बार बार हम ट्रांसलेशन की राजनीति पर बात करते हैं, और यह जानने की कोशिश करते हैं कि कैसे ट्रांसलेशन या भाषांतरण ने हिन्दू ग्रंथों को अपनी राजनीति का शिकार बनाया है। परन्तु अभी जो सत्य एक डॉक्युमेंट्री में दिखाया गया है कि कैसे हिन्दू सभ्यता के साथ जानबूझकर इतना बड़ा छल मात्र भाषांतरण या ट्रांसलेशन के माध्यम से किया गया। कैसे जानबूझकर उस चिन्ह को स्वास्तिक बताकर ट्रांसलेट कर दिया गया, जो ईसाईयत का निशान था और जिसकी जड़ें ईसाइयत में हैं। जो सर्वकल्याण का संकेत था, उसे घृणा का चिन्ह बनाने के पीछे मंशा क्या रही होगी? आइये जानते है!
बार बार हम लोग यह सुनते हैं कि स्वास्तिक को प्रतिबंधित करने के लिए पश्चिमी जगत में अभियान चलाया जा रहा है या चलाया गया है। और केवल इसलिए क्योंकि हिटलर ने एक चिन्ह के नीचे साठ लाख यहूदियों को दफना दिया था। मगर क्या वास्तव में यह चिन्ह स्वास्तिक ही था? इस बात को लेकर पहले भी कई बार कई रिपोर्ट्स आती रही हैं, परन्तु एकेटीके डक्यूमेंट्री नामक चैनल ने इस बात पर आँखें खोल देने वाली डोक्युमेंट्री बनाकर प्रस्तुत की है।
यह डोक्युमेंट्री उन कई रहस्यों पर से पर्दा उठाती है, जिन पर अभी तक किसी का ध्यान नहीं गया था। इस में तमाम पुस्तकों का सन्दर्भ है कि कैसे हुक्ड क्रॉस को जानबूझकर हिन्दुओं के पवित्र चिन्ह स्वास्तिक के साथ जोड़ा गया। और एक बहुत ही सही प्रश्न उठाया गया कि जो हिटलर नस्लीय श्रेष्ठता से भरा हुआ था, जो हिटलर हर हाल में अंग्रेजों का ही शासन भारतीयों पर चाहता था, जो हिटलर यह चाहता था कि अंग्रेज केवल नस्लीय श्रेष्ठता के कारण ही भारत पर राज करें, वह कैसे हिन्दुओं के स्वास्तिक को प्रयोग कर सकता था?
इस डॉक्युमेंट्री में राजनीति की वह सच्चाई दिखाई है, जिसे दिखाने से लोग बचते हैं। इस डाक्यूमेंट्री में यह दिखाया है कि कैसे हुक्ड क्रॉस ईसाइयत का निशान है और वह ट्रॉय के नष्ट हुए शहर से भी प्राप्त होता है और इसे खोजने वाले हेनरी शिल्मेन, और यह जगह और निशान चर्चा का विषय बन जाते हैं। हालांकि वह इसके लिए स्वास्तिक का प्रयोग करते हैं, परन्तु स्वास्तिक से यहाँ उनका अर्थ एक क्रॉस से है
हालांकि जब उन्होंने स्वास्तिक शब्द का प्रयोग किया तो जर्मनी के ही विद्वान मैक्समूलर ने इसका विरोध किया था। मैक्समूलर ने कहा था कि भारत से बाहर इस चिन्ह का प्रयोग उन्हें पसंद नहीं है।
परन्तु फिर ऐसा क्या हुआ कि इस चिन्ह को स्वास्तिक का नाम दे दिया गया? और जिस कारण से लोग इसे घृणा का पर्याय मानने लगे? दरअसल इसके पीछे अब्राह्मिक रिलिजन का वह काला चिट्ठा है, जिसे खुलने के भय से वह वह खुद ही कांप जाता है। हिटलर दरअसल बचपन में ईसाई प्रीस्ट बनना चाहता था। उसके मन में ईसाईयत के प्रति झुकाव था और वह जीसस के सिद्धांत जीवन में ढालने के लिए कहता था।
उसने अपनी पुस्तक में जिस मोनेस्ट्री की बात की है, उसमें लगभग सात स्थानों पर यह चिन्ह है। चर्च के स्थापत्य पर एक पुस्तक में इस चिन्ह को गेमेडियन बताया है, अर्थात कोने का पत्थर! किसी भी इमारत में कोने के सबसे नीचे का पत्थर! और जब चार ऐसे आकारों को मिलाया जाता है तो यही निशान मिलता है, जिसे स्वास्तिक कहकर बदनाम किया जा रहा है। नेल्सन की डिक्शनरी में यह बताया है कि गेंमेडियन को जीसस क्राइस्ट के एक प्रतीक के रूप में प्रयोग किया जाता है। हिटलर ने अपनी पार्टी के समाचारपत्र में यह कहा है कि वह यहूदियों के मामले में जीसस का ही पालन कर रहा है।
उसने बाद में यह भी कहा कि यहूदियों के साथ जो वह कर रहा है, वह जीसस के उन अधूरे कामों को पूरा करने के लिए है, जो वह कर नहीं पाए थे। अर्थात वह ईसाईयत की ही सेवा कर था था। और फिर उसने इसी चिन्हं की आड़ में साठ लाख यहूदियों को मौत की नींद सुला दिया।
यह जघन्य पाप ईसाइयत की आड़ लेकर भी किया गया था क्योंकि उस समय ईसाई रिलिजन के पोप आदि की ओर से भी ऐसी कोई आवाज़ नहीं आई थी कि यहूदियों का हत्याकांड रोक दिया जाए। पोप पायस ग्यारहवें और पोप पायस बारहवें ने स्टीन के उस पत्र का उत्तर दिया था, जो उसने पोप को लिखा था कि वहां पर क्या क्या हो रहा है।
यहाँ तक कि हिटलर के कामों को एक नई ईसाईयत की भी उपाधि मिल गयी थी। परन्तु फिर भी यह नहीं समझ में आ रहा है कि ईसाईयत पसंद करने वाला, नस्ली आधार पर अंग्रेजों द्वारा भारत को गुलाम बनाए रखने की सलाह देने वाला और साठ लाख यहूदियों की जान लेने वाका हिटलर कैसे हिन्दू धार्मिक चिन्ह को लेगा, यह अपने आप में एक प्रश्न है!
दरअसल उसका चिन्हं एक हुक्ड क्रॉस था, जिसे बहुत ही शातिराना तरीके से स्वास्तिक में बदला गया था। वर्ष 1931 में हिटलर की ट्रांसलेटेड आत्मकथा में स्वास्तिक का नामोनिशान नहीं था। इसका ट्रांसलेशन ईटीएस डूडल ने किया था। परन्तु वर्ष 1933 में हिटलर सत्ता में आया और सत्ता में आने के तुरंत बाद ही उसने यहूदियों का कत्लेआम करवाना शुरू कर दिया।
तो क्या उत्तर इसी पंक्ति में है? क्योंकि वर्ष 1939 में वह पोलैंड में कहर मचा देता है और इसी वर्ष ब्रिटेन भी युद्ध में कूदता है और इसी वर्ष उसकी आत्मकथा का दुबारा अंग्रेजी अनुवाद होता है और वह होता है जेस मर्फी द्वारा।
इसका उत्तर छिपा है उन यहूदियों की वह साठ लाख हत्याओं में, जिन्हें करने का पाप हिटलर का तो था ही, परन्तु चर्च ने भी इसका विरोध नहीं किया था। और हिटलर की निकटता चर्च और ईसाईयत से स्पष्ट हो रही थी, तो उन साठ लाख हत्याओं का पाप कहीं चर्च पर न आ जाए, कहीं ईसाईयत पर उन साठ लाख हत्याओं का पाप न आए, इसलिए एक बहुत ही शातिराना तरीके से हेकनक्रूज़ जिसका अर्थ होता है हुक्ड क्रॉस, उसे स्वास्तिक ट्रांसलेट कर दिया गया, और इसे करने वाला भी चर्च का ही व्यक्ति था।
जेम्स मर्फी ने हेकनक्रूज़ को स्वास्तिक ट्रांसलेट कर दिया। चूंकि हिटलर ने अपनी किताब में हेकनक्रूज़ को यहूदियों के लिए घातक बताया था और यह वह चिन्ह था जिसके नीचे ही साठ लाख यहूदियों की हत्याएं हुई थीं, इसलिए चूंकि इन हत्याओं का पाप कहीं ईसाईयत पर न आ जाए, तो जेम्स मर्फी जो खुद एक प्रीस्ट था, उसने ईसाईयत को कलंक से बचाने के लिए, यह पाप एक ऐसे प्रतीक पर मढ़ दिया, जिसका इससे दूर दूर तक लेना देना नहीं था।
वह यह नहीं चाह सकता था कि ईसाईयत बदनाम हो जाए, तो उसने इस पाप को स्वास्तिक पर थोप दिया।
परन्तु सत्य तो एक दिन बाहर आना ही है, आज नहीं तो कल, सत्य आएगा ही, और अब इस मामले में भी सत्य बहार आ रहा है!
यह मानव सभ्यता का सबसे बड़ा छल है, जो एक जीवित और समृद्ध एवं उदार सभ्यता के साथ एक आततायी समाज ने किया है, जिसका फल उसे आज नहीं तो कल भुगतना ही होगा!