हाफिज़े -ए-कुरान जनरल मुनीर के पाकिस्तान को निपटाने को देश की अकेली सेना बहुत पर्याप्त है। लेकिन अंदर के पाकिस्तान को देख लेने के लिए समाज की संगठित शक्ति ही काम आने वाली है, कुछ और नहीं। अजमेर के लव-जिहाद की घटना की तरह भोपाल के बाद अब उज्जैन सुर्खियों में है। जीजाबाई और उनके पुत्र शिवाजी के आदर्शों पर चलकर ही इस समस्या को जड़ से मिटाया जा सकता।
उनके अपने परिवार को मुस्लिम सत्ता के हाथों मिले पीड़ा दायक कटु अनुभव , और फिर अपने पति और खानदान से उम्मीद खो चुकी जीजाबाई नें ठान लिया कि देश के खोए वैभव को पाने के लिये वो अब अपने बालक शिवा का निर्माण करेंगी. और केशव पंडित , दादाजी पन्त, संत समर्थ रामदास आदि की देख-रेख में राज-काज के लिए जरूरी विधाओं को लेकर शिवाजी की शिक्षा-दीक्षा शुरू हुई.
और जब तक शिवाजी युवा होते वो देश कि दुरावस्था के कारण और उसके निदान के मार्ग से सुपरिचित हो चुके थे. और फिर आगे चलकर उन्होंने मुसलमानी हुकूमत से देश की मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया।
जीजा बाई कितनी प्रगतिशील और दूरदृष्टिवान थीं इसको एक और उदाहरण से अनुभव किया जा सकता है. विविध क्षेत्रों के कुशल संचालन के लिए शिवाजी ने अष्ट मंडल का निर्माण किया था , जिसमें एक ‘प्रायश्चित मंडल’ भी था. इसके प्रमुख पंडित राव थे. मुसलमान बन जाने के उपरांत बजा जी निम्बालकर की घर-वापसी हुई थी, और जीजाबाई के सरंक्षण में इन्हें पुन: हिन्दू बनाया गया था. फिर शिवाजी की पुत्री सखुबाई का विवाह निम्बालकर के पुत्र महाद जी से किया.
संगठित और शक्तिशाली हिन्दू समाज के निर्माण में किस उदार दृष्टि से आगे बढ़ा जाता है अपने इस एक उदाहरण से माता जीजाबाई ने अपने सहधर्मी बंधुओं की आँखें खोल कर रख दीं।
अपनी माता के आदर्शों पर चलते हुए , छत्रपति शिवाजी ने सह्याद्री पर्वत पर बसने वाले मावले वनबंधुओं को सेना में स्थान दिया। शिवाजी के सेनापति तानहाजी मलसुरे , मावले समाज के ही गौरव थे। अफजल खान और उसकी सेना का सम्पूर्ण नाश शिवाजी की सूझबूझ और मावले योद्धाओं के शौर्य का ही परिणाम था।