नब्बे के दशक का ध्यान आते ही कश्मीरी हिन्दू सिहर उठते हैं। वह पीड़ा उनकी आँखों से आज भी उसी प्रकार बहने लगती है जैसे अभी हाल ही की बात हो जब वह सारे सामान वहीं छोड़कर निकल लिए थे। निकल लिए थे ऐसी यात्रा पर, जिसका ओर छोर नहीं पता था, और क्यों जाना पड़ रहा था वह भी उन्हें नहीं ज्ञात था। संभवतया वह ऐसा पलायन था, जिसका मानवता के इतिहास में कोई दूसरा उदाहरण नहीं प्राप्त होता है। उनके कानों में अभी तक वह नारे गूँज रहे थे कि “कश्मीरी पंडित घाटी से चले जाएँ, मगर अपनी औरतों को यहीं छोड़ जाएं।”
उस रात इतने कश्मीरी पंडितों की रक्षा का भार जिनपर था, वह थे जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल श्री जगमोहन, जिनका सोमवार को निधन हो गया। उनके निधन के साथ ही कश्मीरी पंडितों में शोक की लहर दौड़ गयी क्योंकि लगबग सभी का यही कहना था कि वह आज यदि जीवित हैं तो जगमोहन जी के कारण ही। जब कश्मीर में इस्लामी आतंकवादियों के हाथों कश्मीरी पंडित मारे जा रहे थे और धर्म के आधार पर हत्याएं की जा रही थीं, तो उस समय उनके द्वारा उठाए गए क़दमों के कारण ही कश्मीरी पंडितों के प्राणों की रक्षा हुई थी, नहीं तो घाटी से उनका नामोनिशान मिटा दिया जाता।
उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित कई लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि जगमोहन जी का जाना पूरे देश के लिए क्षति है। वह एक कुशल प्रशासक एवं विख्यात विद्वान थे। उन्होंने हमेशा ही भारत की भलाई के लिए कार्य किया। उनके मंत्रीपद के कार्यकाल में कई नीतियों का निर्माण हुआ। उन्होंने श्री जगमोहन जी के परिवार के प्रति अपनी संवेदना भी व्यक्त की।
Jagmohan Ji’s demise is a monumental loss for our nation. He was an exemplary administrator and a renowned scholar. He always worked towards the betterment of India. His ministerial tenure was marked by innovative policy making. Condolences to his family and admirers. Om Shanti.
— Narendra Modi (@narendramodi) May 4, 2021
ट्विटर पर कई कश्मीरी पंडितों ने भी अपना शोक व्यक्त किया और कहा कि जब भी कश्मीर का इतिहास लिखा जाएगा तो कश्मीरी पंडितों के रक्षक के रूप में एक ही व्यक्ति का नाम आएगा और वह हैं, श्री जगमोहन।
He was bhagwaan ka Avtaar for us KPs. May his soul rest in peace. Om shanti 🙏
— Twitt3r’s Moira Rose!! (@Chhokkwangun) May 3, 2021
कई लोगों ने उन्हें अच्छा प्रशासक बताया एवं माता वैष्णो देवी मंदिर के विकास का श्रेय दिया।
तो वहीं कुछ यूजर्स ऐसे भी थे जिन्होनें जगमोहन के विषय में काफी कुछ नकारात्मक लिखा। उनके विषय में लिखा गया कि कश्मीर के विवाद की जड़ में वही हैं। आदि आदि। आखिर ऐसा क्या था जिसके कारण श्री जगमोहन के विषय में कथित लिबरल गैंग इस प्रकार का प्रलाप करता है। दरअसल जब इस्लामी आतंकवादियों की धमकियों के कारण कश्मीरी पंडित घाटी से जाने लगे थे और जिस दिन उन्हें घाटी छोड़ने का अल्टीमेटम मिला था, तो उस दिन से लेकर उनके शरणार्थी शिविर में रहने तक एवं पूरे भारत में कश्मीरी पंडितों के जाने के कारण उनपर हुए शोषण की कहानियों का विस्तार हो रहा था। लोगों तक बार बार सत्य पहुँच रहा था। इस सत्य की आंच से घबराकर लिबरल गैंग ने एक नई थ्योरी चलाई जिसे जगमोहन थ्योरी कहा जाता है। और बार बार यह कहा गया कि ऐसा कुछ नहीं हुआ था, जगमोहन ने भाजपा के इशारे पर यह कार्य किया।
Jagmohan, former governor of Jammu & Kashmir who lorded over a number of civilian massacares finally dies.
— Macquorn Rankine (@knowlegseeker) May 3, 2021
स्वयं पर लगे हुए आरोपों के विषय में वर्ष 2011 में जगमोहन ने इन्डियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा था और उसमें उन्होंने प्रश्न उठाया कि कोई भी कैसे यह सोच भी सकता है कि कश्मीरी पंडितों जैसा कोई भी बौद्धिक समुदाय क्या एक राज्यपाल के कहने पर अपना सारा घरबार, व्यापार, काम धंधा, बच्चों की स्कूलिंग और उनका भविष्य छोड़ कर अपनी जगह से चला जाएगा?
उन्होंने यह लेख इंडियन एक्सप्रेस द्वारा कश्मीरी पंडितों के पलायन के विषय में एक राजनीतिक मुस्तफा कमाल द्वारा स्वयं पर लगे हुए आरोपों के उत्तर में लिखा था। उन्होंने लिखा था कि घाटी से काफिरों एवं केंद्र के कर्मचारियों को बाहर फेंकने के लिए कश्मीरी पंडितों को विशेष रूप से निशाना बनाया गया। उस समुदाय के मुख्य मुख्य लोगों को चुन चुन कर मारा जाने लगा। जैसे टिक्का लाल टिप्लू जो की भारतीय जनता पार्टी के नेता थे, उन्हें 14 सितम्बर को मार डाला गया था, ऐसे ही एन के गंजू को 4 नवम्बर और 28 दिसंबर को पत्रकार पी एन भट्ट की हत्या कर दी गयी थी।
आतंक से डरे हुए पंडित समुदाय ने 16 जनवरी 1990 को तत्कालीन राज्यपाल को एक मेमोरेंडम भेजा था कि उन्हें नियोजित हमलों से बचाया जाए। जनरल वी के कृष्णा का कहना है कि सरकार के स्थान पर यह आतंकवादी थे जो उस समय अनंतनाग, सोपोर, बारामूला, त्राल, नुर्रम, पुलवामा, इश्बर, शोपियां आदि स्थानों पर अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों की योजना बना रहे थे। अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं की हत्या करनें वाले एक भी व्यक्ति की पहचान पुलिस ने नहीं की और न ही उन्हें पकड़ा था।
फिर वह लिखते हैं कि “जब से मैंने कार्यभार सम्हाला, तब से मैंने वह सब किया जो मैं इस पलायन को रोकने के लिए कर सकता था।”
उनका कहना था कि चूंकि घाटी में कश्मीरी पंडितों की निर्मम ह्त्या का दौर जारी था, और जिन्हें मारा जा रहा था वह साधारण लोग न होकर इंजीनियर बी के गंजू, कवि सर्वानंद प्रेमी और उनके छोटे बेटे वीरेंद्र कॉल, प्रोफेसर के एल गंजू और उनकी पत्नी सहित कई अन्य महत्वपूर्ण व्यक्ति सम्मिलित थे। वह लिखते हैं कि श्रीनगर से प्रकाशित होने वाले अखबार आफताब और अल्सफा में यह नोटिस प्रकाशित किया गया कि कश्मीरी हिन्दू 48 घंटों में घाटी छोड़ दें, और ऐसा न करने पर उन्हें मार दिया जाएगा। और उन्होंने यह भी लिखा कि इन सभी नोटिस की सारी फोटोकॉपी उनकी पुस्तक ‘माई फ्रोजेन टुम्बुलेंस इन कश्मीर’ में दी गयी हैं।
अत: यह स्पष्ट है कि कश्मीरी पंडितों को बाहर खदेड़ने की योजना पाकिस्तान की आईएसआई द्वारा बनाई गयी थी एवं बाद में उस पर मिथ्या एवं भ्रमपूर्ण सूचनाओं का निर्माण किया गया। जिसका उपयोग मुस्तफा कमाल जैसे लोगों ने किया और उन्होंने अपनी ओर से भी गलत सूचनाएं उत्पन्न कीं। जगमोहन ने लिखा था कि वह उसी तरह सत्य का खून कर रहे थे जैसे आतंकवादियों ने लोगों का खून किया था।
और इन सभी गलत सूचनाओं का प्रचार प्रसार अभी तक जारी है। अभी भी यही कहा जाता है कि श्री जगमोहन ने कश्मीरी पंडितों को बाहर निकाला। परन्तु फिर श्री जगमोहन का यह प्रश्न उभर कर आता है कि कश्मीरी पंडितों जैसा कोई भी बौद्धिक समुदाय क्या एक राज्यपाल के कहने पर अपना सारा घरबार, व्यापार, काम धंधा, बच्चों की स्कूलिंग और उनका भविष्य छोड़ कर अपनी जगह से चला जाएगा?
उत्तर है नहीं फिर उन्हीं के शब्दों में कहा जा सकता है कि अब तक सत्य की हत्या हो रही है।
श्री जगमोहन के कारण आज कश्मीरी पंडित अपनी उस संस्कृति की रक्षा कर पा रहे हैं, जिसे मिटाने का प्रयास इस्लामी हज़ारों वर्षो से कर रहे हैं। कश्मीरी पंडितों के शब्दों में “वह एक निष्काम योगी की भांति थे, जिन्हें अपने लिए कुछ नहीं चाहिए था, बस अपना कर्म करना था।”
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