अनारकली और आरा के निर्देशक अविनाश दास को गुजरात पुलिस ने अफवाह फैलाने और तिरंगे के अपमान के कारण गिरफ्तार कर लिया है। हालांकि इस मामले में यह गिरफ्तारी अभी हुई है, परन्तु अविनाश दास का इतिहास झूठ फैलाने का ही रहा है, इतना ही नहीं हिन्दू विरोधी विचारों के लिए अविनाश दास को जाना जाता है। परन्तु दुर्भाग्य की बात यह है कि यही अविनाश दास कभी प्रांत, तो कभी कथित रचनाकार होने के नाते उन लोगों के भी प्रिय हैं, जिन्हें या तो राष्ट्रवादी कहा जाता है, या जो कथित गांधीवादी का लेबल डालकर घूमते रहते हैं।
नरेंद्र मोदी या भाजपा के विरोधी जब भारतीय जनता पार्टी का चुनावों के माध्यम से कुछ नहीं बिगाड़ पाए तो फिर उन्होंने अपनी कुंठा का नया मार्ग निकाला। इसमें उन्होंने हिन्दू धर्म पर आक्रमण करना आरम्भ किया, क्योंकि यह उन लोगों से प्रत्यक्ष जुड़ा हुआ है, जो भारतीय जनता पार्टी को सरकार में लाते हैं।
रणनीति बदल ली गयी क्योंकि हिन्दू धर्म उदार है, हिन्दू धर्म सहिष्णु है, ऐसा कथित नास्तिक वामपंथी कहते ही हैं। इस कथित उदारता का हवाला लेकर उन्होंने हिन्दू धर्म के प्रति घृणा फैलाना वर्ष 2015 के उपरान्त और विशेषकर 2019 के बाद और भी अधिक फैलाना आरम्भ कर दिया। यदि भारतीय जनता पार्टी या नरेंद्र मोदी पर हमला भी करना पड़ा तो भी हिन्दू पहचान का ही सहारा लिया।
एक प्रकार से यह प्रमाणित करने का प्रयास इस पूरी लॉबी द्वारा किया गया कि आम हिन्दू कितना दुष्ट है, और उन्हीं दुष्ट एवं निर्दयी हिन्दुओं ने ही ऐसी सरकार चुनी है कि वह दमन कर रही है। अविनाश दास को हाल फिलहाल में झारखण्ड की भ्रष्ट अधिकारी पूजा सिंघल के साथ अमित शाह जी की पुरानी फोटो इस दावे के साथ वायरल करने के लिए हिरासत में लिया गया है, कि वह फोटो हाल फिलहाल की थी।
परन्तु अविनाश दास की हिन्दू घृणा बहुत पुरानी है। वर्ष 2016 में उन्होंने ट्वीट किया था कि
“व्हिस्की से विष्णु मिले, रम से मिल गये राम; ब्रांडी से ब्रह्मा मिले और देशी से हनुमान। मैं किस बोतल का त्याग करूं? सब में बसते भगवान!!!”
और ऐसा भी नहीं है कि अविनाश दास ने अमित शाह की ही फोटो गलत तरीके से वायरल की थी। अविनाश दास भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के साथ ऐसा पहले भी कर चुके हैं। किसान आन्दोलन के दौरान एक झूठी तस्वीर अर्थात फोटोशॉप की गयी तस्वीर भी साझा की थी। जिसमें संबित पात्रा को लेकर झूठे दावे थे।
हालांकि यह पहले से ही फोटोशॉप किया हुआ लग रहा था, फिर भी संबित पत्रा ने इसका खंडन किया था। इसके साथ ही कई और झूठ अविनाश दास ने फैलाए थे।

अयोध्या में शताब्दियों के संघर्ष एवं न जाने कितने हिन्दुओं के बलिदानों के उपरान्त राम मंदिर का निर्माण हो पा रहा है और वह भी न्यायालय के निर्णय द्वारा। उसके लिए अविनाश दास ने लिखा था:
मंदिरों के विषय में अविनाश दास ने लिखा था कि मंदिर का मतलब होता है मानसिक गुलामी का रास्ता आदि

और उसके साथ ही हनुमान जी का भी अपमान करते हुए एक पेंटिंग साझा की थी।
इतना ही नहीं योगी आदित्यनाथ के विषय में भी एक झूठी तस्वीर साझा की थी और भाषा थी कि “बोलो, इस आदमी को जूते पड़ने चाहिए या नहीं!”
यह अविनाश दास का इतिहास रहा है। हिन्दू फोबिक एवं हर उस व्यक्ति से घृणा करने वाला, जो हिन्दू पहचान धारण करता है, जो अपने शताब्दियों के इतिहास को पहचानता है, जो यह सोचता है कि उसकी एक धार्मिक एवं सांस्कृतिक पहचान है। प्रश्न यह नहीं है कि आप सरकार विरोधी है, समस्या यह है कि आप उस सांस्कृतिक एवं भारतीय लोक की पहचान के विरोधी हैं, जो इस देश की आत्मा है।
आप उस धार्मिक अस्मिता के विरोधी हैं, जो लगातार अपने शत्रुओं से संघर्ष करते हुए स्वयं को बचाती हुई आ रही है। सरकार का विरोध किसी भी लोकतंत्र में एक महत्वपूर्ण भाग है, परन्तु सरकार का विरोध करने के बहाने कहीं से भी यह सही नहीं ठहराया जा सकता है कि आप बहुसंख्यक समाज को ही गाली देने लग जाएं और वह भी तब जब उसने आपका प्रत्यक्ष कुछ बुरा नहीं किया है।
जब अविनाश दास ने अनारकली ऑफ आरा का निर्देशन किया था, उस समय कई ऐसे लोग अविनाश दास का समर्थन करने के लिए आ गए थे, जिन्हें राष्ट्रवादी या कहें वैचारिक रूप से कथित उदार स्वर माना जाता है। उस फिल्म का स्वागत ऐसे हुआ था जैसे भारत की सबसे महान फिल्म सामने आ रही है।
परन्तु यह समझ नहीं आता है कि आज के समय में जब विमर्श वैश्विक स्तर पर बदल रहा है, वैश्विक स्तर पर बहुआयामी हो रहा है उस समय भारत में कथित लिबरल या कहें प्रगतिशील तबका मात्र हिन्दू धर्म को कोसने में लगा हुआ है, उसका एक ही लक्ष्य है हिन्दुओं को गाली देना, हिन्दू धर्म को नीचा दिखाना।
परन्तु उनकी कुंठा ग्रस्त सोच का जब जनता विरोध करती है, उनकी घृणा का विरोध करती है तो वह आम जनता को ही कोसने लग जाते हैं, पर दरअसल वह इस बात से कुपित और कुंठित हैं कि इतने वर्षों तक उनके द्वारा किए जा रहे तमाम दुष्प्रचारों के उपरान्त भी हिन्दुओं की आस्था हिन्दू धर्म में क्यों है और क्यों वह मन्दिर को श्रद्धा का केंद्र मानते हैं, जबकि वह अपनी रचनाओं, फिल्मों में मंदिरों का और धर्मनिष्ठ हिन्दुओं का अपमान करते आ रहे हैं?