कश्मीर में कश्मीरी हिन्दुओं की टार्गेट किलिंग अर्थात नाम पूछकर हत्याओं का दौर निरंतर चालू है। राहुल भट्ट की हत्या के बाद से ही विरोध प्रदर्शन चालू हैं, तो वहीं अब रजनी बाला को भी नाम पूछकर मार डाला। यह सिलसिला थम नहीं रहा है। मजहब के नाम पर ही और मजहबी उसूलों के नाम पर हत्या हो रही है।
रजनी बाला को एससी कोटे के अंतर्गत कश्मीर में नौकरी मिली थी। आतंकी हर प्रकार से इस बात का विरोध कर रहे हैं कि किसी भी गैर मुस्लिम को घाटी में नौकरी दी जाए! रजनीबाला जैसे ही स्कूल की गली में पहुँची, उनसे कुछ आतंकियों ने नाम पूछा और जैसे ही रजनी ने अपना नाम बताया, तो उन्होंने रजनी के सिर में गोली मारी और चले गए।
गोली की आवाज से अफरातफरी फ़ैल गयी और लोग उन्हें लेकर अस्पताल लेकर भागे, परन्तु उन्होंने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। हाल ही में राहुल भट की हत्या के बाद से कश्मीरी पंडित आन्दोला और प्रदर्शन कर रहे थे, अब रजनीबाला की हत्या के बाद से उनका क्रोध और आक्रोश और बढ़ गया है। परन्तु लोगों को सबसे अधिक दुःख इस बात का है कि सरकार की ओर से उनकी सुरक्षा पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
वहीं श्रीनगर में प्रदर्शन करने वाले कश्मीरी पंडित अब उग्र हो गए हैं और अपनी सुरक्षा की मांग को लेकर वह यह मांग कर रहे हैं कि उन्हें स्थिति सामान्य होने तक कश्मीर से बाहर कहीं नौकरी दें। परन्तु उपराज्यपाल ने उनकी बातें नहीं मानीं और एक और गैर मुस्लिम की हत्या कर दी गयी।
फिल्मनिर्माता अशोक पंडित ने वीडियो साझा करते हुए लिखा कि कश्मीरी पंडित कर्मचारी कश्मीर की सड़कों पर रजनीबाला की हत्या के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। और कह रहे हैं कि उनकी बात नहीं सुनी जा रही है कि उन्हें जम्मू में पोस्टिंग दी जाए। हमारा जीनोसाइड अभी तक चल रहा है,
एलजी साहब हम लोग अनाथ हो गए हैं:
कश्मीर फाइल्स मूवी में प्रशासनिक स्तर पर हिन्दुओं के लिए जो लापरवाही दिखाई गयी है, वह अभी तक कहीं न कहीं जारी है। टाइम्स नाउ के अनुसार रजनीबाला के पति ने साफ़ कहा कि कुलगाम के सीईओ उनकी पत्नी की हत्या के लिए जिम्मेदार हैं। कुमार ने कहा कि कुलगाम के सीईओ यदि रजनी की ट्रांसफर की अर्जी नहीं ठुकराते तो उनकी पत्नी आज जिंदा होती!”
प्रश्न यही उठता है कि क्या एक बार फिर से भारत उसी हिंसा की ओर बढ़ रहा है, क्या कश्मीरी हिन्दुओं के साथ वही जीनोसाइड तकनीकें अपनाई जा रही हैं, जो 90 के दशक में अपनाई गईं थीं? उन्हें सुरक्षित जीने का अधिकार ही नहीं दिया जा रहा है? वह लोग बाहर पोस्टिंग चाह रहे हैं, परन्तु उनकी बातें नहीं सुनी जा रही हैं?
वहीं अब कश्मीरी हिन्दू कर्मचारियों ने नरेंद्रमोदी सरकार को चेतावनी दे दी है कि अगर उनकी बात नहीं सुनी गयी तो वह सामूहिक पलायन करेंगे!
अशोक पंडित ने फिर से बात दोहराई कि कश्मीर में हिन्दू तभी बस सकते हैं, जब कश्मीर में उनके लिए ही विशेष होमलैंड बनेगा!
वहीं इन हत्याओं के बीच कश्मीर की उदार मुस्लिम महिलाओं की आवाज शांत की जा रही हैं। जैसे अभी हमने देखा था कि कलाकार अमरीना बट की हत्या कर दी गयी थी। वह मुस्लिम थी। मगर वह अपने वीडियो बनाकर इन्स्टाग्राम पर पोस्ट किया करती थी। उनकी भी हत्या उनके घर के बाहर कर दी गयी थी। इससे यह स्पष्ट है कि आतंकियों को बिलकुल भी स्वतंत्र आवाजें पसंद नहीं हैं। उन्हें वहीं लोग पसंद हैं, जो उनके मजहबी उसूलों के अनुसार चलते हैं।
मगर इसमें सबसे हैरान करने वाला वक्तव्य अमरीना भट के अब्बा की ओर से आया जिसमें उन्होंने बीबीसी से बात करते हुए कहा कि “मुसलमान-मुसलमान को मार रहा है, ये कैसा जिहाद है?”
यह एक ऐसा वाक्य है जिस पर हिन्दू समाज के साथ साथ उदारवादी मुस्लिम समाज को भी ध्यान देने की आवश्यकता है। क्योंकि एक ऐसी मानसिकता का निर्माण आम मुस्लिमों के बीच किया जा रहा है, जिसमें गैर-मुस्लिम को तो जिहाद में मारा जा सकता है, परन्तु मुस्लिमों को नहीं! यह किस प्रकार की मानसिकता का प्रचार आम लोगों के बीच किया जा रहा है?
क्या आम मुस्लिम को यह कहकर भड़काया जा रहा है कि काफिर को मारना जिहाद है? या फिर दूरियां पैदा की जा रही हैं? यह जो वाक्य है, वह बहुत ही आहत करने के साथ साथ परेशान करने वाला है क्योंकि इससे कहीं न कहीं यह संकेत जा रहा है कि जिहाद में आप गैर-मुस्लिम को मार सकते हैं, परन्तु मुस्लिमों को नहीं?
यह प्रश्न तो अफगानिस्तान से लेकर पाकिस्तान, और अन्य मुस्लिम देशों में लोग पूछ सकते हैं कि जहां पर दूसरे मजहब का कोई भी व्यक्ति शायद ही हो, वहां पर मुस्लिमों के बीच संघर्ष आम है तो यह कैसा जिहाद है?
जब प्रश्न है कट्टरता से लड़ने का, और कट्टर मानसिकता से लड़ने का तो ऐसे में यह प्रश्न भय उत्पन्न करने वाला है कि “”मुसलमान-मुसलमान को मार रहा है, ये कैसा जिहाद है।?”
समस्या ऐसी ही मानसिकता के निर्माण से है!
हत्या, हत्या है, जो गया है, वह फिर नहीं आएगा, जो गया है उसके परिवार के सपने नष्ट हो गए हैं, उसके बच्चों के सिर से स्नेह की छाया हट गयी है और फिर मासूम प्रश्न जब उछलता है कि “मुसलमान-मुसलमान को मार रहा है, ये कैसा जिहाद है।” तो हिन्दू का दिल कितना दुखता है, वह कोई नहीं सोच पाता? संभवतया किसी के पास समय ही नहीं है!