम न्यायालय ने इस विषय पर सभी पक्षों को आगे की कार्यवाही के लिए कर्नाटक उच्च न्यायालय में जाने का निर्देश दिया।
उच्चतम न्यायालय के इस आदेश को और सरल तरीके समझें तो वहां पर न तो गणेश भगवान् को मूर्ती रखी जायेगी ना ही श्रद्धालुओं को पूजा करने का अवसर मिल पायेगा। इससे पहले केस में मंगलवार को एक नई बेंच बनी थी, जिसमें जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस एएस ओका और जस्टिस एमएम सुंद्रेश रहे।
इस विषय पर यहाँ जानना महत्वपूर्ण है कि स्थानीय प्रशासन ने बेंगलुरु के चामराजपेट के ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी मनाने की अनुमति दे दी थी, लेकिन कर्नाटक वक्फ बोर्ड ने इस अनुमति के विरुद्ध कर्नाटक उच्च न्यायालय कोर्ट में वाद दायर किया। उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने चामराजपेट ईदगाह खेल मैदान विवाद में एकल न्यायाधीश के एक अंतरिम आदेश में शुक्रवार को संशोधन करते हुए कहा था कि राज्य सरकार वहां 31 अगस्त से सीमित अवधि के लिए धार्मिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों की अनुमति दे सकती है।
उच्च न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश में कहा गया है कि यहां की दो एकड़ जमीन का इस्तेमाल सिर्फ खेल के मैदान के तौर पर किया जाना चाहिए और मामले का निपटारा होने तक मुस्लिम समुदाय सिर्फ बकरीद एवं रमजान के दौरान इसका इस्तेमाल नमाज के लिए कर सकता है। ईदगाह मैदान को लेकर दशकों पुराना विवाद इस साल की शुरुआत में उस वक्त एक बार फिर सामने आया था, जब कुछ हिंदू संगठनों ने वहां कार्यक्रम आयोजित करने के लिए बीबीएमपी की अनुमति मांगी थी।
इसके पश्चात वक्फ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय की सहायता लेने का निश्चय किया। उच्चतम न्यायालय में कर्नाटक वक्फ बोर्ड की ओर से समाजवादी पार्टी के नेता और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने भारत के मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित के सामने तत्काल सुनवाई की मांग की थी। सिब्बल ने कहा कि इस मांग से क्षेत्र में अनावश्यक धार्मिक तनाव पैदा किया जा रहा है। कपिल सिब्बल की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को मामले की सुनवाई के लिए तैयार हो गया।
उच्चतम न्यायालय में कपिल सिब्बल की हिन्दू विरोधी दलीलें
उच्चतम न्यायालय में कपिल सिब्बल और दुष्यंत दवे ने ईदगाह पर स्वामित्व को लेकर अपनी दलीलें रखी थीं। सिब्बल ने उच्चतम न्यायालय के एक पुराने फैसले को उद्धृत करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय की एकल जज बेंच ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था। लेकिन खंडपीठ ने गणेश पूजा के लिए अनुमति दे दी है, यह तो पिछले 200 साल से वक़्फ़ की सम्पत्ति है यहां किसी और धर्म के महोत्सव की अनुमति नहीं दी जा सकती।
कपिल सिब्बल ने कहा था कि 1831 से यह मैदान मुस्लिमो की संपत्ति है, यह वक्फ के कब्जे में है। आज 2022 में अचानक वहां हिन्दुओं के धार्मिक आयोजन की अनुमति दे दी गई, क्योंकि अगले वर्ष चुनाव है। सिब्बल ने दो टूक कहा कि यह वक्फ की संपत्ति है, वह किसी को दें यह उनकी मर्जी है। न्यायालय किसी को भी इसका उपयोग करने का आदेश कैसे कैसे दे सकता है? उच्चतम न्यायालय के निर्णय के अनुसार जब
मुस्लिम समुदाय इस मैदान में अपनी मजहबी गतिविधियां कर सकता है, ऐसे में दूसरे को कैसे अनुमति दी जा सकती है?
वहीं सरकार की तरफ से कहा गया है कि यह विवादित संपत्ति है, और इस पर किसी भी तरह की गतिविधि की अनुमति देने का अधिकार सरकार को है।
वक्फ का दोमुंहा जिहादी व्यवहार
इस पूरे मामले में वक्फ बोर्ड की बड़ी ही संदिग्ध भूमिका है। 2009 में के. रहमान खान के नेतृत्व में बनी संसदीय समिति ने यह बताया था कि वक्फ बोर्ड के पास 4 लाख से ज्यादा सम्पत्तियाँ हैं, वहीं उनके पास 6 लाख एकड़ से ज्यादा भूमि का स्वामित्व भी है। इतना सब कुछ होते हुए भी पूरे देश में मुस्लिम समुदाय सार्वजनिक स्थलों और सड़कों पर नमाज़ पढ़ता है।
आज वही वक्फ बोर्ड हिन्दुओं को उनके त्यौहार मनाने से रोकने के लिए कानूनी दांव पेच चल रहा है। वह भी एक विवादित भूमि पर, जिसके स्वामित्व पर अभी कानूनी प्रक्रिया चल रही है। यह एक जिहादी व्यवहार है, और इसके द्वारा कट्टर इस्लामिक तत्व काफिरों को दिखाना चाहते हैं कि मानो देश में शासन किसी का भी हो, लेकिन चलती उन्ही की है।
यह वक्फ की दादागीरी है, देखना होगा कि यह दादागीरी कब तक चलेगी?