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Friday, April 26, 2024

प्रिय हिन्दू अभिभावकों, ध्यान रखें कि विज्ञापनों में कैसे आपके परिवार, पर्वों एवं आपकी परम्पराओं को निशाना बनाया जा रहा है!

विज्ञापनों का प्रभाव लगभग सभी को पता है और कई बार ऐसा हुआ है कि विज्ञापनों को लेकर विवाद हुए हैं एवं विज्ञापन वापस लेने पड़े हैं। परन्तु कई विज्ञापन ऐसे होते हैं, जो देखने में अजीब या विवादित नहीं प्रतीत होते हैं, परन्तु वह ऐसा नैरेटिव बना देते हैं, कि हमारे बच्चे ही नहीं बल्कि बड़े भी उस जाल में फंस जाते हैं। आइये देखते हैं ऐसे ही कुछ विज्ञापनों को जो हमारे बच्चों के मस्तिष्क पर हमारी परम्पराओं ही नहीं बल्कि हमारे संस्कारों के प्रति भी बहुत महीन स्तर पर घृणा भरते हैं।

पार्ले असली खुशी कुकीज़

पारले का 20-20 कुकीज़ का विज्ञापन एक ऐसा विज्ञापन है जो हमारे बच्चों के मन में विवाह को लेकर यह भर रहा है कि जैसे यह अत्यंत ही उबाऊ एवं नीरस तथा नकली प्रक्रिया है। इस विज्ञापन में एक महिला बैठी हुई है और उसका परिचय कराया जा रहा है। वह महिला नव विवाहिता प्रतीत हो रही है, जिसका परिचय मझली बुआ, कोई मौसी आदि से कराया जा रहा है और वह महिला हंसकर स्वागत और बात कर रही है।

फिर नेपथ्य से आवाज आती है कि यह है नकली स्माइल, फिर वह पारले का 20-20 खाती है और आवाज आती है कि यह है असली खुशी। फिर वह कहता है कि दिल से खुश हो जाओ।

यह विज्ञापन क्या दिखाना चाहता है? क्या कहना चाहता है? क्या एक महिला जब विवाह होकर आती है तो उसे अपने नए परिजनों से मिलवाना गलत है? नवविवाहिता असली मुस्कान क्यों नहीं मुस्करा पा रही है? यह विज्ञापन पहले से ही खलनायक ठहरा दिए गए ससुरालीजनों के प्रति अलगाव की भावना को ही भरता है। यह बहुत ही मीठा जहर है। जिसमें महिलाओं को बहुत ही प्यार से विवाह एवं ससुराली जनों के विरुद्ध भड़काया जा रहा है।

दरअसल यह विमर्श की लड़ाई है। अब विज्ञापनों में महिलाओं की छवि भी बदलने लगी है और जो सीधे सीधे हमारे दिमाग के साथ खेलती हैं। विवाह को लेकर पुरुषों की छवि को नीचा दिखाया जा रहा है। जैसा हेवेल्स के होम अप्लायंस का एक विज्ञापन था जिसमें एक महिला बस यह कहती है कि उसका बेटा कॉफ़ी पीने के लिए बाहर जाता है तो वह हेवेल का कॉफ़ी मेकर लाकर रख देती है।

अर्थात एक महिला अपने बेटे की होने वाली पत्नी से यह तक इच्छा व्यक्त नहीं कर सकती कि उसे कॉफ़ी बनानी भी आती हो! यदि विवाह करने वाली महिला से कॉफ़ी बनाने की मांग कर ली तो क्या हुआ? और लड़के की माँ की छवि तो और भी अजीब दिखाई जाती है।

ऐसा ही एक विज्ञापन था टाइटन रागा का, जिसमें एक महिला अपने पूर्व पति से मिलती है और उसका पति उससे कहता है कि वह लोग एक वैवाहिक जीवन जी सकते थे, यदि उसने नौकरी छोड़ दी होती। तो उसके बाद वह कहती है कि वह भी छोड़ सकता था, पुरुष कहता है कि वह कैसे नौकरी छोड़ सकता था। तो महिला कहती है कि तुम अभी तक वैसे ही हो जैसा मैंने तुम्हें छोड़ा था! और फिर उस महिला का महिमामंडन आरम्भ हो जाता है!

परिवार और नौकरी में से जो महिलाएं नौकरी चुनती हैं और जीवन भर अकेले रहती हैं क्या उनके अकेलेपन से उपजे अवसाद पर कोई विज्ञापन आता है?

इस पागलपन और लड़कियों को कथित जेंडर समानता के आधार पर ऐसे विज्ञापन बन रहे हैं, जो जेंडर समानता के इस पागलपन को और बढ़ा रहे हैं। डाबर निहार का एक विज्ञापन जिसमें एक लड़की का ऐसा शोषण दिखाया है कि उसके साथ बचपन से ज्यादती हुई और कभी उसे अपने मन का करने नहीं दिया गया।

उसके प्रतिशोध में वह अपने बालों को ही काटकर एक नई शुरुआत करती है और उन बालों को काट देती है जिसे उसकी माँ, उसकी दादी ने तेल मालिश आदि करके सुन्दर रूप दिया होता है। क्या बाल काटना ही आधुनिकता की निशानी है?

डाबर निहार इस विज्ञापन से क्या प्रमाणित करना चाहता है?

ऐसे विज्ञापन क्या दिखाना चाहते हैं? जो अपनी बेटियों के प्रति ऐसे भाव रखते हैं और इनमें हिन्दू परिवेश ही क्यों दिखाया जाता है? क्या यह दिखाने का प्रयास किया जा रहा है कि हिन्दू ही सबसे पिछड़ा है? हिन्दू परिवारों की ऐसी छवि विज्ञापन बनाते हैं जिसमें जो भी हिन्दू भावों से भरा है, जिसमें हिन्दू पहचान है, वह सब पिछड़ा है और जो हिन्दू परम्पराएं हैं, उन्हें बदलना ही नई शुरुआत है। जैसा इस हेवेल्स फैन में था

एक बात ध्यान देने योग्य है कि लगभग सभी विज्ञापनों में विवाह एवं हिन्दू परिवार पर ही प्रहार किया गया है। ऐसा प्रमाणित करने का पूरी तरह से प्रयास किया गया है कि जो भी अपनी परम्पराओं का पालन कर रहा है वह पिछड़ा है, कूप मंडूक है एवं ऐसा है जो परिवर्तन केलिए तैयार नहीं है और जो भी उन्हें तोड़ रहा है, और वह भी अनजान कारणों से, वह सबसे अधिक आधुनिक है!

यह कैसा विष विज्ञापन हमारे और हमारे बच्चों के मस्तिष्क में भर रहे हैं और क्यों विवाह और परिवार इनके निशाने पर है, यह भी विचारणीय है! विज्ञापन हमारे विवाह एवं परम्पराओं को तोड़कर सभी को बाजार बना देना चाहता है, जिसमें सबसे बड़ी बाधा हिन्दू पारिवारिक मूल्य हैं, पारिवारिक अनुशासन है और अब कथित जेंडर अर्थात लैंगिक विमर्श के नाम पर निशाना हिन्दू परिवार पर है।

इसलिए हर विज्ञापन के लिए भी सतर्क रहें कि वह हमारे मस्तिष्क को कितना दूषित कर रहा है!

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