ओड़िशा में इन दिनों श्री जगन्नाथ हेरिटेज कॉरिडोर परियोजना के अंतर्गत कथित रूप से विकास कार्य हो रहा है। परन्तु यह विकास कार्य सदियों पुराने मंदिर के लिए विनाश कार्य बनकर सामने आए हैं। इस योजना से मंदिरों को हानि हो रही है, पूरी की पूरी संपदा, पूरी की पूरी विरासत ही ढहने की कगार पर आ गयी है। इस परियोजना के विरोध में एएसआई भी ओड़िशा उच्च न्यायालय में पहुँच गया है।
उच्च न्यायालय से यह अपील की गई है कि यह पूरा कार्य चूंकि एएसआई की अनुमति के बिना आरम्भ हुआ है, तथा मनचाहे तरीके से कार्य किया जा रहा है, जिसके कारण मंदिरों को नुकसान हो रहा है, अत: राज्य सरकार को इस कार्य को रोकने का आदेश दिया जाए। वहीं इस योजना के विरोध में श्री मंदिर सुरक्षा अभियान के पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने भी दिल्ली में अपनी बात रखी।
उन्होंने प्रेस रिलीज जारी करते हुए कहा कि “श्री मंदिर सुरक्षा अभियान के पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय संस्कृति मंत्री श्री जी.कृष्णा रेड्डी से भेंट की और पुरी में शुरू की जा रही श्री जगन्नाथ हेरिटेज कॉरिडोर परियोजना में हो रही अनियमितताओं पर एक ज्ञापन सौंपा। पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए, अभियान के प्रवक्ता, अनिल धीर ने कहा कि प्रस्तावित परियोजना के कार्यान्वयन में निर्धारित कानूनों का घोर उल्लंघन मंदिर और इसकी दीवारों की संरचनात्मक स्थिरता के लिए एक आसन्न खतरा है। सरकार 3200 करोड़ रुपये के अनुमानित निवेश पर बुनियादी सुविधाओं और विरासत और वास्तुकला के विकास (ABADHA) योजना के विस्तार के तहत पुरी को विश्व स्तरीय विरासत शहर के रूप में विकसित करने की योजना लेकर आई है। इसके लिए अगस्त 2019 में मंदिर के 75 मीटर के दायरे से अतिक्रमण हटाने के लिए बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ अभियान शुरू किया गया था। सदियों पुराने मठों और संरचनाओं को ध्वस्त करने के बाद, कोविड संकट के कारण अभियान को रोक दिया गया था, लेकिन अगस्त 2020 को फिर से शुरू किया गया। श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंध समिति के अध्यक्ष और पुरी के राजा दिब्यसिंह देब ने पिछले साल 24 नवंबर को मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की उपस्थिति में तीन दिवसीय यज्ञ के अंत में परियोजना की नींव रखी थी। शिलान्यास के बाद मंदिर के पास खंभों के साथ निर्माण कार्य तेज गति से शुरू हुआ। विवाद तब सामने आया जब विशेषज्ञों ने खुदाई के लिए भारी मशीनरी के इस्तेमाल पर आपत्ति जताई, क्योंकि इससे 12वीं शताब्दी के मंदिर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। सवाल उठाए गए कि क्या राष्ट्रीय एनएमए या भारतीय पुरातत्व विभाग (एएसआई) ने ऐसी निर्माण गतिविधि के लिए मंजूरी दी थी।
21 फरवरी 2022 को एएसआई की महानिदेशक सुश्री वी विद्यावती ने मंदिर का दौरा किया था और इसके आसपास चल रहे प्रोजेक्ट का निरीक्षण किया था। अपने विजिट नोट में, उसने कहा था, “प्रस्तावित सुविधाएं मंदिर के निषिद्ध क्षेत्र में आती हैं। सरकार से यह भी अनुरोध किया गया था कि पूरे मंदिर परिसर की आध्यात्मिक प्रकृति के साथ पूरे डिजाइन को सरल बनाया जाए। यह बहुत चिंता का विषय है कि मंदिर के 100 और 200 मीटर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विध्वंस और निर्माण कार्य हो रहे हैं। एनएमए और एएसआई की अनुमति नहीं ली गई है। जो काम मंदिर के लिए खतरा है, उसे बंद करना चाहिए।” जबकि परियोजना राज्य के निर्माण विभाग के तहत ओडिशा ब्रिज एंड कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन (ओबीसीसी) द्वारा ली गई है, जो कि टाटा प्रोजेक्ट्स की देख रेख में काम कर रही है। जब परिधीय विकास परियोजना को हाथ में लिया गया था, एक सलाहकार समिति का गठन किया गया था जिसमें एएसआई को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया था। अन्य अनिवार्य आवश्यकताओं जैसे विरासत प्रभाव मूल्यांकन और ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार सर्वेक्षण को नहीं लिया गया था। मंदिर के पास खुदाई की गतिविधियों के लिए विशालकाय मिट्टी को हिलाने वाली मशीनों और उत्खनन का इस्तेमाल किया जा रहा था। यह सब मंदिर और इसकी दीवारों की संरचनात्मक स्थिरता के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है। श्री मंदिर सुरक्षा अभियान के संयोजक श्री विनय कुमार भुयन जी ने कहा कि अगर तत्काल इस पर रोक नहीं लगाई गयी तो जगन्नाथ भक्तों का राज्य व देशव्यापी आंदोलन होगा। अधिवक्ता अजित पटनायक जी ने कहा कि क़ानूनी तौर पर भी हर स्तर पर इसका मुकाबला किया जायेगा।
अभियान सभी गतिविधियों को तत्काल रोकने और प्राचीन मंदिर पर इस तरह की गतिविधियों के जोखिम के दृष्टिकोण का मूल्यांकन करने के लिए एक विशेषज्ञ टीम का गठन करने की मांग करता है। लाखों भक्तों की भावनाओं को प्रभावित करने वाली एक भीषण आसन्न दुर्घटना को टालने के लिए यह आवश्यक है। भुवनेश्वर में एएसआई के क्षेत्रीय निदेशक ने एक आरटीआई के जवाब में कहा था कि जो काम चल रहा है उसके लिए कोई अनुमति नहीं दी गई थी। पत्रकार वार्ता में श्री मंदिर सुरक्षा अभियान के संयोजक श्री विनय कुमार भुयन, केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय बिहार के कुलपति प्रो प्रफुल मिश्रा व वरिष्ठ अधिवक्ता श्री अजित पटनायक भी उपस्थित थे।”
वहीं इस मामले में ओड़िशा उच्च न्यायालय में अगली सुनवाई 22 मई को है! फिर से एक बार प्रश्न उठता है कि हिन्दू धरोहरों के साथ इतना लापरवाह दृष्टिकोण कैसे हो सकता है?