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Monday, June 30, 2025

पश्चिमी उत्तर प्रदेश: गौरव और सचिन की हत्या और कैराना से पलायन की कहानी भूले नहीं हैं लोग

उत्तर प्रदेश में अब मतदान की तिथि निकट आ गयी है। सात चरणों में होने वाले इन चुनावों में प्रथम चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वोट डाले जाएंगे। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पिछले चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने लगभग क्लीन स्वीप किया था। परन्तु इस बार स्थिति कुछ भिन्न है क्योंकि राष्ट्रीय लोक दल जहाँ समाजवादी पार्टी के साथ लड़ रही है तो वहीं जाटों को अपने अनुसार चलाने का दावा करने वाले टिकैत बन्धु भी अगर मगर करते हुए कभी निष्पक्ष होने का दावा कर रहे हैं तो कभी राष्ट्रीय लोकदल का पक्ष ले रहे हैं।

वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था पर तो विशेष ध्यान दिया ही है, परन्तु साथ ही वह बार बार मुजफ्फरनगर दंगे और गौरव एवं सचिन नामक दो हिन्दू युवकों की हत्या का भी उल्लेख कर रहे हैं। उसके बाद ही मुजफ्फरनगर में भयानक साम्प्रदायिक दंगों ने आस पास के शहरों को अपनी चपेट में ले लिया था। यह मामला लड़की की सुरक्षा से भी जुड़ा था, क्योंकि मुजफ्फरनगर के क्वाल गाँव में वर्ष 2013 में एक जाट लड़की ने अपने भाइयों से शिकायत की थी कि उसे कुछ मुस्लिम लड़के छेड़ते हैं।

जब उसके भाई समझाने के लिए गए तो वहां पर दोनों को ही घेर लिया था, और फिर दोनों को मार डाला था। वहीं इस दौरान आरोपी पक्ष के भी एक युवक की मौत हो गयी थी। इस घटना के बाद मुजफ्फरनगर और शामली में जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच भयानक दंगा भड़क उठा था। इन दंगों में 60 से अधिक लोग मारे गए थे।

इस दंगे के बाद स्थितियां बिगड़ गयी थीं और जाट और मुस्लिम समुदाय के बीच एक कड़वाहट भर गयी थी। सचिन और गौरव की हत्या में शामिल सभी सात आरोपियों को दोषी करार दिया जा चुका है और साथ ही एक दोषी की मृत्यु के बाद शेष 7 लोग अभी जेल में हैं।

यही नहीं, इस संबंध में हत्यारोपियों को छुड़वाने के लिए आजम खान भी घिरे थे।

मुख्यमंत्री बार बार मुजफ्फरनगर और कैराना की बात उठा रहे हैं

मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ बार बार इस मुद्दे को उठाते रहे हैं। और वह यह भी प्रश्न पूछते हैं कि क्या इसे सब भूल चुके हैं? इसके साथ ही वह यह भी कहते हैं कि सपा ने उस व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाया है जो कैराना से हिन्दुओं के पलायन के लिए जिम्मेदार था। क्या है कैराना का मामला? और क्यों कैराना में पीएसी बटालियन के भवन की आधारशिला रखी गयी थी। क्यों मुख्यमंत्री को यह कहना पड़ा था कि पीएसी का डंडा जब चलेगा तो बड़े से बड़ा दंगाई भी अपने आप ही दूसरे लोक की यात्रा करता हुआ दिखाई देगा?

पश्चिम उत्तर प्रदेश के लोगों को याद होगा कि कैसे वर्ष 2016 में मजहब विशेष के अपराधियों के कारण 300 से अधिक परिवारों ने पलायन कर लिया था।  लोगों का कहना था कि जेल से फिरौती की मांग की जाती है, फोन पर धमकी दी जाती है, और अगर वह पैसे नहीं देते थे तो उनकी ह्त्या भी करा दी जाती थी। कई व्यापारियों ने कैराना को पाकिस्तान की संज्ञा दे दी थी, जहाँ पर हत्या, लूटपाट और अपहरण बहुत आम बात हो गयी थी।

परन्तु यह भी बात सही है कि तत्कालीन प्रदेश सरकार के कारण इस मुद्दे पर सुनवाई भी बहुत मुश्किल से हुई थी और साथ ही मीडिया ने भी इस मुद्दे को नकारने का अपना पूरा प्रयास किया था। भारतीय जनता पार्टी को जहर फैलाने का दोषी बताया था। परन्तु जो सच था, वह सच था। लोगों ने पलायन को होते देखा था। फिर भी इसे लगातार नकारने का कुकृत्य चलता रहा था।

वर्ष 2017 में उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार के आने के बाद से ही योगी सरकार क़ानून व्यवस्था को सुधारने के लिए कार्य कर रही है। इसी क्रम में बड़े बड़े अपराधियों के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उन सभी आपराधिक तत्वों पर भी कार्यवाही कर रही है, जिन्हें पहले की सरकारों में मजहब के आधार पर छूट मिल जाती थी।

मुजफ्फरनगर के दंगों में आया था नाम आजम खान का

जब मुजफ्फर नगर में दंगे हुए थे, उस समय आजम खान का नाम भी सामने आया था। भारतीय जनता पार्टी के नेता संजीव बालियान ने भी आजम खान पर आरोप लगाया था। हालांकि एसआईटी की रिपोर्ट में उनका नाम नहीं आया था, फिर भी उनका नाम कई पुलिस वालों ने न्यायालय में लिया था। दरअसल सपा सरकार पर यह आरोप लगते रहे थे कि सरकार में असली हाथ आजम खान का ही था। यह भी कहा जाता था कि साम्प्रदायिक दंगों के मामले में मुस्लिमों को आजम खान के नाम पर छुड़वा दिया जाता था। ऐसा ही इस दंगे में भी हुआ था।

मीडिया के अनुसार

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आज़म खान को नोटिस जारी करके मुजफ्फरनगर दंगों के मामले में पांच पुलिसवालों दंगों के मामले में मुजफ्फरनगर के पांच थाना प्रभारियों को निलंबित कर दिया था। पुलिसवालों का कोर्ट में कहना था कि उनका निलंबन मंत्री आजम खां के इशारे पर किया गया था। उन्‍होंने यह भी आरोप लगाया था कि आजम खां के दबाव के बाद उन सात लोगों को हिरासत से रिहा कर दिया गया था जिन पर कवाल में युवकों की हत्या का आरोप लगा था। इसी वजह से इलाके में दंगा भड़का था। कोर्ट ने उस वक्त मंत्री पर आरोप को गंभीर बता राज्‍य सरकार को निर्देश दिया था कि वह पूरे प्रकरण पर गौर करने के साथ यह सुनिश्चित करे कि कानून का पालन हुआ है या नहीं।

जनता अभी भी इन मामलों को अपनी स्मृति में रखे हुए है। और इसीके साथ कई ऐसे मामले हुए थे, जो मीडिया की सुर्खियाँ बने थे।

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