नागा साधुओं को देख आपके मन में क्या विचार आते हैं? कुंभ मेले के समय आपने लाखों नागा साधुओं को स्नान के लिए प्रस्थान करते हुए देखा होगा, ये साधु मेला समाप्त होते ही विलुप्त हो जाते हैं। शरीर पर राख लपेटे, हर प्रकार की आसक्ति से दूर इन साधुओ को देख लोग इनके बारे में गलत धारणा भी बना लेते हैं, लेकिन बहुत ही कम लोग सनातन धर्म की रक्षा में इनके योगदान के बारे में जानते हैं, क्योंकि विदेशी मानसिकता और वामपंथी मत वाले इतिहासकारों ने उनकी गौरव गाथा को छिपा दिया था।
आज इस लेख में हम नागा साधुओं के प्रताप, उनके त्याग, और सनातन धर्म और संस्कृति को बचाने में उनके अविस्मरणीय योगदान के बारे में जानेंगे। हम जानेंगे कि क्यों नागा साधु हमारे सनातन धर्म के असली योद्धा हैं, इन्हीं योद्धाओं के कारण हिन्दू अपने त्योहार और परंपराओं का पालन स्वतंत्रता पूर्वक कर पाते हैं।
कौन होते हैं नागा साधु?
नागा साधु शैव (भगवान शिव के अनुयायी) होते हैं, और वह हिमालय में रहते हैं। कुंभ मेला वर्ष का एकमात्र समय होता है, जब नागा साधुओं के अखाड़े मैदानों में उतरते हैं और सामूहिक स्नान करते हैं । यह अवसर उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि वर्ष का यही एकमात्र समय होता है जब कोई नागा साधु बन सकता है।
नागा साधुओं का जीवन अत्यंत कठोर होता है, उन्हें हर दिन हर क्षण कठिन संघर्ष करना पड़ता है। एक योद्धा बनने से पहले नागा साधुओं को अत्यंत कठिन प्रशिक्षण से गुजरना होता है, जिसमें महीनों तक एक पैर पर खड़ा होना, बिना भोजन पानी के लंबे समय तक रहना, कांटों की शय्या पर सोना, सर्दियों में गले तक पानी में डूबे रहना, गर्मी में आग जलाकर उसके पास बैठना, पेड़ पर उल्टा लटककर साधना करना, जमीन में गहरे गढ्ढे खोदकर उसमें समाधि लगाकर बैठ जाना जैसे कठिन उन्हें करने पड़ते हैं, तब जा कर उन्हें सिद्धि प्राप्त होती है और एक आम इंसान नागा साधू बन पाता है।

नागा साधु वस्त्र धारण नहीं करते हैं, हालाँकि मैदानों में आने पर सामाजिक परम्पराओं का निर्वहन करने के लिए वह लंगोटी पहन लेते हैं . नागा साधु कभी भी बिस्तर पर नहीं सोते, कोई भी मौसम हो, कैसी भी परिस्थिति हो, उन्हें हमेशा जमीन पर ही सोना पड़ता है । उन्हें ज्यादा से ज्यादा राख बिछाने की आज्ञा होती है, जिस पर वह शयन कर सकते हैं।
अगर आप हिमालय के सुदूर इलाकों में जाएंगे तो वहां आपको बिना वस्त्रों के नागा साधु दिखाई दे सकते हैं। नागा साधु हमेशा अपने साथ शस्त्र भी रखते हैं, और शस्त्रधारी नागाओं के अलग अलग गुट हैं। जिन्हें अवधूत, औघड़ी, महंत, श्मशानी, कापालिक आदि नामों से जाना जाता है। नागा साधुओं को चार पद प्राप्त होते हैं. यह हैं, कुटीचक, बहूदक, हंस, और परमहंस। किसी भी नागा साधु के लिए परमहंस पद प्राप्त करना अत्यंत दुर्लभ मन जाता है, ऐसे संन्यासी बहुत कम देखे जाते हैं।
नागा साधुओं के अखाड़े और उनका सैन्य संगठन
आदि गुरु शंकराचार्य जी ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए देश के चार कोनों पर संन्यासी पीठों का निर्माण किया था, यह व्यवस्था आज तक चली आ रही है। इन्हीं पीठों के अंतर्गत अलग अलग अखाड़े बनाए गए हैं, जहां नागा संन्यासी शस्त्र संचालन और व्यायाम का अभ्यास करते हैं। वर्तमान काल में भी भारत में 13 प्रमुख अखाड़े सक्रिय हैं, जिनकी शक्ति प्रदर्शन आप कुंभ मेले के समय देखते हैं ।
अखाड़ा एक तरह का मठ ही होता है, जहाँ साधुओं को ना सिर्फ ज्ञान दिया जाता है, बल्कि उन्हें हर तरह की लड़ाई और सैन्य परम्पराओं के लिए भी तैयार किया जाता है। अखाड़ों के संचालन के लिए नागा साधुओं का वरीयता क्रम होता है, जिसके अनुसार वह कोतवाल, बड़ा कोतवाल, पुजारी, भंडारी, कोठारी, बड़ा कोठारी, महंत और सचिव जैसे प्रशासनिक पद पाते हैं।

अखाड़ों के आकार और महत्त्व के आधार पर उनके अध्यक्षों को महंत, श्रीमहंत, जमातिया महंत, थानापति महंत, महंत, दिगंबर श्री, महामंडलेश्वर और आचार्य महामंडलेश्वर नामक पद प्रदान किए जाते हैं। नागा साधु एक सैन्य पंथ की तरह ही प्रशिक्षित होते हैं, और उनकी पदावली भी एक सैन्य रेजीमेंट की तरह होती है। अगर आप देखेंगे तो पाएंगे कि नागा साधु हमेशा अपने साथ त्रिशूल, तलवार, भाला, और गदा जैसे शस्त्र रखते हैं।
नागा साधुओं द्वारा लड़े गए मुख्य युद्ध
नागा साधु मृत्यु से नहीं डरते हैं, क्योंकि जिंदा रहते हुए ही वह अपने हाथों से अपना श्राद्ध और अन्य अंतिम संस्कार कर चुके होते हैं। जब नागा साधु रणभूमि में उतरते हैं तो उनका रौद्र रूप देख विधर्मी लुटेरे डर से काँप जाते हैं। आइये जानते हैं कुछ मुख्य युद्ध जो नागा साधुओं ने लड़े हैं।
- इस्लामिक आक्रांता औरंगजेब ने जब काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमला किया था, तब महानिर्वाणी दशनामी अखाड़े के साधु सनातन की रक्षा के लिए सामने आए। यह संघर्ष इतना विकट था कि औरंगजेब की सेना को मंदिर को नष्ट करने का स्वप्न छोड़ पीछे हटना पड़ा था।
- महाराणा प्रताप जब मुग़ल शासक अकबर से युद्ध कर रहे थे, तब नागा साधुओं ने उनका सहयोग किया था। नागा साधुओं के पराक्रम को देख कर मुग़ल सेना के पाँव उखड़ गए थे। राजस्थान के पंचमहुआ इलाके में राणाकड़ा घाट और छापली तालाब के मध्य हुए युद्ध में बलिदान हुए नागा साधुओं की समाधियां आप को आज भी देखने को मिल जाती है।
- बंगाल में आतताइयों के विरुद्ध नागा साधुओं का युद्ध बड़ा ही प्रसिद्ध है। प्रसिद्द गीतकार और लेखक बंकिम चंद्र चटर्जी ने अपनी पुस्तक ‘आनंद मठ’ में इस युद्ध के बारे में लिखा है, इसी पुस्तक का गीत ‘वंदे मातरम’ आज हमारा राष्ट्रीय गीत है।
- अयोध्या में राम जन्मभूमि को इस्लामिक आतताइयों से बहाने के लिए नागा साधुओं ने बहुमूल्य बलिदान दिया था. राम मंदिर के लिए छोटे बड़े लगभग 76 युद्ध लड़े गए थे, जिनमे संत बलरामाचार्य, बाबा वैष्णवदास, राजगुरु पं. देवीदीन पांडेय, स्वामी महेशानंद जैसे कई नागा योद्धाओं ने अपने जीवन की आहुति दी । वहीं संत बालानंद और मानदास ने मिलकर इस्लामिक सेना के विरुद्ध लम्बे समय तक युद्ध लड़ा, और उनके अयोध्या से दूर ही रखा।

- 1666 में जब हरिद्वार कुंभ के मेले के समय औरंगजेब के सिपाहियों ने हिन्दुओ पर हमला किया था, तब नागा साधुओं ने ही प्रतिकार किया था, और इस्लामिक सेना को मार पीट कर भगा दिया था।
- 1751 में जब इस्लामिक आक्रांता अहमद अली बंगस ने प्रयागराज में कुम्भ के मेले के समय हमला किया था, उस समय संत राजेन्द्र गिरि के नेतृत्व में लगभग 50 हजार नागा साधुओ ने डटकर मोर्चा लिया था और बंगस की फौज को भगा दिया था।
- 1757 में जब अफ़ग़ानिस्तान के लुटेरे अहमद शाह अब्दाली ने दिल्ली पर हमला किया था, तब तत्कालीन मुगल शासक उसके आगे टिक नहीं पाए थे और दिल्ली खो बैठे थे। दिल्ली को रौंदने के बाद अब्दाली की फौज पवित्र नगरी मथुरा को अपवित्र करने के लिए बढ़ ही रही थी, तभी नागा साधुओं ने उन पर हमला कर दिया था। इस युद्ध में अब्दाली के लुटेरों को हार झेलनी पड़ी और वह वापस दिल्ली भाग गए थे।
ऐसे ही और भी कई युद्ध थे जहाँ नागा साधुओं ने सनातन के लिए बलिदान दिया, लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात उनके इतिहास को जानबूझकर मिटा दिया गया। गुलामी के समय नागा साधुओं ने धर्म की रक्षा के लिए और हिन्दुओ के प्राण बचाने के लिए बढ़ चढ़कर संघर्ष किया, लेकिन स्वतंत्रता के पश्चात उन्होंने अपनी सैन्य क्षमता को सीमित कर दिया है, अब नागा साधु केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए साधना करते हैं और कभी कभी ही दिखाई देते हैं।
हम भारतीयों के लिए नागा साधुओं के संघर्ष और उनके धर्मपरायणता के बारे में जानना अत्यंत आवश्यक है, उनके बलिदान का गाथाएं ही हमे धर्म के संरक्षण के लिए संगठित होने और हर तरह के बलिदान के लिए तत्पर रहने के लिए प्रेरित करती रहेंगी।