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Friday, April 26, 2024

गोधरा ट्रेन कोच जलाने के दोषी फारूख को उच्चतम न्यायालय ने दी जमानत, इस जिहादी ने हिन्दुओं को जलती ट्रेन से उतरने से रोका था

उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को गोधरा काण्ड में ट्रेन कोच को जलाने के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे फारूख को यह कहते हुए जमानत दे दी कि वह पिछले 17 वर्षों से जेल में है। गोधरा की नृशंस घटना के पश्चात ही गुजरात में सांप्रदायिक दंगे हुए थे, जिनमे लगभग 1000 लोग मारे गए थे और हजारों अन्य घायल हो गए थे। उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा ने कहा कि दोषी 17 वर्षों से जेल में है और उसकी भूमिका ट्रेन पर पत्थर फेंकने की थी।

उच्चतम न्यायालय की पीठ ने कहा कि आरोपी फारूक द्वारा दायर की गई जमानत की याचिका मंजूर की जाती है। यह ज्ञात हुआ है कि आरोपी 2004 से हिरासत में है, और आरोप सत्यापित होने के विरुद्ध उसकी अपील भी शीर्ष अदालत में लंबित है। इसमें कहा गया है कि आवेदक को सत्र अदालत द्वारा लगाए गए नियमों और शर्तों के अधीन जमानत दी जाती है।

फारूख पत्थर फेंक कर हिन्दुओं को जलते हुए कोच से बाहर निकलने से रोक रहा था

गुजरात सरकार के अधिवक्ता के अनुसार फारूख ने अन्य जिहादियों के की भीड़ को उकसाया था और कोच पर पथराव किया था। इस पथराव से यात्री घायल हो गए थे, और कोच भी बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गए थे। गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि चूंकि दोषी पत्थर फेंक रहा था, इसने लोगों को जलते हुए कोच से बाहर निकलने से रोका। उन्होंने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में पत्थर फेंकना कम गंभीर अपराध हो सकता है, लेकिन इस मामले में यह अलग था। यहाँ दोषी के कुकृत्य के कारण लोग कोच से बाहर नहीं निकल पाए और अंततः उनकी जलने के कारण मृत्यु हो गयी थी।

गुजरात सरकार ने किया जमानत का कड़ा विरोध

गुजरात सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दोषियों की जमानत का कड़ा विरोध किया था। गुजरात सरकार ने पत्थरबाजों की भूमिका को गंभीर बताया था, और कहा कि दोषियों ने कोच और यात्रियों के अतिरिक्त दमकल कर्मियों पर भी पत्थर फेंके थे। ट्रेन के कोच को बोल्ट किया गया था और यह सुनिश्चित करने के लिए पथराव किया गया था कि यात्री बाहर न आ सकें और इसी कारण इस घटना में 50 से ज्यादा हिन्दुओं की दुखद मृत्यु हो गयी थी।

जानिए क्या हुआ उच्चतम न्यायालय में

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने जमानत आदेश सुनाया और कहा- “मामले के तथ्यों में, फारुक द्वारा दायर जमानत का आवेदन, अभियुक्त संख्या 4, दिया जाता है। आवेदक को आईपीसी की धारा 302 के अंतर्गत दंडनीय अपराध का दोषी पाया गया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उच्च न्यायालय ने 9 अक्टूबर 2017 को उसकी अपील खारिज कर दी थी।”

न्यायधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि, “आवेदक ने इस आधार पर जमानत मांगी है कि वह 2004 से हिरासत में है और करीब 17 वर्ष कैद काट चुका है। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों और आवेदक की भूमिका को देखते हुए, हम आवेदक को ऐसे नियमों और शर्तों के अधीन जमानत देने का निर्देश देते हैं जो सत्र न्यायालय द्वारा लगाई जा सकती हैं।”

वहीं सॉलिसिटर जनरल मेहता ने मामले में अंतिम सुनवाई की मांग करते हुए कहा, “यह सबसे जघन्य अपराधों में से एक है। बोगी का दरवाजा बंद करने से 59 लोग जिंदा जल गए। मामला अंतिम सुनवाई के लिए तैयार है। अब आपके लॉर्डशिप में भी समयबद्ध सुनवाई के लिए विशेष बेंच हैं। इसे अन्य मामलों में से एक के रूप में सूचीबद्ध किया जा सकता है।

इस पर, न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने उत्तर दिया – “आप ऐसा कर सकते हैं, आप अपने कनिष्ठों से समस्त अपीलों का एक छोटा सा विवरण तैयार करने के लिए कह सकते हैं और इसे रजिस्ट्रार श्री पुनीत सहगल को दे सकते हैं। मैं जांच करूंगा, और इसे उचित रूप से जांचने का प्रयास करूंगा।

न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि इनमें से कुछ दोषी पत्थरबाज थे और वे जेल में लंबा समय काट चुके हैं, ऐसे में कुछ को जमानत पर छोड़ा जा सकता है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को आश्वस्त किया था कि वह हर दोषी की भूमिका की जांच करेंगे और क्या कुछ लोगों को जमानत पर रिहा किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से 15 दिसंबर को अपनी रिपोर्ट पेश करने को कहा था।

इस आरोपी का पूरा नाम फारूक गाजी है। वहीं गोधरा काण्ड में सम्मिलित एक अन्य आरोपी फारूक भाना था, जो कांग्रेस का जिला सचिव था और घटना के समय नगरसेवक के पद पर आसीन था। उसे 2016 में ही गिरफ्तार किया गया था, घटना के पश्चात फारूख भाना पाकिस्तान भाग गया था, जहां वह तब्लीगी जमात में सम्मिलित हो गया था और इस कारण वह इतने वर्षों तक गिरफ्तार नहीं हो पाया था।

न्यायपालिका क्यों दुर्दांत अपराधियों के साथ नरम व्यवहार करती है ?

इसी वर्ष 13 मई को, उच्चतम न्यायालय ने एक अन्य आरोपी अब्दुल रहमान धंतिया को छह महीने के लिए इस आधार पर अंतरिम जमानत दी थी कि उसकी पत्नी ‘टर्मिनल कैंसर’ से पीड़ित थी और उसकी बेटियां ‘मानसिक रूप से अक्षम’ थी। 11 नवंबर को, उच्चतम न्यायाला ने अब्दुल की जमानत 31 मार्च, 2023 तक बढ़ा दी।

कहीं न कहीं लोग भी यह समझने में अक्षम हैं कि आखिर इतने दुर्दांत अपराधियों को माननीय न्यायालय कैसे और क्यों जमानत दे रहा है। ऐसे जिहादी जिन्होंने 50 से ज्यादा हिन्दू महिलाओं और बच्चों को जला डाला, उनके साथ किसी भी प्रकार की सहानुभूति रखना अमानवीय ही माना जाएगा।

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