इन दिनों सहज रूप से यह बात बहुत चल रही है और कई बार ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं न कहीं आजादी गैंग के झांसे में आकर कुछ राष्ट्रवादी लोग ही यह बात करते हुए दिखाई देते हैं कि प्यार की आजादी होनी चाहिए या फिर कहा जाए कि वह ओटीटी एवं उर्दूवुड से इस सीमा तक प्रभावित हो गए हैं कि वह समझ ही नहीं पा रहे हैं कि दरअसल इस कथित प्यार की आजादी का दुष्परिणाम क्या हो सकता है? समय से पहले एवं सामाजिक व्यवस्था से परे इस कथित आजादी को पूरा करने का दुष्परिणाम क्या होगा?
जो लोग यह तर्क देते हैं कि यह प्राकृतिक इच्छा है, तो क्या आज तक यह सुना है कि बॉय-फ्रेंड या गर्ल फ्रेंड न बनाने से या फिर इस भूख को पूरा न करने से किसी की मृत्यु हुई हो? क्योंकि इसका सम्बन्ध जितना मानसिक स्वास्थ्य से है उतना ही शारीरिक स्वास्थ्य से भी है एवं उतना ही राज्य के न्यायिक स्वास्थ्य से है क्योंकि यह विकृति अपराध की ओर ले जाती है।
उत्तर प्रदेश से ऐसी ही दिल दहला देने वाली घटना आ रही है, जहाँ पर एक 18 वर्ष की युवती को उसके बॉयफ्रेंड अर्थात आशिक के साथ हिरासत में ले लिया गया है और उसका अपराध यह है कि उसने अपने छोटे भाई की हत्या अपने आशिक के साथ मिलकर कर दी।
यह कैसा प्रेम है, यह कैसा प्यार है जो इतना सिर चढ़ गया कि बचपन में जिसे अपनी गोद में लेकर प्यार किया होगा, उसका ही गला रेत दिया? यह कैसा इश्क है जिसने इस सीमा तक नियंत्रण में ले लिया कि लड़की शरीर से आगे कुछ सोच ही न सकी?
जो लोग प्राकृतिक इच्छा की बात करते हैं तो क्या वह लोग यह चाहते हैं कि लड़के और लड़कियां खुले आम इस तरह की इच्छा किसी के भी शरीर से बुझाते रहें? यह कैसा कुतर्क है? क्या जैसे भोजन की व्यवस्था मातापिता करते हैं, आशिक और माशूकों की व्यवस्था भी मातापिता करें? यह कैसा कुतर्क है, कि प्राकृतिक इच्छा है, इसे रोक नहीं सकते! और जब मातापिता विवाह की बात करते हैं तो लड़की की देह के कमजोर होने की बात की जाती है!
बारह वर्ष का बच्चा, जिसने अपनी बहन को उसके प्रेमी के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देखा, जिसे शायद अभी तक पता भी नहीं होगा कि यह सब क्या हो रहा है, उसकी इस डर से रायबरेली में उसकी बहन और उसके आशिक ने हत्या कर दी कि कहीं वह सच्चाई किसी और को न बता दे?
उसका शरीर जिले के भदोखर इलाके में घर के पास मिला था।
पुलिस के अनुसार लड़के के मातापिता शादी में गए थे, और स्थानीय नागरिकों ने इस शव के बारे में बताया। जब पुलिस ने उसकी बहन से पूछताछ की तो उसने कोई संतोषजनक उत्तर नहीं दिया। फिर महिला पुलिस ने उससे पूछताछ की तो उसने कहा कि कुछ स्थानीय लोगों ने चोरी की कोशिश की और फिर उसे मार डाला।
मगर जिस युवक पर आरोप लगाया तो पता चला कि वह तो उस दिन लखनऊ में था और फिर पुलिस ने और कड़ाई से पूछताछ की।
पुलिस के अनुसार उन्होंने दो नंबरों पर ध्यान दिया और दोनों ही किसी और युवक के थे, जो लड़की से मिलने आया करता था। फिर उन्होंने कड़ाई से पूछताछ की तो यह पता चला कि दरअसल हत्या उन्हीं दोनों ने की है।
ओटीटी या फिर वामपंथी साहित्य या फिर कथित शरीर विज्ञान शरीर की प्राकृतिक इच्छा के नाम पर ऐसा वर्ग तैयार कर रहा है, जिसके लिए विवेकहीन शारीरिक सम्बन्ध ही सब कुछ है। शारीरिक संबंधों का स्थापित होना ही कथित रूप से आधुनिक बनने की पहली कड़ी हो गया है और नैतिकता की बात करना पिछड़ापन हो गया है।
यह कहा जाता है कि परिवार संस्कार दे, और जब परिवार संस्कार देने का प्रयास करता है या धर्म की बातें करता है तो शरीर की प्राकृतिक इच्छा का रोना रोया जाता है। ओटीटी तो यह सब कर ही रहा था, परन्तु सोशल मीडिया पर भी यही विमर्श होना एवं उसकी स्वीकृति होना कहीं न कहीं उस पतन की झलक है, जिसका सामना समाज कर रहा है।
ऐसे अवैध सम्बन्धों को लेकर वही लोग शोर मचाते हैं कि शरीर की प्राकृतिक इच्छा की पूर्ती करनी चाहिए जो विवाह के लिए उम्र इस आधार पर बढ़ाए जाने की हठ करते हैं कि लड़की का शरीर तैयार नहीं है! क्या लड़की का शरीर प्राकृतिक रूप से सम्बन्ध बनाने के तैयार है और विवाह के लिए नहीं? यह कैसा कुतर्क है?
ओटीटी और उर्दूवुड का यह वैचारिक प्रदूषण कहाँ तक पहुँच गया है और कितना पतन कर चुका है, इसका अनुमान सहज लगाना संभव नहीं है!