एक टीवी शो में राजनीतिक विश्लेषक बनकर आए मसूद हाशमी ने हिन्दू मातापिता पर एक अत्यंत घिनौनी टिप्पणी करते हुए यह कह डाला कि हिन्दू मातापिता ही अपनी बेटियों को मुस्लिम लड़कों के पीछे यह कहते लगाते हैं कि हिन्दुओं में दहेज़ हैं और मुस्लिम दहेज़ नहीं लेते हैं। हालांकि उसके बाद उसे शो से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। परन्तु क्या वास्तव में मुस्लिमों में दहेज़ नहीं है?
इस वीडियों में आप 38 मिनट के लगभग सुन सकते हैं कि “हिंदू माता-पिता अपनी जवान बेटियों को मुस्लिम के पीछे लगाते हैं और फिर कहते हैं कि हिंदू धर्म में तो हम तेरी शादी कर नहीं सकते, क्योंकि यहाँ पर दहेज प्रथा है। मुस्लिम तो बगैर दहेज के शादी कर लेता है, तो तू किसी मुस्लिम को सेट कर शादी कर ले”
हालांकि वह इससे पहले मसूद ने यह भी कहा था कि जन्नत होती है और हिन्दुओं को जन्नत नहीं मिलेगी, क्योंकि जन्नत केवल इस्लाम कबूल करने पर ही मिलती है।
अब दहेज़ वाली प्रथा पर तनिक दृष्टि डालते हैं।
दहेज़ या जहेज़?
हम सभी को हाल ही में अहमदाबाद में आयशा द्वारा की गयी खुदकुशी की घटना याद होगी। अहमदाबाद में आयशा नामकी एक लड़की ने अपने शौहर की बेवफाई से दुखी होकर और जहेज के चलते ही आत्महत्या कर ली थी। और उसने अपनी आत्महत्या का लाइव टेलीकास्ट किया था, आखिर उसने ऐसा क्यों किया था?
उसके अब्बू ने कहा था कि आयशा के ससुरालवाले दहेज़ मांग रहे थे। यदि दहेज़ मुस्लिमों में नहीं है, तो आयशा ने आत्महत्या क्यों की?
इतना ही नहीं, वर्ष 2018 में मौलानाओं ने मुस्लिम अभिभावकों से अपील की थी कि वह लोग अपने बच्चों की शादियों में दहेज़ लेना बंद करें।
आयशा की मौत के बाद मुस्लिम समुदाय पर बार बार प्रश्न उठे कि दहेज़ लेना बंद किया जाए! यहाँ तक कि ओवैसी “साहब” भी कूद पड़े और भावनात्मक अपील की कि मुस्लिम समाज दहेज़ न ले अर्थात जहेज़ न लें!
दहेज़ तो हम लोगों ने सुना है फिर जहेज़ क्या है?
जहेज़ एक अरबी शब्द से निकला है। यह जहज़ या जह्ज़ा अर्थात “किसी उद्देश्य के लिए कुछ चीज़ों को उपलब्ध कराना” से निकला है। यह कई मूल शब्दों का आधार रहा है जैसे तजह्ज़ा -उल-सफ़र, अर्थात सफर के लिए आवश्यक।
Indian Journal of Gender Studies, 16:1 (2009): 47–75 में “भारतीय मुसलमानों में दहेज़ (डाउरी): सिद्धांत और प्रक्रियाएं में अब्दुल वहीद लिखते हैं कि यह बहुत गलत अवधारणा है कि मुस्लिमों में जहेज़ नहीं होता।

वह इस्लामी विद्वान गोरी के हवाले से कहते हैं कि जहेज़ दो तरह के होते हैं। पहले में दुल्हा और दुल्हन के लिए कपड़े और गहने दिए जाते हैं तो दूसरे में बातचीत के बाद, कपड़े, गहने, बरात आदि की व्यवस्था शामिल है। अब्दुल वहीद लिखते हैं कि गोरी पैगम्बर मुहम्मद की कई जीवनी पढने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि पैगम्बर मोहम्मद ने अपनी सबसे छोटी बेटी फातिमा को जहेज़ दिया था, जिसमे बहुत आम चीज़ें थी जैसे चारपाई, खजूर की पत्तियों से भरा हुआ गद्दा, चक्की, मटके आदि। गोरी कहते हैं कि पैगम्बर मुहम्मद ने अपनी सबसे छोटी बेटी को जहेज़ क्यों दिया उसके कई कारणों में से एक यह भी हो सकता है कि अली, जिसके साथ उन्होंने अपनी सबसे छोटी की शादी की थी, उसके पास अपना घर भी नहीं था, इसलिए मदद के लिए दिया होगा।

फिर भी आज जिस तरह से जहेज़ लिया जा रहा है, उसे सही ठहरने के लिए इसे उदाहरण के रूप में नहीं लेना चाहिए।
फिर भी कुछ लोग कहते हैं कि जहेज़ शब्द दहेज़ से आया, तो वहीं दहेज़ शब्द जहेज़ से आया प्रतीत होता है क्योंकि हिन्दुओं में स्त्रीधन शब्द का प्रचलन था, दहेज़ का नहीं! यह पता लगाना जाना चाहिए कि जहेज़ कब दहेज़ हुआ और कैसे एवं कब हिन्दुओं के स्त्री धन का स्थान दहेज़ ने ले लिया। वहीं Indian Journal of Gender Studies, 16:1 (2009): 47–75 में यह कहीं न कहीं स्पष्ट हो रहा है कि जहेज़ शब्द इस्लाम से हिन्दुओं में आया!
इतना ही नहीं, मनुस्मृति में बताए हुए आठ प्रकार के विवाहों में सबसे श्रेष्ठ जो विवाह बताए हैं, उनमें किसी में भी कथित दहेज़ का कोई वर्णन नहीं है। बल्कि मनुस्मृति में तो यहाँ तक लिखा है कि स्त्री धन पर रहने वाले व्यक्ति अपने पतन को प्राप्त होते हैं।
मनुस्मृति में तीसरे भाग में स्त्री और विवाह के सम्बन्ध में क्या लिखा है उसे ध्यान से पढ़े जाने की आवश्यकता है:
स्त्रीधनानि तु ये मोहादुपजीवन्ति बान्धवा:
नारी यानानि वस्त्रं वा ते पापा यान्त्यधोगतिम! (3/52)
इसे बहलर ने अंग्रेजी में अनुवाद किया है:
52। But those (male) relations who, in their folly, live on the separate property of women, (e.g. appropriate) the beasts of burden, carriages, and clothes of women, commit sin and will sink into hell।
एक नहीं कई उदाहरण उपस्थित हैं, जो बार बार यह बताएँगे कि हिन्दुओं में दहेज़ नहीं था, स्त्रीधन था, जो कालांतर में कबीलाई समुदायों के संपर्क में आने से दहेज़ जैसी कुप्रथा में बदल गया।
मसूद हाशमी जैसे लोग कितनी चालबाजी से यह सब छिपा ले जाते हैं और अपना जहर उगलते हैं। क्योंकि उनका उद्देश्य मात्र समाज में विष घोलना होता है
Yehi toh hum Hindu ladkiyon ko kabse samjhane ki koshish kar rahe hai ke Hindu traditions jaise dowry,kanyadan etc ko islliye badnaam kiya jaata hai take Hindu ladkiyon ko Muslim men ki taraf attract kiya jaa sake..yehi feminism ka agenda hai joh Hindu ladkiyon ke samajh me nahi aata