भारत संघीय प्रणाली वाला देश है। तमाम अधिकार क्षेत्र या केंद्र और राज्यों के बीच ठीक तरह से विभाजित नहीं या फिर उन्हें एक बार फिर से परिभाषित करने की जरूरत है। स्वास्थ्य एक ऐसा विषय है जिसे पूरी तरह केंद्र के अंदर आना चाहिए। दुर्भाग्यवश ऐसा अब तक नहीं हो सका। स्वास्थ्य को आंतरिक सुरक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दे की तरह देखे जाने की जरूरत है।
मार्च 2020 में भारत देश मे कोविड का जबरदस्त प्रकोप शुरू हुआ। केंद्र सरकार ने आपात स्थिति में राज्यों को आने वाले खतरे से आगाह किया। कुछ ने सहयोग किया कुछ ने असहयोग किया। हालात बिगडने का अंदाजा प्रधानमंत्री को पहले से था इसीलिए टीवी पर आकर उन्होंने जनता से बात की। सेवा कर्म में लगे अधिकारी ,कमर्चारियों और डॉक्टरों को धन्यवाद भी कहा।
तकनीक के सहारे केंद्र सरकार ने आरोग्य सेतु एप से संदिग्ध मरीजों की ट्रेसिंग शूरु कर दी। यहाँ तक ठीक था लेकिन कुछेक राज्यो ने जिस तरह से असहयोग करना शुरू किया उससे हालात बद से बदतर हुए जो आज तक नहीं सम्भल पाए। जिस तरह से प्रवासी कामगारों का पलायन हुआ वह वीभत्स रहा। हमारी पीढ़ी ने विभाजन सरीखे दर्द को झेला । जो मरीज एप के सहारे पकड़े जाने थे वह पलायन के साथ हर गांव में पहुँचे। आगे हालात और बदतर होते लेकिन लोगों ने दिनचर्या सुधार और आयुर्वेदिक इलाजों से पहली लहर को हरा दिया।
अब बात आती है दूसरी लहर की , जब केंद्र सरकार ने 22 मार्च 2020 को ही 31 जून 2021 तक देश मे महामारी एक्ट लगा दिया तो तबतक ज्यादा से ज्यादा बंदिशें बनाई जानी थीं। लेकिन हालात वही केंद्र और राज्य के बीच के तालमेल में फंसे और कोरोना को सिगरेट की डिब्बी पर छपी चेतावनी की तरह नजरअंदाज किया गया।
दूसरी लहर पहली लहर से ज्यादा खतरनाक आई । पहली लहर में तो बुजुर्ग और बीमार लोगों की मौतें ज्यादा हुईं। दूसरी लहर में सबसे ज्यादा मौतें नौजवानों की हुई। आज हम मेडिकल कॉलेज और मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल की बात तो करते हैं। यह देश के गिने चुने शहरों में उपलब्ध है और हर आदमी की पहुँच से बाहर भी। सरकार द्वारा बहुत पहले से गांवो और कस्बों में सीएचसी और पीएचसी मौजूद हैं । यहाँ डॉक्टर भी पोस्ट होते हैं जो कि कभी आते नहीं और पास के शहर में अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे होते हैं। एक प्रतिशत लोग अपवाद हो सकते हैं ।
बीमारी आई और हर तरफ चीख पुकार मची । बड़े बड़े रसूखदार हताश नजर आए । तमाम सांसद विधायक अपना फोन बंद कर लिए। सवाल यहां फिर वही आता है कि केंद्र ने जब तक समय सीमा तय की उसके पहले किसने सब कुछ नजरअंदाज करना शुरू किया। नौकरशाही लालफीताशाही से काम करती है। उसे हर चीज़ का जबाब और व्याख्यान चाहिए इसके बिना फाइल आगे नहीं बढ़ेगी। राज्यों में भी तमाम विभागों में तालमेल की कमी रही जिससे हालात बिगड़ते गए।
सोच कर देखिये कि सैकड़ों करोड़ की लागत से बने मेडिकल कालेज और सुपर स्पेशलियटी हॉस्पिटल में आक्सीजन के प्लांट तक नहीं। दरअसल हॉस्पिटल में गैस सप्लाई करना एक अलग स्कैम है। आक्सीजन का सिलिंडर आपके एलपीजी सिलिंडर की तरह तौल कर नहीं आता। वह प्रेशर देख लिया जाता अब 20 लीटर के सिलेंडर में कितनी गैस है इसे कौन जाने और फिर शुरू होता है बंदर बांट का खेल।
दूसरी समस्या आई आक्सीजन के सिलेंडरों के वितरण और रिफलिंग की। एलपीजी कंपनी के पास जितने कनेक्शन होते हैं उसके 50 % सिलेंडर रिफलिंग बौर वितरण में होते हैं। ऑक्सीजन में ऐसा कोई तंत्र काम नहीं कर रहा था इस कारण आपाधापी हुई।
हॉस्पिटल में भर्ती करने में भी मनरेगा जैसे बड़े खेल हुए । हमेशा बेड फुल दिखते थे। लेकिन एक ट्वीट पर आपको कोई रसूखदार मदद करने आ जाता ।देर सवेर बेड मिल जाता । फिर अगले ही दिन स्टेरॉयड की भागदौड़ शुरू हो जाती। यह भी कोई देवदूत आपको ऊँचें भाव मे ट्वीटर से ही लाकर देता। जबकि जिन स्टेरॉयड को डॉक्टर धड़ल्ले से लिख रहे थे वह अपने क्लिनिक ट्रायल में ही फेल था। इसने भी तमाम घर उजाड़े। कुछ ऐसा ही हाल प्लाजा थेरपी का भी रहा जिसे बाद में बन्द कर दिया गया।
इस पूरी आपदा में सोशल मीडिया ने अफवाह तंत्र और कालाबाजारी का काम बखूबी किया। किसी ने अपने लिए व्यवस्था मांग ट्वीट किया उसे अगले मिनट 200 लोगों ने अपने अकाउंट से ट्वीट कर दिया। अचानक से संकट बना दिया गया। आंकड़ों में किसी शहर में उस समय 200 बेड की जरूरत हुई जबकि वास्तविकता में एक की ही जरूरत थी। ट्विटर पर जिसने मदद मांगी उसकी मदद भी हो गई उसके बाद भी कई दिनों तक वह ट्वीट दौड़ता रहा। तीमारदारों को फोन उठाने में भी कष्ट होने लगा।
कुछ लोगों ने इसमें सुविधानुसार पीआर भी किया । मसलन कुछेक अधिकारी सिर्फ़ ब्लू टिक वाले या बड़े ट्विटर अकाउंट की मदद की। कुछ पत्रकारों ने अपने पत्रकार साथियों की मदद की। कुछ राजनीतिक कार्यकरताओं ने अपने विचारधारा के लोगों की मदद की।
दूसरी लहर यह बता कर गई कि हम कितनी सड़ी गली व्यस्था में हम रह रहे हैं। हालांकि इसको सुधारने का बहुत काम हो रहा । ऑक्सीजन प्लान्ट लग रहे हैं। मेडिकल स्टाफ की भर्ती हो रही। हॉस्पिटल में लगातार उच्चीकरण का काम चल रहा है । उत्तर प्रदेश सरकार ने सभी जनप्रतिनिधियों से एक एल सीएचसी गोद लेने को कहा। स्वयं मुख्यमंत्री ने 5 सीएचसी गोद ली। टेस्टिंग की क्षमता लगातार बढ़ी। लेकिन फिर वही बात आती है कि यदि तीसरी लहर भी दूसरी लहर जैसी निर्दयी हुई तो फिर केंद्र को कमान अपने हाथ मे लेनी पड़ेगी। जिसके राजनीतिक एवम सामाजिक परिणाम दूरगामी होंगे।
राज्य केंद्र के निर्देश मानने के लिये बाध्य हैं। इसलिए राज्यों को चाहिए कि दोषारोपण छोड़ सामंजस्य बनाकर काम करें। नौकरशाही को चाहिए कि वह सेवा भाव से काम करे और तीसरी लहर को आने से रोके न कि शुतुरमुर्ग बने। राजनीति का एक नाम दूरदर्शिता भी है जो कि यह बता रही है कि केंद्र तीसरी लहर आने पर संवैधानिक कदम उठा सकता है।
–सत्य व्रत त्रिपाठी
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