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Friday, June 27, 2025

24 जून 1564, जब वीर रानी दुर्गावती ने अकबर की सेना का सामना करते हुए घोंप ली थी अपने सीने में कटार, तो वामपंथी फेमिनिज्म करता है अकबर से प्यार!

भारत में वामपंथी इतिहासकारों ने मुगलो का ऐसा महिमामंडन किया है कि ऐसा लगता है कि उनका इतिहास ही सबसे महत्वपूर्ण इतिहास है। परन्तु उसमें से वह चुन चुन कर ऐसे लोगों को हटा देते हैं, जिनके कारण हिन्दुओं के भीतर इतिहासबोध या आत्म बोध जागृत होता है। उन सभी चरित्रों की गाथा हटा दी जाती है और महिलाओं का हो तो वह सबसे पहले! उन्होंने हिन्दू महिलाओं की समस्त उपलब्धियों एवं कार्यों को छिपाने का कुकृत्य किया।

कौन थी रानी दुर्गावती

रानी दुर्गावती भारत की एक ऐसी वीरांगना थीं, जिन्होनें अपने पति की मृत्यु के उपरान्त राज्य का ऐसा संचालन किया कि आज तक उनका नाम हिन्दुओं की चेतना में जीवित है। उनका जन्म 5 अक्टूबर 1524 को गोंडवाना राज्य में हुआ था। चूंकि उस दिन दुर्गाष्टमी थी इसलिए उनका नाम दुर्गावती रखा गया था। अकबर की प्रशंसा में लिखी गयी पुस्तक अकबर-द ग्रेट मुग़ल में विसेंट ए स्मिथ ने लिखा है कि अकबर के पास रानी दुर्गावती के राज्य पर आक्रमण करने का कोई भी नैतिक आधार नहीं था। उसने अबुल फजल के हवाले से रानी के विषय में लिखा है कि रानी ने बाज बहादुर को परस्त किया था और उसके पास 20,000 सैनिकों की सेना थी। रानी तीर और बन्दूक चलाने में दक्ष थी और रानी को शिकार का शौक था। ऐसा हो ही नहीं सकता था कि रानी को पता चले कि कोई बड़ा शेर आया है और वह उसे मारने न जाए!

विसेंट ए स्मिथ ने लिखा कि रानी महोबा के चंदेल वंश की पुत्री थीं और उनके भीतर तमाम गुण थे। विसेंट ए स्मिथ ने लिखा है कि गोंडवाना राज्य का संचालन उन दिनों रानी दुर्गावती के हाथों में था और जो पिछले पंद्रह वर्षों से अपने पुत्र के संचालक के रूप में शासन कर रही थी, हालांकि अब वह पुत्र युवा हो गया था, और उसे ही राजा का स्थान प्राप्त हो गया था, फिर भी रानी के ही हाथों में शासन की डोर थी।

विसेंट के अनुसार भी रानी दुर्गावती ने अपने राज्य में अत्यंत कल्याणकारी कार्य कराए थे और उन्होंने अपने राज्य की जनता का दिल जीत लिया था। जनता उनसे प्यार करती थी। उनका आदर करती थी।

वह लिखते हैं कि अकबर ने मात्र अपने साम्राज्य विस्तार के लिए ऐसी महान महिला पर आक्रमण किया, और उसे कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता है। परन्तु फिर भी अकबर ने आक्रमण किया।

वह लिखते हैं कि अकबर को युद्ध आरम्भ करने के विषय में कोई भी संदेह नहीं था। और एक बार जब उसने युद्ध आरम्भ कर दिया तो वह क्रूरतम प्रहार करता था।

प्रश्न यह उठता है कि अंतत: ऐसा क्या कारण था कि जिसके कारण अकबर को रानी दुर्गावती जैसी महान महिला के राज्य पर नियंत्रण करने का लालच उत्पन्न हुआ? तो इसका उत्तर विसेंट स्मिथ हालांकि आर्थिक कारण के रूप में बताते हैं।

रानी ने बाज बहादुर को युद्ध में परास्त किया था

रानी ने बाज बहादुर को परास्त किया था। परन्तु जब बाज बहादुर को अकबर ने परास्त कर दिया तो आसफ खान ने अकबर को गोंडवाना पर अधिकार के लिए उकसाया और अकबर ने अपनी सेना भेज दी! यद्यपि रानी ने अत्यंत वीरता से सामना किया, परन्तु मुगलों की विशाल सेना के सम्मुख एक क्षण ऐसा आया जब उन्हें लगा कि अब वह आगे नहीं लड़ पाएंगी और उनके तीर लगा तो उन्होंने अपने मंत्री से कहा कि वह उनके सीने में कटार घोंप दें!

जब उनके मंत्री ने ऐसा करने से इंकार कर दिया तो उन्होंने स्वयं ही अपने सीने में कटार उतार कर प्राणों का उत्सर्ग कर दिया, परन्तु जीतेजी अकबर के सम्मुख सिर नहीं झुकाया! इस प्रकार 24 जून 1564 को उन्होंने आँखें मूँद लीं!

भारत सरकार ने वर्ष 1988 में उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था।

आज उनके बलिदान दिवस पर कई लोगों ने उन्हें स्मरण किया। twitter पर उनके बलिदान दिवस के अवसर पर ट्वीट भी किये गए। भारतीय जनता पार्टी की नेता वसुंधरा राजे ने ट्वीट करते हुए लिखा कि

साहस, शौर्य एवं समर्पण की प्रतीक, प्रसिद्ध वीरांगना रानी दुर्गावती की पुण्यतिथि पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि। मातृभूमि की खातिर अपने प्राण आहुत कर देने वाला आपका पराक्रम अनंतकाल तक बेटियों के लिए साहस एवं शक्ति का प्रेरणास्रोत रहेगा।

मोहन नारायण नामक यूजर ने लिखा कि

मां दुर्गावती ने तीनों मुस्लिम राज्यों को बार-बार युद्ध में परास्त किया।पराजित मुस्लिम राज्य इतने भयभीत हुए कि उन्होंने गोंडवाने की ओर झांकना भी बंद कर दिया।

महारानी ने 16 वर्ष तक राज संभाला। इस दौरान उन्होंने अनेक मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी तथा धर्मशालाएं बनवाईं।

यह बात बार-बार उभर कर आती है कि अंतत: क्यों ऐसा होता है कि हिन्दू स्त्रियों की वीरता, शौर्य आदि की कहानियों को या तो बताया नहीं गया या फिर उन्हें इस प्रकार जातिगत राजनीति के चलते विकृत कर दिया गया कि सब कुछ रह गया, हिंदुत्व गायब हो गया।

उनका शत्रु ही बदल दिया गया, अकबर जो शत्रु था, वह वामपंथ और इस्लामिस्ट इतिहासकारों ने महान बता दिया और जिन्होनें रानी दुर्गावती के साथ युद्ध में प्राण दिए, उन्हें ही दोषी और शत्रु ठहरने का कुकृत्य किया जा रहा है!

परन्तु इतिहास में तथ्य ही आगे रह जाते हैं, एजेंडा मिट जाता है, जब चेतना जागृत होती है तो वह चेतना स्मृतियों से उकेर कर चित्र बनाती है और फिर हिन्दू इतिहास का वृहद एवं विशाल वृत्तांत उभर कर आता है, जिसके सम्मुख एजेंडा शून्य हो जाता है!

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