“क्यों सुलग रहा है मणिपुर, प्रदेश सरकार की सख्ती से पूर्वोत्तर के आतंकी संगठनों में अशांति” जागरण, 2 जून 2023
“मणिपुर में 53 प्रतिशत जनसंख्या वाला मैती हिंदू समुदाय अपने प्रदेश के मात्र आठ प्रतिशत भूभाग में रहने को अभिशप्त है। जबकि कुकी या नगा समुदाय के इंफाल घाटी में बसने पर कोई कानूनी बंदिश नहीं। यह तो भारत के भाग्य-विधाता ही बता सकते हैं कि ऐसा क्यों किया गया?
भारत में केवल कश्मीरी हिंदू ही इकलौते नहीं, जिन्हें अपनी धार्मिक पहचान के चलते अपना सर्वस्व छोड़कर अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रहने को विवश होना पड़ा। पिछली सदी के अंतिम दशक में ऐसे ही एक पलायन की त्रासदी ईसाई बाहुल्य मिजोरम के रियांग हिंदुओं को भी झेलनी पड़ी। रियांग हिंदुओं पर 1997 में टूटी इस त्रासदी को राष्ट्रीय विमर्श में शायद ही कोई जगह मिली हो, क्योंकि उन दिनों पूर्वोत्तर को दिल्ली में दूरस्थ अंचल की तरह देखा जाता था कि वहां कुछ न कुछ उथल-पुथल चलती ही रहती है, जिसका प्रबंधन स्थानीय दलों द्वारा जोड़तोड़ के माध्यम से किया जा सकता है।
पूर्वोत्तर को अनदेखा करने का यह सिलसिला मोदी सरकार के दौर में टूटा। मोदी सरकार ने 2017 में एक राजनीतिक समझौते के अंतर्गत मिजोरम में हिंदुओं के पुनर्वास का प्रविधान किया। जो कुछ मिजोरम में रियांग हिंदुओं के साथ हुआ, कुछ वैसा ही इस समय मणिपुर में मैती समुदाय के साथ हो रहा है। मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा मैती समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग स्वीकार करने के बाद मैती समुदाय निशाने पर आ गया और बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क गई। सेना की तैनाती के बाद भी करीब 35,000 से अधिक लोग विस्थापित हो गए…”
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